विकास का एकमात्र मंत्र रखे जनसंख्या नियंत्रण
( अर्जुन राणा ) भारत विश्व में सबसे पहला देश था जिसने 1952 में परिवार नियोजन कार्यक्रम को राष्ट्रीय स्तर पर शुरू किया था। इसका परिणाम यह हुआ कि पिछले कुछ दशकों में देश की जनसंख्या वृद्धि दर में संतोषजनक गिरावट आई है। 1991 से 2000 में भारत की जनसंख्या वृद्धि दर 21.54 थी, जो अब 2001-2011 में घटकर 17.64 फीसदी हो गई है। इसके बाद भी जनसंख्या जिस हिसाब से बढ़ रही है उससे 2026 तक 40 करोड़ अतिरिक्त लोगों का दबाव हमारे सीमित संसाधनों पर बढ़ जाएगा। यही नहीं भारत जनसंख्या के मामले में चीन को भी पीछे छोड़ देगा। भारत की जनसंख्या बढ़ने का प्रमुख कारण है बढ़ती जन्म दर और घटती मृत्यु दर। प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारी पर काबू पाने और बेहतर चिकित्सीय सेवाओं की वजह से भारत में मृत्यु दर पहले से कम हो गई है। जन्म दर के बढ़ने की गति धीमी होने के बावजूद बढ़ती जनसंख्या विभिन्न समस्याओं का कारण बनी हुई है। आज बेरोजगारी, गरीबी और पर्यावरण पर दुष्प्रभाव जैसी समस्याओं से भारत जूझ रहा है तो इसका एक बड़ा कारण हमारी बढ़ती हुई जनसंख्या है। जनसंख्या विस्फोट से लोगों को परिचित कराने के लिए 11 जुलाई का दिन जनसंख्या दिवस के तौर पर पूरे विश्व में मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की संचालक परिषद की ओर से 1989 में यह दिन मनाना शुरू किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य है व्यक्ति, समाज, सरकार और योजनाकारों के मन में इस विषय से संबंधित समस्याओं के प्रति चेतना और संवेदना जगाना, साथ ही लोगों में बढ़ती हुई जनसंख्या से जुड़ी समस्याओं और खतरों के बारे में जागरूकता फैलाना। इस विशेष दिवस द्वारा लोगों को परिवार नियोजन के महत्व के साथ-साथ माता एवं बच्चे के स्वास्थ्य, लैंगिक समानता, गरीबी, शिक्षा, प्रजनन अधिकार आदि से परिचित कराया जाता है। इसके अलावा बाल विवाह से जुड़ी शारीरिक और मानसिक परेशानियों, यौन रोगों से बचाव जैसे विषयों पर भी जानकारी दी जाती है। विभिन्न गैर सरकारी संगठन, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य संगठन सरकार के साथ मिलकर इस दिवस पर इन मुद्दों के समाधान निकालने का प्रयास करते हैं। यह समझने की जरूरत है कि जब महिलाओं को शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य और राजनीतिक भागीदारी द्वारा सशक्त किया जाएगा तभी वे अपने से जुड़ी प्रजनन संबंधित समस्याओं का भी समाधान कर पाएंगी। शोध ने यह साबित किया है कि जो महिलाएं सशक्त हैं वे प्रजनन संबंधित निर्णय सबसे अच्छी तरह से लेती हैं। यह समय की मांग है कि परिवार कल्याण जैसे कार्यक्रमों को घर-घर तक पहुंचाने का कार्य बढ़ा देना चाहिए। विशेष तौर पर पिछड़े वर्ग की महिलाओं, आदिवासी महिलाओं एवं किशोरियों को आशा कर्मचारियों की मदद से परिवार नियोजन और यौन शिक्षा के बारे में जानकारी देने का काम प्राथमिकता के आधार पर किया जाना चाहिए। आने वाली पीढ़ी, चाहे वे लड़कें हो या लड़कियां, सभी को शिक्षित बनाया जाना चाहिए। यह पहले से सिद्ध है कि जिन