सदा जवां रहेगी चांद को छूने की तमन्ना
आखरीआंख
कठिन चुनौतियों और लाख असफलताओं के बाद भी मिथकों और विज्ञान के लिए सदियों से रहस्य बने खूबसूरत चांद को छूने की तमन्ना सदा जवां रहेगी । भारत अंतरिक्ष विज्ञान में एक और बड़ी उपलब्धि हासिल करते करते रह गया। इस बार सफलता उसे छूते हुए बिल्कुल उसके करीब से गुजर गई । बहुप्रतीक्षित चंद्रयान -2 को चांद पर उतरते देखने साक्षी बनने वाले करोड़ों भारतीयों को गहरा धक्का लगा है। चंद्रयान के एकाएक संपर्क टूटने से प्रतिभावान वैज्ञानिकों ही नहीं बल्कि करोड़ों आम देशवासियों के भी दिल टूटे हैं। लेकिन यह भी सच है कि इस हिमवर देश की हिमत नहीं टूटी है, प्रतिभावान वैज्ञानिकों ने हौसला नहीं खोया है। हिमत ए मर्दा मदद ए खुदा के अपने जबे को बरकरार रखते हुए वे फिर से एक बार असफलता से सफलता की कुंजी ढूंढ़ निकालने में कामयाब होंगे । देश के मुखिया की हौसलाअफजाई से निश्चित तौर पर इसरो के मुखिया के अपेक्षित कामयाब नहीं होने के आंसू जल्द ही सफलता के मोतियों में तब्दील हो जाएंगे। भले ही हमें इस हादसे के सदमे से उबरने में थोड़ा वक्त लगेगा ़लेकिन दूर के चंदा मामा को करीब से छूने की हमारी जवां होती तमन्ना कभी कम नहीं होगी।
अंतरिक्ष विज्ञान में स्वर्णिम अध्याय लिखने के लिए चंद्रमा पर भारत के दूसरे मिशन के तहत छह और सात सितंबर की दरयानी रात पूरा देश ऐतिहासिक गौरवपूर्ण लहों का गवाह बनने के लिए अपने टीवी सैट के सामने सांस रोके बेचैन था। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सत्तर बाों के साथ इसरो सेंटर बैंगलुरु में वैज्ञानिकों के बीच भारत को सैटेलाईट सुपर पावर बनते देखने बैठे हुए थे। इतना ही नहीं पूरी दुनिया की निगाहें भारत के अंतरिक्ष में बढ़ते इस कदम पर टिकी हुई थीं। लेकिन वैज्ञानिकों के चेहरे पर खुशी और आशंका की चिंता और मायूसी के बदलते भावों ने मोदी सहित करोड़ों लोगों की धड़कनेें बढ़ा दीं। जैसे ही राकेटमैन के नाम से प्रसिद्ध इसरो के चेयरमैन डां. के. सिवन ने खुशखबरी के इंतजार में बैठे पीएम को चंद्रयान के इसरो कंट्रोलरुम से संपर्क टूटने की जानकारी के बाद मीडिया को भरे गले से इसकी सूचना दी सभी स्तब्ध रह गए। दो पल के लिए किंकर्तव्यविमूढ़ पीएम मोदी ने भी खुद को संयत करते हुए इसरो प्रमुख सहित मौजूद हताश वैज्ञानिकों को गले लगा कर यह भी कोई छोटी उपलब्धी नहीं है और हम पत्थर पर लकीर खींचते हैं हुए कहते ढाढस देते जिस आत्मीयता से हिमत बंधाई वह निश्चित तौर पर मिशन मिसाईलों को फिर से नई सफलता के लिए नया हौसला देगा । चंद्रयान -दो का लैंडर ( विक्रम ) रात 1.53 बजे चांद के दक्षिणी धु्रव पर लैंड करने वाला था लेकिन मात्र एक मिनट और सतह से दो किमी पहले एकाएक उसका इसरो से संपर्क टूट गया। यदि चंद्रयान चांद पर साट लैंडिंग कर जाता तो यह कीर्तिमान रचने वाला भारत दुनिया का पहला देश बन जाता । इसके पहले अमेरिका, सोवियत रुस और चीन चांद पर तो लैंडिंग कर चुके हैं, लेकिन इसके दक्षिणी ध्रुव पर अब तक कोई नहीं पहुंचा है । सैंतालीस
