वांगचुक ने आवाज उठाई
सोनम वांगचुक गांधी जयंती के मौके पर राजधानी आकर अपनी वे शिकायतें सरकार को बताना चाहते थे, जिनको लेकर कई महीनों से वे शक्तिशाली जन आंदोलन चला रहे हैं। लेकिन केंद्र उनसे संवाद तक करने को तैयार नहीं है।
समझना मुश्किल है कि शांतिपूर्ण ढंग से अपनी शिकायतें सरकार तक पहुंचाने दिल्ली आए सोनम वांगचुक और उनके समर्थकों को क्यों सिंघु बॉर्डर पर हिरासत में ले लिया गया? वांगचुक गांधी जयंती के मौके पर राजधानी आकर अपनी वे शिकायतें सरकार को बताना चाहते थे, जिनको लेकर कई महीनों से वे शक्तिशाली जन आंदोलन चला रहे हैं। कुछ महीने पहले उन्होंने लद्दाख में अपनी मांगों के समर्थन में लंबा उपवास भी रखा था।
लद्दाख में उनकी लोकप्रियता का आलम यह है कि उन्हें हिरासत में लिए जाने की खबर पहुंचते ही स्वत:स्फूर्त ढंग से पूरे इलाके में आम हड़ताल हो गई। वांगचुक की निर्दलीयता निर्विवाद है। जिस समय कश्मीर में अधिकांश ताकतें धारा 370 हटाने के खिलाफ थीं, वांगचुक ने इस कदम और लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाने का समर्थन किया था। लेकिन जब उन कदमों से लद्दाख की उम्मीदें पूरी नहीं हुईं, तो वांगचुक ने आवाज उठाई। इसी बीच चीन ने लद्दाख के बड़े इलाके में घुसपैठ कर ली, जिससे वहां के चरवाहों की जमीन उनकी पहुंच से बाहर हो गई। वांगचुक ने यह सवाल भी उठाया।
शायद यही बात नरेंद्र मोदी सरकार को चुभ गई, क्योंकि ये मसला उसकी दुखती नब्ज है। वांगचुक और उनके डेढ़ सौ समर्थकों ने एक सितंबर को लेह से दिल्ली तक पैदल यात्रा शुरू की थी। 30 सितंबर को जब यात्रा सिंघु बॉर्डर के रास्ते दिल्ली में दाखिल हुई, तो पुलिस ने वांगचुक और उनके समर्थकों को हिरासत में ले लिया। लद्दाख के लोग पिछले पांच साल लद्दाख में विधानसभा बनाने, लद्दाख को राज्य का दर्जा देने और उसे संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग कर रहे हैं।
इनके अलावा लेह और कारगिल के लिए लोकसभा की सीटें और राज्यसभा में भी प्रतिनिधित्व की भी मांग है। वांगचुक ने चीनी कब्जे से लद्दाख के इलाके को छुड़ाने की मांग भी रखी है। इसके अलावा चूंकि वे पर्यावरणवादी कार्यकर्ता हैं, इसलिए लद्दाख के बिगड़ते पर्यावरण को संभालने के कदम उठाना भी उनकी एक प्रमुख मांग है। मगर सरकार को इन मांगो से परेशानी है। उनसे संवाद तक करने को वह तैयार नहीं है।