March 29, 2024

इस चुनावी बजट में हल्ला ज्यादा गल्ला कम

अर्जुन राणा आखरीआंख डिजिटल मीडिया



केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपना पांचवां बजट पेश करते समय सबको भरमाने की पूरी कोशिश की है। इस साल नौ विधानसभाओं के चुनाव हैं, और 2024 में लोक सभा चुनाव।
इसलिए उन्होंने ग्रामीण, शहरी मतदाताओं को रिझाने के लिए भरपूर कोशिश की है। मोदी सरकार के सडक़ एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडक़री ने यह कहने में कोई संकोच नहीं किया कि मध्यम वर्ग को घास नहीं डाली जाती है, लेकिन इस बजट में उनका ध्यान रखा गया है पर आयकरदाताओं को जो राहत वित्त मंत्री ने दी है, वे नये और पुराने, टैक्स राज के भ्रमजाल में उलझ कर रह गई है।
वित्त मंत्री ने पुराने टैक्स राज में कोई राहत प्रदान नहीं की है जबकि आज की तारीख में 90 फीसदी से अधिक करदाता पुराने टैक्स राज के माध्यम से अपना टैक्स अदा करते हैं, जिसमें 80 सी के तहत डेढ़ लाख रुपये सालाना बचत निवेश पर टैक्स छूट मिलती थी। नये टैक्स राज में प्रोत्साहित करने के लिए उन्होंने इसमें इनकम टैक्स छूट की सीमा 5 लाख रुपये से बढ़ा कर 7 लाख रुपये कर दी है। इसके साथ 50 हजार रुपये की मानक कटौती का लाभ भी अब नये टैक्स राज में मिलेगा जो पहले नहीं मिलता था। वित्त मंत्री के अनुसार मानक कटौती के शामिल होने से ही प्रत्येक वेतनभोगी व्यक्ति, जिसकी आय 15.5 लाख रुपये या उससे अधिक है, को परिणामस्वरूप 52 हजार 500 रुपये का लाभ मिलेगा। इस बजट में मेहनतकश, श्रमजीवी और गरीबों के लिए कोई खास घोषणाएं नहीं की गई हैं जबकि देश के धनाढय़ों पर अधिकतम टैक्स दर 42.7 फीसदी थी, इसे घटाकर 39 फीसदी कर दिया गया है। यह उच्चतम अधिभार 37त्न को घटाकर 25 फीसदी कर दिया गया है जिससे अधिकतम 25 टैक्स दर में तकरीबन 4 फीसदी की कमी आई है।
ग्रामीण मतदाताओं को भरमाने के लिए वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में बहुत जोर देकर घोषणा की है कि प्रधान मंत्री आवास योजना के परिव्यय को 66 फीसद से बढ़ाकर 79590 करोड़ रुपये कर दिया गया है। पर वित्त मंत्री द्वारा पेश दस्तावेज बताते हैं कि पिछले साल इस पर 77130 करोड़ रुपये आने का संशोधित अनुमान है। प्रधानमंत्री मोदी की प्रधान मंत्री सडक़ योजना सबसे पसंदीदा योजनाओं में से एक है लेकिन इसके परिव्यय में कोई बढ़ोतरी पिछले या संशोधित बजट अनुमान से नहीं की गई है। बजट बनाते समय वित्त मंत्री पर चुनावों का दबाव साफ दिखाई देता है। कर्नाटक राज्य में सूखे से निपटने के लिए 5300 करोड़ रुपये बजट में दिए गए हैं।
यहां भाजपा की सरकार है और भाजपा की स्थिति यहां डावांडोल बताई जाती है। मई, 2023 में यहां विधानसभा के चुनाव होने हैं। केरल, तमिलनाडू और ओडिशा में आई प्राकृतिक आपदाओं के लिए कभी बजटीय प्रावधान की घोषणा नहीं की गई थी। इस बजट की सबसे गजब बात यह है कि वित्त मंत्री ने अपने पूरे बजट भाषण में किसानों की आय दोगुनी करने का जिक्र तक नहीं किया। प्रधानमंत्री मोदी ने 2016 में आह्वान किया था कि 2022 तक किसानों की आय दोगुनी हो जाएगी। किसानों की आय कहां तक पहुंची है, अब स्वयं प्रधानमंत्री भी इसका जिक्र नहीं करते हैं। पेश बजट में कुल व्यय का अनुमान 45.03 लाख करोड़ रुपये रखा गया है, जो पिछले बजट से 7.5 फीसदी ज्यादा है, और कुल राजस्व प्राप्तियां 26.32 लाख करोड़ रुपये की दर्शाई गई हैं, जो पिछले बजट के संशोधित अनुमान से लगभग 12 फीसदी ज्यादा है। ये सारी गणनाएं 10.5 फीसदी की सांकेतिक जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) विकास दर पर की गई हैं।
10.5 फीसदी की सांकेतिक जीडीपी दर का गणित बीते मंगलवार को पेश आर्थिक सव्रेक्षण से मेल नहीं खाता है। इस सव्रेक्षण में बताया गया है कि वित्त वर्ष 2023-24 में जीडीपी की विकास दर 6 से 6.8 फीसदी रहेगी। यदि सांकेतिक दर में से महंगाई दर घटा देते हैं, तो वास्तविक जीडीपी विकास दर आ जाती है। अब सांकेतिक जीडीपी दर 10.5 में से 6 फीसदी की वास्तविक जीडीपी दर घटा दें तो महंगाई दर 4.5 फीसदी आती है, जिसकी कोई चर्चा न बजट में है, न आर्थिक सव्रेक्षण में। मोदी सरकार के

आर्थिक सलाहकार नागेरन का भरोसा है कि 2023-24 में जीडीपी विकास दर 6.5 रहेगी तो महंगाई दर महज 4 फीसदी होनी चाहिए जिसका भरोसा स्वयं भारतीय रिजर्व बैंक को नहीं है, जो महंगाई को नियंत्रित करने के लिए मौद्रिक उपाय करता है। मतलब यह है कि बजट का गणित कच्चा लगता है।
रोजगार को बढ़ाने के लिए बजट भाषण में पर्यटन विकास पर वित्त मंत्री ने काफी जोर दिया है। लेकिन यह कैसे बढ़ेगा, इसका कोई खाका पेश नहीं किया गया है। पर्यटन उद्योग जीएसटी की भारी दरों से परेशान है, जिससे पर्यटन उद्योग का विकास ठहरा हुआ सा है। हां, बजट घाटा अनुमान के अनुसार जीडीपी का 5.9 फीसदी रखा गया है। पूंजीगत खच्रे में खासी वृद्धि की गई है, जिसके लिए 10 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान है। लेकिन शिक्षा-स्वास्थ्य के बजट में कोई उल्लेखनीय वृद्धि नहीं की गई है। सरकार का पूरा जोर लोहे-लगड़ यानी आधार मूल ढांचे के विकास पर ज्यादा है। लेकिन मेहनतकश आदमी को निहत्था छोड़ दिया गया है। इतनी महंगाई हो जाने के बाद भी ग्रामीण असहाय मजदूरों को रोजगार गारंटी देने वाली योजना मनरेगा के बजट में कोई वृद्धि नहीं गई है, बल्कि पिछले साल के संशोधित अनुमान में 29 हजार करोड़ रुपये घटा दिया गया है। कुल मिला कर इस बजट में चुनावी हल्ला ज्यादा है, गल्ला कम।