बाल उत्सव फूलदेई के संरक्षण को सरकार की दरकार
बागेश्वर । फूलदेई त्यौहार प्रत्येक वर्ष चैत्र मास की संक्रांति को मनाया जाता है ।यह चैत्र मास का प्रथम दिन माना जाता है।और हिंदू परंपरा के अनुसार इस दिन से हिंदू नव वर्ष की शुरुआत मानी जाती है।यह त्यौहार नववर्ष के स्वागत के लिए ही मनाया जाता है।इस वक्त उत्तराखंड के पहाड़ों में अनेक प्रकार के सुंदर फूल खिलते हैं।
चैत्र मास की संक्रांति के दिन या चैत्र माह के प्रथम दिन छोटे–छोटे बच्चे जंगलों या खेतों से फूल तोड़ कर लाते हैं।और उन फूलों को एक टोकरी में या थाली में सजा कर सबसे पहले अपने देवी देवताओं को अर्पित करते हैं।
उसके बाद वो पूरे गांव में घूम -घूम कर गांव की हर देहली( दरवाजे) पर जाते हैं ।और उन फूलों से दरवाजों (देहली) का पूजन करते हैं।यानी दरवाजों में उन सुंदर रंग बिरंगे फूलों को बिखेर देते हैं।साथ ही साथ एक सुंदर सा लोक गीत भी गाते हैं।
फूल देई ……छम्मा देई , देणी द्वार……. भर भकार ……
लेकिन कुछ वर्षों से देखने मे आ रहा हैं कि उत्तराखंड के इस प्राचीन लोकपर्व की बच्चों के उत्साह में कमी आ रही हैं। कारण चाहे जो भी हो लेकिन हमारी सरकार को इस हमारी संस्कृति को बचाने के लिए ठोस पहल करने की नितांत आवश्यकता है।
बच्चों के इस फूलदेई के त्योहार को सरकार द्वारा पूर्व में हरेले की तर्ज पर ईनाम, देकर प्रोत्साहित किया जा सकता हैं । वैसे भी यह समूचे उत्तराखंड में एकमात्र सबसे बड़ा बच्चों का विशुद्ध मेला है।