कैग रिपोर्ट: उत्तराखण्ड में स्वास्थ्य संसाधनों के मानक, मापदंड ही निर्धारित नहीं
देहरादून। राय के स्वास्थ्य सिस्टम पर कैग की रिपोर्ट में गंभीर सवाल उठाए गए हैं। वर्ष 2018-19 की कैग रिपोर्ट में साफ किया गया कि राय में स्वास्थ्य संसाधनों के मानक, मापदंड ही निर्धारित नहीं है। भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानक(आईपीएचएस) को भी न अपनाए जाने पर सवाल उठाए गए हैं। अस्पतालों में स्वीकृत पदों से कम संया में डॉक्टर और नर्स उपलब्ध हैं। विधानसभा के पटल पर रखी गई रिपोर्ट में बताया गया है कि सरंकार ने न तो आईपीएचएस मानकों का पालन किया। न ही वाह्य रोगी विभाग और अन्त: रोगी विभाग सेवाओं के प्रावधान के लिए उसके पास एक समान मानदंड या मापदंड रहे। राय के सार्वजनिक अस्प्तालों में वर्तमान मरीज भार के आधार पर एवं राय सरकार द्वारा मार्च 2011 में जारी आदेशानुसार इसके अंतर्गत विभाग को आईपीएचएस के अनुसार सेवाएं और मानव शक्ति उपलब्ध कराना जरूरी था। इसके बाद भी स्वीकृत पदों की संया के सबन्ध में पुन: आंकलन को कोई कार्यवाही नहीं की गई थी। मैन पॉवर, उपकरण, अवसंरचना, सेवाओं आदि के लिए 2014-19 के दौरान कोई अंतर विश्लेषण नहीं किया गया। डॉक्टर, नर्सों के स्वीकृत पदों में काफी अंतर रहा। उपकरणों के रखरखाव के सबन्ध में कोई पूर्व विचार नहीं किया गया।
कैग ने पहाड़ों में डॉक्टरों की कम संया और मैदानों में जरूरत से अधिक भीड़ पर भी सवाल उठाए हैं। बताया है कि पहाड़ों में स्वीकृत पदों पर भी पूरे डॉक्टर मौजूद नहीं हैं। वहीं दूसरी ओर मैदानी अस्पतालों में स्वीकृत पदों से भी अधिक संया में डॉक्टर तैनात किए गए हैं।
रिपोर्ट में बताया गया है कि पहाड़ी क्षेत्रों के अस्पतालों और मैदानी क्षेत्र के अस्प्तालों में डॉक्टरों की संया में भारी अंतर है। कान, नाक, गला(ईएनटी) डॉक्टरों के स्वीकृत पदों के बावजूद पहाड़ों में उन्हें तैनात नहीं किया गया है। जबकि मैदानी क्षेत्रों में पूरी क्षमता के साथ डॉक्टरों की तैनाती की गई। पहाड़ों में हड्डी रोग विशेषज्ञों की तैनाती सिर्फ 50 प्रतिशत रही।
जबकि मैदानी क्षेत्रों में पूरे डॉक्टर रहे। मैदानी क्षेत्रों में अस्पतालों में सामान्य सर्जन भी स्वीकृत पदों से अधिक तैनात किए गए। कई अस्पतालों में स्त्री रोग और औषधि विभाग में प्रति डॉक्टर वाह्य रोगी विभाग के रोगियों की संया प्रति चिकित्सक कुल औसत रोगियों की संया की तुलना में बहुत अधिक थी। सैंपल जांच किए गए अस्पतालों में स्त्री रोग विभाग में 47 प्रतिशत रोगियों एवं औषधि विभाग में 75 प्रतिशत मरीजों को 2014-19 के दौरान सैंपल जांच चयनित महीनों में औसतन पांच मिनट से भी कम परामर्श का समय मिल सका।