भारत कैसे बने चिकित्सा का विश्व-केंद्र?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पारंपरिक चिकित्सा पद्धति को विश्व स्तरीय बनाने के लिए गुजरात के जामनगर से एक नए अभियान का सूत्रपात किया। उन्होंने कहा है कि भारत के इस आयुष-अभियान में आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होम्योपेथी आदि सभी पारंपरिक चिकित्साओं का योगदान होगा। इन चिकित्सा पद्धतियों को विश्वव्यापी बनाने के लिए कुछ नए कदम भी उठाए जाएंगे, जिसका नाम होगा- आयुष वीज़ा। यहां मेरा सुझाव यह है कि इस आयुष-वीजा का शुल्क सामान्य वीज़ा शुल्क से आधा क्यों नहीं कर दिया जाए? पड़ौसी देशों के लाखों-करोड़ों नागरिक इस पारंपरिक चिकित्सा के मुरीद हैं।
यह चिकित्सा एलोपेथी के मुकाबले बहुत सस्ती है। इसका लाभ पड़ौसी देशों के मध्यम और गरीब वर्ग के लोग भी उठा सकें, इसका इंतजाम भारत सरकार को करना चाहिए। पड़ौसी देशों के जिन लोगों का भारत में सफल इलाज होता है, वे और उनके परिवार के लोग सदा के लिए भारतभक्त बन जाते हैं। यह बात मैं अपने अनुभव के आधार पर कह रहा हूं। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा है कि हमारी औषधियों पर सरकार एक ‘आयुष चिन्ह’ भी जारी करेगा, जो उनकी प्रामाणिकता की गारंटी होगी।
भारत की पारंपरिक औषधियों का प्रचलन सभी पड़ौसी देशों में लोकप्रिय है। यहां तक कि चीन में भी ऐसी भारतीय औषधियां मैंने देखी हैं, जिनके नाम चीनी वैद्यों ने अभी तक मूल संस्कृत में ही रखे हुए हैं। हमारी आयुष औषधियों का व्यापार पिछले 7 वर्षों में तीन अरब से बढक़र 18 अरब डॉलर का हो गया है। इस क्षेत्र में बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण का योगदान अपूर्व और अतुलनीय है।
यदि केरल की तरह भारत के हर जिले में ऐसे पारंपरिक चिकित्सा केंद्र खुल जाएं तो भारत की आमदनी खरबों डॉलर तक पहुंच सकती है। चिकित्सा-पर्यटन की दृष्टि से भारत दुनिया का सबसे बड़ा केंद्र बन सकता है। भारत में लाखों-करोड़ों नए रोजगार पैदा हो सकते हैं। ऐसे आयुष-केंद्र सभी पड़ौसी देशों में भारत खोल सकता है।
सात साल बीत रहे हैं लेकिन जो काम अभी तक अधूरा पड़ा हुआ है, सरकार उसे भी पूरा करने की ठान ले तो सारे विश्व में भारत का डंका बजने लगेगा। मैंने अपने पहले और दूसरे स्वास्थ्य मंत्री श्री ज.प्र. नड्डा और डॉ. हर्षवर्द्धन से अनुरोध किया था कि वे एलोपेथी समेत सभी पेथियों को मिलाकर चिकित्सा का नया पाठ्यक्रम तैयार करवाएं और मेडिकल की पढ़ाई भारतीय भाषाओं के जरिए हो।
यदि ऐसा हो जाता तो चिकित्सा-विज्ञान में एक नए इतिहास का सृजन होता और विश्व में भारत का झंडा फहराने लगता। इस समय सारी दुनिया चिकित्सा के नाम पर चलनेवाली भयंकर लूट-पाट से परेशान है। यदि भारत समग्र चिकित्सा पद्धति का विकास कर सके तो दुनिया के दीन-हीन लोगों को उसका सबसे ज्यादा फायदा होगा।