तीसरा मोर्चा बना तो क्या करेंगे पीके?
भाजपा और कांग्रेस से मुकाबले के लिए एक तीसरा मोर्चा बन रहा है। इस बात का अंदाजा दूसरे मोर्चे का नेतृत्व कर रही कांग्रेस पार्टी को है। कांग्रेस की मदद के लिए आगे आए चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर को भी इसका अंदाजा है और इसी वजह से उन्होंने कहा है कि अगले चुनाव में भाजपा का मुकाबला सिर्फ दूसरा मोर्चा ही कर सकता है। वे मान रहे हैं कि दूसरा मोर्चा ही भाजपा को हरा सकता है। दूसरा मोर्चा का मतलब कांग्रेस और उसकी कमान वाली यूपीए है। इसमें कई प्रादेशिक क्षत्रप शामिल हैं। डीएमके, जेएमएम, एनसीपी जैसी बड़ी पार्टी इसमें हैं। इनके अलावा कुछ छोटी पार्टियां हैं, कुछ राजद ऐसी पार्टियां हैं, जो यूपीए में रही हैं लेकिन इस समय उससे अलग हैं और कुछ ऐसी पार्टियां हैं, जो हाशिए पर बैठ कर इंतजार कर रही हैं। इनके अलावा वामपंथी पार्टियां हैं, जो दूसरे मोर्चे के साथ जुड़ सकती हैं। परंतु प्रशांत किशोर के सामने मुश्किल यह है कि उनकी क्लायंट पार्टियां तीसरा मोर्चा बना रही हैं। उनकी कंपनी आई-पैक का तृणमूल कांग्रेस के साथ 2026 तक करार है तो आई-पैक ने हाल ही में तेलंगाना राष्ट्र समिति के साथ करार किया है। अगर ये दोनों पार्टियां तीसरे मोर्चे में रहती हैं और कांग्रेस के नेतृत्व वाले दूसरे मोर्चे से तालमेल नहीं करती हैं तो प्रशांत किशोर क्या करेंगे? वे अगर सिद्धांत रूप से भी दूसरे मोर्चे के साथ जुड़े रहते हैं तो फिर तेलंगाना के विधानसभा चुनाव में उनकी क्या भूमिका होगी? वे टीआरएस के लिए काम करेंगे या तटस्थ रहेंगे? यही दुविधा पश्चिम बंगाल में भी होगी। इसलिए कोई तीसरा मोर्चा बनने से पहले उनको आगे बढ़ कर इसे रोकना होगा और ज्यादा से ज्यादा पार्टियों को दूसरे मोर्चे के साथ लाना होगा। अगर कांग्रेस पार्टी उनके प्रस्ताव पर तैयार हो जाती तो वे यह काम बहुत आसानी से कर सकते थे। लेकिन कांग्रेस ने अपने लिए भी और उनके लिए भी मुश्किल खड़ी कर दी है।