मरुस्थलीकरण रोकने की मुहिम, ताकि बची रहे जमीन
आखरीआंख
भारत ने 2030 तक 2.1 करोड़ हेक्टेयर बंजर जमीन को उपजाऊ बनाने के अपने लक्ष्य को बढ़ाकर 2.6 करोड़ हेक्टेयर करने का फैसला किया है। इसकी घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा में आयोजित यूनाइटेड नेशन्स कन्वेंशन टु कॉबैट डिजर्टिफिकेशन (यूएनसीसीडी) के 14वें समेलन को संबोधित करते हुए की। उन्होंने जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता और भूमि क्षरण जैसे मुद्दों पर भारत के सहयोग का भरोसा दिलाया और कहा कि सरकार ने ठान लिया है कि भारत में सिंगल यूज प्लास्टिक के लिए कोई जगह नहीं होगी। उन्होंने जानकारी दी कि 2015 और 2017 के बीच भारत में पेड़ों और जंगल के दायरे में आठ लाख हेक्टेयर की बढ़ोतरी हुई है।
पर्यावरण की रक्षा को लेकर प्रधानमंत्री का संकल्प एक शुभ संकेत है। उमीद करें कि सरकार की नीतियों में यह और भी प्रखर रूप में झलकेगा। उपजाऊ जमीनों का मरुस्थल में बदलना निश्चय ही पूरी दुनिया के लिए भारी चिंता का विषय है। इसे अब एक धीमी प्राकृतिक आपदा के रूप में देखा जाने लगा है। संयुक्त राष्ट्र की जलवायु परिवर्तन संबंधी अंतर-सरकारी समिति (आईपीसीसी) ने पिछले महीने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि विश्व में 23 फीसदी कृषियोग्य भूमि का क्षरण हो चुका है, जबकि भारत में यह हाल 30 फीसदी भूमि का हुआ है। इस आपदा से निपटने के लिए कार्बन उत्सर्जन को रोकना ही काफी नहीं है। इसके लिए खेती में बदलाव करने होंगे, शाकाहार को बढ़ावा देना होगा और जमीन का इस्तेमाल सोच-समझकर करना होगा।
तकनीकी तौर पर मरुस्थल उस इलाके को कहते हैं, जहां पेड़ नहीं सिर्फ झाडिय़ां उगती हैं। जिन इलाकों में यह भू-जल के खात्मे के चलते हो रहा है, वहां इसे मरुस्थलीकरण का नाम दिया गया है। लेकिन शहरों का दायरा बढऩे के साथ सड़क, पुल, कारखानों और रेलवे लाइनों के निर्माण से खेतिहर जमीन का खात्मा और बची जमीन की उर्वरा शक्ति कम होना भू-क्षरण का दूसरा रूप है, जिस पर कोई बात ही नहीं होती। वन क्षेत्र का लगातार खत्म होना भी इसकी एक बड़ी वजह है लेकिन सबसे बड़ी वजह है निर्माण क्षेत्र का अराजक व्यवहार।
शहरीकरण की तेज प्रक्रिया में इधर खेतों में कंक्रीट के जंगल खड़े कर दिए गए हैं। कहीं कॉलोनियां बसाने के लिए झीलों, नदियों तक को पाट दिया गया, कहीं जमीन के बड़े हिस्से पर सीमेंट और रेत भर दी गई जिससे उसका हाल ऊसर से भी बुरा हो गया। नदियों से दूर बसी कॉलोनियों को भू-जल पर आश्रित छोड़ दिया गया, जिसके लगातार दोहन से हरे-भरे इलाके भी मरुस्थल बनने की ओर बढ़ गए। सरकार अगर सचमुच जमीन को उपजाऊ बनाना चाहती है तो उसे कंस्ट्रक्शन सेक्टर को नियंत्रित करना होगा। लेकिन इस दिशा में एक कदम भी आगे बढ़ाने के लिए हमें विकास प्रक्रिया पर ठहरकर सोचने के लिए तैयार होना होगा। बात तभी बनेगी जब सरकार के साथ-साथ समाज भी अपना नजरिया बदले।