होली की रात एक बार फिर ’यहां जीवंत होगी प्रहलाद लीला’ -धधकते अंगारों से निकलने के लिए तप पर बैठा पंडा -धधकते अंगारो से तीसरी बार निकलेंगे मोनू पंडा
मथुरा । ब्रज की होली में जहां उल्लास है, वहीं बहुत कुछ अद्भुत और अविश्वस्नीय है। जब तक आखों से न देख लें विश्वास होता नहीं। फालैनी की धधकती होली के बीच से प्रहलाद रूपी पण्डा का निकलना भी उन्हीं घटनाओं में से एक है। हर वर्ष कोसीकलां के शेरगढ़ रोड स्थित गांव फालैन में होती है। गांव फालैन में होली पर एक पंडा धधकते हुए अंगारों पर चलता है। इस बार भी मोनू पंडा धधकते अंगारों से निकलेगा। प्रहलाद नगरी फालैन में मोनू पंडा बुधवार को विधिवत पूजा-अर्चना के बाद तप पर बैठें। बेहद कठोर नियमों का पालन करते हुए एक माह तक पंडा घर नहीं जाएंगे। वह मंदिर पर रहकर अन्न का त्याग कर तप करेंगे। होलिका वाले दिन लग्न के अनुसार पंडा धधकती होलिका से होकर गुजरेंगे। जिला मुख्यालय से करीब 55 किलोमीटर दूर फालैन गांव है, जिसे प्रहलाद का गांव भी कहा जाता है। मान्यता है कि गांव के निकट ही साधु तप कर रहे थे। उन्हें स्वप्न में डूगर के पेड़ के नीचे एक मूर्ति दबी होने की बात बताई। इस पर गांव के कौशिक परिवारों ने खोदाई कराई। इसमें भगवान नृसिंह और भक्त प्रहलाद की प्रतिमाएं निकलीं। प्रसन्न होकर तपस्वी साधु ने आशीर्वाद दिया कि इस परिवार का जो व्यक्ति शुद्ध मन से पूजा करके धधकती होली की आग से गुजरेगा, उसके शरीर में स्वयं प्रहलादजी विराजमान हो जाएंगे। आग की ऊष्मा का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसके बाद यहां प्रहलाद मंदिर बनवाया गया। मंदिर के पास ही प्रह्लाद कुंड का निर्माण हुआ। तब से आज तक प्रहलाद लीला को साकार करने के लिए फालैन गांव में आसपास के पांच गांवों की होली रखी जाती है। फालैन को प्रहलाद का गांव भी कहा जाता है। गांव का पंडा परिवार प्रहलाद लीला की जीवंत किए हैं। मान्यता है कि प्रहलाद के अग्नि से सकुशल बच निकलने की खुशी में गांव के लोग होली खेलते हैं। जलती होली के मध्य से गुजरकर उस परंपरा और क्षण को लोग याद करते हैं। जब प्रहलाद को लेकर बुआ ने अग्नि में प्रवेश किया था। गांव के पंडित भगवान सहाय ने बताया कि बताया कि गांव में पंडा समुदाय के 10 से 15 परिवार रहते हैं। इनमें से करीब 20 परिवार के लोग ही इस परंपरा को निभाते हैं। वसंत पंचमी पर ब्रज में होली का डांडा गडऩे के साथ ही इस लीला की तैयारी शुरू हो जाती है। इन 15 घरों के बुजुर्ग आपस में बैठक करते है। बैठक के दौरान तय किया जाता है कि इस बार धधकती आग में कौन निकलेगा। स्वेच्छा से लोग अपना नाम रखते हैं। वर्ष 2021 में मोनू पंडा ने ये भूमिका निभाई थी। एक बार नाम तय होने के बाद वसंत पंचमी के बाद आने वाली पूर्णिमा को चयनित किए पंडा को एक माला दी जाती है। इस माला को लेकर चयनित किया गया पंडा उसी माला को लेकर गांव में स्थित प्रहलाद मंदिर पर माला लेकर भजन पूजा के लिए बैठ जाता है। यह भजन पूजा होली तक चलती है। इस बार धधकती आग से निकलने की प्रथा को मोनू पंडा निभाएंगे। गांव के लोगों के अनुसार, मोनू पंडा आज से जप पर प्रहलाद मंदिर में बैठ जाएंगे। मोनू पंडा ने एक माह तक मंदिर मे अखंड ज्योति के पास बैठकर जप करेंगे। एक माह तक जमीन पर सोएंगे और केवल फलाहार करेंगे।