दिन पहले इसरो बैंगलुरु स्पेस सेंटर से चांद की कक्षा में प्रक्षेपित भारत के चंद्रयान 2 के लैंडर विक्रम को चंद्रमा की सतह पर उतरने के बाद इसके अंदर से रोवर ( प्रज्ञान ) को 4.55 बजे उतरना था। लेकिन इसके सफलतापूर्वक लैंडिंग नहीं हो पाने का मलाल वैज्ञानिकों को ही नहीं बल्कि पूरे देशवासियों को भी है। बावजूद इसके इसरो वैज्ञानिकों के लिए आशाजनक है कि चंद्रयान का एक अन्य उपकरण आर्बिटर पांच दिन पहले यानी दो सितंबर को यान से अलग होकर सुरक्षित है और चांद के चक्कर लगा रहा है। लैंडर और रोवर भले ही चांद की तरह अब तक रहस्य बना हुआ है लेकिन आर्बिटर के महफूज बताए जाने से इन अज्ञात दोनों उपकरणों की जानकारी के साथ चांद पर पानी या बर्फ है कि नहीं, इसकी मैपिंग, सूचना और तस्वीर आदि आर्बिटर के माईक्रो और हाईपावर कैमरे से मिलने की उमीद बंधी हुई है । लैंडर व रोवर के सुरक्षित रहने पर चांद की सतह की पूरी प्राकृतिक जानकारी बतौर रिकार्डिंग इसरो को मिलती रहती। मिशन के दूसरे दिन इसरो ने दावा भी किया है कि पियान्वे प्रतिशत मिशन का काम हो चुका है और आर्बिटर 7.5 वर्ष तक चांद पर चक्कर लगाते सुरक्षित रहेगा। वैज्ञानिकों के साथ देश की जिज्ञासा, उत्सुकता और चिंता इसलिए भी है कि चंद्रयान दो मिशन की सफलता से न सिर्फ भारत वरन पूरी दुनिया का लोकहित जुड़ा हुआ है। क्योंकि मिशन का उद्देश्य चांद पर मानव बस्ती बसाने पानी हवा व हाईड्रोजन की तलाश करना है । यदि अभियान में सफलता मिलती है तो यह भारत की महासफलता के साथ पूरे संंसार के लिए बहुजन हिताय बहुजन सुखाय वाली बात होती । अब सवाल इस बात का है कि चंद्रयान 1 की सफलता की तरह चंद्रयान 2 पूर्ण रुप से सफल क्यों नहीं हो पाया ? यह मिशन क्या पूरी तरह से फेल्योर हो चुका है या आर्बिटर के रुप में आंशिक सफल है। क्या विक्रम चांद की सतह पर उतरा है या लैङ्क्षडग के पहले धूल से क्रैश हो चुका है । इस बारे में वैज्ञानिक डाटा के अन्वेषण के बाद ही पूरी तरह कुछ बता पाने और तीन दिन में आर्बिटर के जरिए विक्रम की लोकेशन मिल जाने की बातकह रहे हैं लेकिन इससे संपर्क अब तक नहीं हुआ है। हालांकि चंद्रयान मिशन को लेकर इसरो प्रमुख पहले ही लैंंडर के लैङ्क्षडग पूर्व के पंद्रह मिनट को जोखिमभरा बता चुके थे लेकिन वे आत्मविश्वास से भी भरे हुए थे । यदि क्रैसिंग हुई है तो इस चूक के कारणों और नए मिशन की तैयारी क्या है, इस बारे में इसरो के समय रहते खुलासे की देश को उमीद है, ताकि प्रतिस्पर्धी देशों व गैर शुभचिंतकों से दिगभ्रम की स्थिति से बचा जा सके । मंगल की सफलता के बाद 2008 में चंद्रयान 1 की सफलता से कान्फिडेंट भारत ने अभी न तो उमीद खोई है और न ही हिमत हारी है । इसकी वजह यह है कि वैज्ञानिक सफलता के लिए मिलने वाली असफलता के लिए तैयार रहते हैं और कभी निराश नहीं होते । उनके लिए हर प्रयोग एक आशा और हर असफलता कमयाबी के लिए एक अनुभव होती है। महज चार महीने पहले उन्होंने इजरायल के चंद्रयान को चांद के दक्षिणी धु्रव पर लैङ्क्षडग में नाकामयाब होते देखा था । इसके पहले विश्व के 114 चंद्र मिशनों में 44 फेल हो चुके हैं । एडिशन ने भी हजार बार असफल होने के बाद ही दुनिया को अंधेरे से मुक्त कराने वाले बल्व का आविष्कार किया था। चंद्रयान 2 को लेकर भारत के लिए ध्यान देने वाली बात यह है कि उसके बाद अमेरिका का नासा और फिर चीन चांद पर अपना यान भेजने वाला है। नासा 2024 में इसी दक्षिणी धु्रव पर अपना मानव यान भेजने की तैयारी कर रहा है । लिहाजा उसे भारत की सफलता और सूचना का बेसब्री से