परिवारों की महिलाएं शिक्षित हैं उनके यहां बच्चों की संख्या कम है। निरूसंदेह पुरुषों में भी जागरूकता फैलाना जरूरी है। इस क्रम में इस तथ्य से सभी को परिचित कराने की जरूरत है कि पुरुष नसबंदी एक बहुत ही आसान शल्य प्रक्रिया है। परिवार पूरा होने के बाद सभी पुरुष इसे आसानी से अपना सकते हैं। यह निराशाजनक है कि पुरुषों में इस शल्य प्रक्रिया की स्वीकार्यता न के बराबर है। इस शल्य प्रक्रिया से जुड़ी भ्रांतियों को दूर करने का काम अभी भी शेष है। प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़े कानूनों के बारे में भी पुरुषों, महिलाओं और किशोरियों को परिचित कराने की जरूरत बनी हुई। इस जरूरत की पूर्ति के बाद ही वे स्वास्थ्य संबंधित सुविधाओं को आसानी से प्राप्त कर सकेंगी और अपने आप को असुरक्षित गर्भ से बचा सकेंगी। भारत में अभी भी बहुत बड़ी संख्या में लड़कियों की शादी अल्पायु में हो जाती है। यह स्थिति उन्हें जल्दी और बार-बार गर्भावस्था के चक्र में पहुंचा देता है। यह उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। बाल विवाह से जुड़े कानून का कड़े तौर पर पालन होना चाहिए ताकि किशोरियां शिक्षा, स्वास्थ्य एवं अन्य सुविधाओं से वंचित न रहें। हम सभी इससे अवगत हैं कि भारत एक पितृसत्तात्मक देश है। अपने देश में एक बड़े वर्ग ने महिलाओं की प्रतिष्ठा उनके बेटे पैदा करने से जोड़ दी है। समाज में फैली इस भ्रांति को दूर करना जरूरी है, क्योंकि यह देखा जा रहा है कि जब तक महिलाएं बेटे को जन्म नहीं दे देतीं तब तक उन पर पति एवं परिवार के बाकी सदस्यों द्वारा बार-बार गर्भधारण करने के लिए दबाव बनाया जाता रहता है। हाल में जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए सरकार ने एक नया कार्यक्रम शुरू किया है जिसे सास-बहू सम्मेलन का नाम दिया गया है। यह कार्यक्रम 146 जिलों में शुरू किया जाएगा। ये जिले उन राज्यों में हैं जहां प्रजनन दर तीन फीसद या फिर इससे ज्यादा है, जबकि चूंकि राष्ट्रीय प्रजनन दर 2.1 फीसद है। अधिक प्रजनन दर वाले राज्यों में उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखंड, छत्तीसगढ़ और असम प्रमुख हैं। हमारे देश में औसत परिवारों में घर की बहू की भूमिका परिवार और परिवार नियोजन के बारे में नगण्य होती है। यह उनके हाथ में नहीं होता कि वह निर्णय लें कि उन्हें बच्चा चाहिए या नहीं या फिर कितने बच्चे चाहिए? सास-बहू सम्मलेनों में कन्या भू्रण हत्या को रोकने और पुरुषों के मुकाबले स्त्रियों की संख्या में कमी जैसी समस्याओं पर भी चर्चा की जाएगी। विश्व जनसंख्या दिवस 2017 की थीम है- परिवार नियोजन रू लोगों का सशक्तीकरण और राष्ट्र का विकास।यह थीम इसकी ओर ध्यान दिलाती है कि सुरक्षित एवं शैक्षिक परिवार नियोजन हर एक नागरिक का अधिकार है और यही लोगों को सशक्त बनाएगा। भारत की आधी आबादी महिलाओं की है। अगर वे सशक्त हो जाएं तो देश जनसंख्या विस्फोट की समस्या से निकलकर प्रगति के पथ पर आसानी से आगे बढ़ जाएगा। यह समझना भी आवश्यक है कि पुरुष और महिलाएं, दोनों के सशक्तीकरण से ही एक उन्नत देश का निर्माण होगा।