March 28, 2024

तंत्र की चूक से घातक होती महामारी

कितना अच्छा होता हमारे भारत के सर्वोच्च न्यायालय सहित सभी राज्यों के उच्च न्यायालय कोरोना मरीजों की चिंता और सरकार की अनदेखी पर प्रतिक्रिया बहुत पहले कर लेते। हमारे न्यायाधीश स्वास्थ्य सेवाओं विशेषकर ऑक्सीजन की कमी से मरते लोगों को देखकर बेहद दुखी, चिंतित और सचमुच अशांत हो गए हैं। इसी का यह परिणाम है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह कहा कि ऑक्सीजन के अभाव में जो लोग मारे गए वह नरसंहार है, जिसके लिए किसी को क्षमा नहीं किया जा सकता। इससे पहले मद्रास हाईकोर्ट ने फैलते कोरोना और बेबस मरते रोगियों को देखकर यह कहा था कि चुनाव आयोग पर क्यों न हत्या का आपराधिक केस दर्ज किया जाए। उनका संकेत पांच राज्यों में चुनाव के नाम पर बड़े-बड़े जलसे, रैलियां, कोरोना से बचने के लिए बनाए सारे नियमों की देश के माननीयों द्वारा धज्जियां उड़ाने की ओर था। चुनाव आयोग मद्रास हाईकोर्ट द्वारा की गई टिप्पणी की शिकायत लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। तब सुप्रीम कोर्ट के माननीय न्यायाधीशों ने बहुत सटीक कहा कि मद्रास हाईकोर्ट की टिप्पणी को कड़वी दवा समझकर पचा जाइए। उसमें कुछ बुरा नहीं।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने तो भारत सरकार को फटकार लगाते हुए यह भी कह दिया कि शुतुरमुर्ग की तरह आप रेत में सिर धंसाइए, हम नहीं। माननीय न्यायाधीशों ने यह भी कहा कि आप अंधे हो सकते हैं, न्यायालय नहीं। दिल्ली सरकार द्वारा अस्पतालों के लिए मांगी गई ऑक्सीजन पूरी मात्रा में न देने और बार-बार देश में रोगियों की ऑक्सीजन के अभाव में मृत्यु होने से न्यायालय बहुत दुखी था। अब प्रश्न यह पैदा होता है कि देश की यह हालत कैसे हो गई? पहले तो रोगी अस्पताल में उपचार पाने के लिए दाखिल होना चाहता है, वहां जगह नहीं मिलती और अति दुखद लज्जाजनक कि कोरोना से इतने लोग मारे गए कि अब श्मशान घाटों और कब्रिस्तानों में भी कोई जगह शेष नहीं बची।
विश्वविख्यात लासेंट पत्रिका ने बहुत पहले ही सावधान कर दिया था। मार्च, 2021 में जब संक्रमण की दूसरी लहर आरंभ हो गई तब यह बता दिया गया था कि मध्य मई में कोरोना के भारत में विस्फोटक होने का अनुमान है। यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन अमेरिका में एपिडेमियोलॉजी की प्रो. बी. मुखर्जी ने यह लगभग भविष्यवाणी ही कर दी थी कि भारत में संक्रमण के प्रतिदिन आठ से दस लाख नए केस आ सकते हैं तथा कोविड से औसतन चार हजार से ज्यादा मौतें प्रतिदिन हो सकती हैं। अफसोस यह कि ऐसी अनेक चेतावनियों को अनदेखा कर भारत सरकार ने यह विश्वास कर लिया था कि अब भारत कोरोना पर विजय प्राप्त कर चुका है। जनवरी, 2021 में ही भारतीय वैक्सीन का नौ कंपनियों से करार हो गया और भारत ने बहुत से देशों को वैक्सीन मुफ्त दी या बेची। जानकारी यह भी है कि मेडिकल ऑक्सीजन का निर्यात भी पिछले वर्ष की तुलना में लगभग दो गुणा कर दिया। इसी का यह दुखद दुष्परिणाम है कि अब अपने देश में स्थिति भयानक हो गई। वैक्सीन व ऑक्सीजन की कमी बहुत बुरी तरह बढ़ गई। अनेक व्यक्ति देश में ऑक्सीजन के अभाव में तड़प-तड़प कर मर गए।
प्रश्न यह पैदा होता है कि देश का नेतृत्व विश्वस्तरीय जानकारी और चेतावनी के बाद भी क्यों अपनी वैक्सीन और ऑक्सीजन दुनिया को दान देता रहा। संभवत: हम विश्व बंधुत्व की बात करते हुए दानवीर बन रहे थे। इतना ही नहीं, कोरोना बढ़ता गया, लोग मरते गए, परिवार अनाथ होते गए, पर हमारे देश के राजनीतिक नेता एक लक्ष्य लेकर ही चले। वह लक्ष्य था चुनावों में विजय प्राप्त करना। संभवत: चुनावी विजय ही जनता की जिंदगी से अधिक महत्वपूर्ण हमारे नेताओं के लिए हो गई। देश के धर्मगुरु भी न जाने किस धर्म की बात करते हुए कभी कुंभ, कभी महापुरुषों के जन्मदिन, कभी बड़े-बड़े नगर कीर्तन और उत्सव मनाने में लगे रहे। उत्तराखंड में कुंभ के साथ-साथ ही कोरोना भी फैल गया।
उन लोगों से भी शिकायत है जो डाक्टरों से या मेडिकल स्टाफ से उलझते हैं। थोड़े साधनों में, थोड़े स्टाफ के साथ डाक्टर और मेडिकल स्टाफ अपने जीवन और परिवार को खतरे में डालकर काम कर रहे हैं। असली दोषी तो वे हैं जो भारत की स्वतंत्रता के 74 वर्ष बीत जाने पर भी देश की स्वास्थ्य सेवाओं को विश्वस्तरीय नहीं बना पाए। कुछ ऐसे भी प्रांत हैं जहां अस्पतालों के बड़े-बड़े भवन तो खड़े कर दिए, पर डाक्टरों तथा मेडिकल स्टाफ की कमी है। मशीनें धूल फांक रही हैं, चलाने वाला कोई नहीं। सीधी बात यह है कि जब तक इस देश में यह नियम नहीं बनेगा कि सभी माननीय बने नेता बड़े-बड़े अस्पतालों में मुफ्त इलाज नहीं करवा सकेंगे, केवल सरकारी अस्पतालों में उनका इलाज होगा तब तक सरकारी अस्पतालों की दुर्गति रहेगी ही। ये माननीय बीमार होते ही जनता द्वारा दिए टैक्सों के सहारे देश के सुप्रसिद्ध अस्पतालों या विदेश में उपचार करवाने के लिए पहुंच जाते हैं। जनता के दिए गये टैक्स से ये अपना इलाज करवाते हैं और जनता बेचारी कभी बिना दवाई, कभी बिना ऑक्सीजन के तड़प-तड़प कर मरती है।
विडंबना, जनता में भी वे लोग हैं जो बीमार और मजबूरों का खून चूसते हैं अपनी जेब भरने के लिए। ऑक्सीजन की कालाबाजारी, वैक्सीन और ऑक्सीमीटर, रेमडेसिविर इंजेक्शन जैसे जीवनरक्षक उपकरणों की कालाबाजारी हो रही है। यहां तक कि अगर डॉक्टर नीबू या फलों का प्रयोग करने को कहें तो नीबू का रेट भी चार गुणा और फलों का भाव भी आकाश छूने लगा। सरकार तुरंत जागे।