इंतजार था । इस दौरान भारत से तनातनी दिखाने वाले चीन की भी चंद्रयान भेजने की तैयारी है । इतना ही नहीं चंद्रयान मिशन के लिए पहले भारत ने अपने मित्र रुस से मदद मांगी थी लेकिन उसने दिलचस्पी नहीं दिखाई। इसी तरह नासा और यूरोपीय संघ ने तकनीकी मदद का प्रस्ताव दिया था लेकिन भारत ने मिशन में आत्मनिर्भर होने की बात कहते हुए इनकार कर दिया था। इस चंद्र मिशन की दौड़ में शामिल सभी बड़े देशों के साथ इसके करीब आने आने वाले मुल्कों की भी निगाहें भारत पर टिकी हुई थीं। बैलगाड़ी और सायकल से उपग्रह उपकरण ढुलाई के दौर से मंगल यान तक के पचास साल के आधुनिक दौर के इसरो की क्रांतिकारी यात्रा के गवाह बने युवा वैज्ञानिक साथियों के साथ राष्ट्रपति रह चुके मिसाइलमैन एपीजे कलाम से राकेटमैन के. सिवन तक यह उपग्रह केंद्र भारत सहित कई देशों के लिए राकेट व लांचिंग पेड तैयार करने का गौरव हासिल किए हुए हैं। लिहाजा भारत के अंतरिक्ष में तेजी से यूं बढ़ते कदम दुनिया के लिए सहज भी है और असहज भी है। भारत ने चंद्रयान मिशन 2 के लिए जिस तरह स्वदेशी तकनीक और कम लागत से लंबी साधना के साथ युद्ध स्तर पर तैयारी की थी वह भी इसमें रुचि रखने वाले देश जान रहे थे । 978 करोड़ रुपए के इस महती व गोपनीय मिशन के लिए इसरो के वैज्ञानिक 11 साल से पसीना बहा रहे। इसरो वैज्ञानिकों के मुताबिक इससे अधिक राशि को हालीवुड के बिग ब्लास्टर फिल्म एडवेंचर्स एंडगेम में लगी थी। इतनी कम लागत में इस मिशन पूर्ण को करने का दावा दुनिया के लिए हैरत वाली बात हो सकती है। इतना ही नहीं 47 दिन पहले चंद्रयान 2 छोड़े जाने के समय से ही एक हजार वैज्ञानिक खाना पीना, सोना दांव पर लगाते हुए जी जान से इस अभियान में जुटे थे दस साल से बैंगलुरु में चंद्रयान की अनवरत तैयारी और दक्षिण से चांद सी मिट्टी ला सतह बना लैडिंग का अयास कर रहे थे। मिशन को लेकर वैज्ञानिक कितने संवेदनशील होते हैं इसका अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि अस्सी के दशक में एक बाद भारत का एक उपग्रह समुद्र में गिरने पर यात व्यंग्यकार शरद जोशी ने राष्ट्रीय अखबार के लोकप्रिय व्यंग्य कालम में अपने घर से लगे तालाब में क्यों नहीं गिरा भैया.. व्यंग्योक्ति लिखी तो आहत कलाम ने उन्हें फोन कर मनोबल न तोडऩे का विनम्र आग्रह किया था । और जब 1980 में बहुचर्चित स्काईलैब गिरने की भारत में भी दहशत थी तो इसरो की पूरी टीम भारत सहित दुनिया को बचाने दिनरात जुटी थी। बहरहाल ऐसे लोकहितकारी अंतरिक्ष अभियान को धक्का लगने से एकबारगी सभी देशों ने भारत के प्रति सहानुभूति दिखाते सफलता की कामना की है। नासा के डिप्टी चीफ जेस मारहार्ड ने कहा है कि मैं बस इतना ही कहूंगा कि यह दुनिया के लिए बड़ा कदम होता। रुस व अमेरिका ने इन कठिन लहों में भारत के साथ खड़े होने की बात कहते हुए आगे के लिए मनोबल बनाए रखने कहा है। लेकिन सोशल मीडिया में चंद्रयान पर जिस तरह से नकारात्मक सवाल खड़े किए जा रहे हैं और कर्मकांडी लोग चंद्रदेव को चुनौती मंहगी पड़ी जैसा तंज कस रहे हैं और मोदी की मौजूदगी को वैज्ञानिकों का ध्यान बंटाने वाली राजनीतिक नौटंकी बता रहे हैं, वह दुर्भागयजनक है। यह मोराल तोडऩे नहीं बल्कि प्रगतिशील व वैज्ञानिक नजरिया व्यापक कर प्रतिभावान वैज्ञानिकों का मनोबल बढ़ाने की दरकार है।