March 29, 2024

लोकसंस्कृति को बचाने का एक प्रयास है मेरी राजुला

रुद्रप्रयाग ( आखरीआंख समाचार ) लोक संस्कृति और पारम्परिक रीति रिवाजों पर आधारित गीतों से अपनी संस्कृति को बचाया जा सकता है। आज के दौर में फूहड़ गीतों से पहाड़ी संस्कृति को नुकसान पहुंच रहा है। जिले के प्रसिद्ध लोक गायक कुलदीप कप्रवाण युवा कलाकार हैं, जो अपनी संस्कृति को बचाने के प्रयास में लगे हैं और पारम्परिक गीतों के माध्यम से समाज में अच्छा संदेश देने का प्रयास कर रहे हैं।
यह बात क्षेत्रीय विधायक भरत सिंह चैधरी ने लोक गायक कुलदीप कप्रवाण एवं हेमा नेगी करासी के नये एलबम मेरी राजुला के विमोचन अवसर पर कही। नगर के नये बस अड्डे पर आयोजित कार्यक्रम में विधायक चैधरी ने कहा कि युवा वर्ग को अपनी संस्कृति को बचाने के लिए आगे आना चाहिए। आज के समय पर पहाड़ी जिलों से पलायन बढ़ता जा रहा है, जिसका मुख्य कारण रोजगार का न होना है। युवाओं के लिए सरकार की ओर से कई लाभकारी योजनाएं चलाई जा रही है, जिनका लाभ उठाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि अपनी बोली-भाषा का प्रचार होना जरूरी है। जब हम अपनी बोली-भाषा को आगे बढ़ाएंगे, तभी जाकर हमारा भी सम्मान है। कहा कि कुलदीप कप्रवाण की ओर से सदाबहार गीत गाया गया है। यह गीत पहाड़ी पारम्परिक रीति-रिवाजों की सीख दे रहा है। उन्होंने दोनों लोक कलाकारों को भविष्य की शुभकामनाएं देते हुए बेहतर प्रदर्शन करने को कहा। युवा लोक गायक कुलदीप कप्रवाण ने कहा कि यह गीत सदाबहार गीत है। आज के दौर में कई ऐसे गीत आ रहे हैं, जिन पर विवाद चल रहा है। एचएनके फिल्म के बैनर तले मेरा राजुला एल्बम निकाली गयी है और यह गीत पारम्परिक प्रेम प्रसंग लोक गीत है, जिसमें पति-पत्नी के बीच मार्मिक संवाद दर्शाया गया है। बताया कि अपनी बोली-भाषा के लिए कार्य किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार को भी लोक गायकों की ओर ध्यान देना चाहिए। युवा लोक कलाकारों को मंच प्रदान किये जाने चाहिए, जिससे वे आगे बढ़ सकें। उन्होंने बताया कि इससे पहले कमला बठिणा, मिजाज्या रे तरू लांच हो चुकी है। भविष्य में नई एलबम ओ रे स्वीटी लांच होगी, जिसमें यह समझाने की कोशिश की गई है कि चाहे व्यक्ति शहरी प्रदेशों में कई भी रहे, मगर अपने मुलक और अपनी परम्परा को याद रखे। आज के समय में युवा शहरों में जाकर अपनी संस्कृति को भूलने लगे हैं। लोक गायिका हेमा नेगी करासी ने कहा कि मेरी राजुला गीत यू-ट्यूब पर डाउनलोड होने के बाद से काफी प्रसिद्ध होने लगा है। श्रोताओं को यह गीत काफी पसंद आ रहा है। उन्होंने बताया कि लोक विरासत को लेकर भी एक गीत तैयार किया है, जो जल्द ही दर्शकों के बीच प्रस्तुत किया जायेगा। यह मखमली घाघरी बादी लोकगीत है, इसमें पारम्परिक त्यौहारों को दिखाया गया है। गीत में बताया गया है कि पुराने समय में त्यौहारों में बादी-बादिन लोक गायन से अपनी संस्कृति की पहचान कराते थे। आज यह संस्कृति विलुप्त हो रही है। इससे पहले हेमा नेगी करासी की गिर गेंदुवा गाना भी काफी प्रचलित हुआ है। इसके साथ ही नर्सिंग जागर, बगछट मन, आछरी जागर, मेरी बामणी को भी दर्शकों ने काफी सराहा है। उन्होंने प्रदेश सरकार को संदेश दिया लोक संरक्षण के लिए कार्य किया जाना चाहिए। पहाड़ी जिलों में इंस्टिट्यूट खोले जांय, जहां गढ़वाली लोक गीत व संस्कृति, जागरों की जानकारी दी जाय। स्कूलों में भी गढ़वाली लोकगीत की जानकारी बच्चों को देनी चाहिए। कहा िकवे अपनी संस्कृति के संरक्षण के लिए कार्य करेंगी। मेरी राजुला एलबम में संगीत विनोद चैहान, गीतकार नवीन सेमवाल, प्रस्तुत कर्ता अनिल करासी, कैमरामेन गोविंद नेगी एवं सहयोग संगीता थलवाल, काजल कंडारी, हिमानी रावत ने दिया है। इस मौके पर जिलाध्यक्ष विजय कप्रवाण, अरूण बाजेपई, राकेश बिष्ट, राजीव तिवारी सहित कई मौजूद थे।