जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ एफआईआर की मांग, सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर विचार को दी सहमति

नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दिल्ली हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा के सरकारी आवास से कथित तौर पर आधी जली हुई नकदी मिलने के मामले में एफआईआर दर्ज करने का निर्देश देने की मांग वाली याचिका पर विचार करने पर सहमति जताई. कथित तौर पर नकदी की यह बरामदगी जस्टिस वर्मा के लुटियंस दिल्ली स्थित आवास में 14 मार्च की रात करीब 11.35 बजे आग लगने के बाद हुई थी.
अधिवक्ता मैथ्यूज जे नेदुम्परा ने भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष यह मामला उठाया. नेदुम्परा ने पीठ से मामले की तत्काल सुनवाई करने का आग्रह किया. पीठ ने वकील से कहा कि उनकी याचिका पर विचार किया जाएगा. याचिकाकर्ता ने मामले में वीडियो समेत सभी दस्तावेज सार्वजनिक करने के लिए सीजेआई की सराहना की. याचिकाकर्ता ने कहा कि जज के खिलाफ एफआईआर दर्ज होनी चाहिए.
पीठ ने वकील से कहा कि वह कोई सार्वजनिक बयान न दें, साथ ही उसे आश्वासन दिया कि उसे सुनवाई की तारीख मिल जाएगी. अधिवक्ता मैथ्यूज जे नेदुम्परा और तीन अन्य द्वारा 23 मार्च को दायर याचिका में के. वीरास्वामी मामले में 1991 के फैसले को भी चुनौती दी गई है, जिसमें शीर्ष अदालत ने फैसला दिया था कि भारत के मुख्य न्यायाधीश की पूर्व अनुमति के बिना उच्च न्यायालय या शीर्ष अदालत के किसी न्यायाधीश के खिलाफ कोई आपराधिक कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती.
याचिका में कहा गया कि न्यायाधीशों को दी गई छूट कानून के समक्ष समानता के संवैधानिक सिद्धांत का उल्लंघन है तथा इससे न्यायिक जवाबदेही और कानून के शासन के बारे में चिंताएं पैदा होती हैं. याचिका में कहा गया है, न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के सरकारी आवास से अग्निशमन दल/पुलिस द्वारा भारी मात्रा में धनराशि बरामद करने की घटना, जब उनकी सेवाएं आग बुझाने के लिए ली गई थीं, भारतीय न्याय संहिता के विभिन्न प्रावधानों के तहत दंडनीय अपराध है और पुलिस का यह कर्तव्य है कि वह एफआईआर दर्ज करे.
याचिका में कहा गया है कि कानून के समक्ष समानता और कानून का समान संरक्षण हमारे संविधान का मूल है. तथा कानून के समक्ष सभी समान हैं तथा आपराधिक कानून सभी पर समान रूप से लागू होते हैं. चाहे किसी की स्थिति, पद आदि कुछ भी हो. याचिका में कहा गया है कि हमारी संवैधानिक व्यवस्था में एकमात्र अपवाद, बल्कि छूट, राष्ट्रपति और राज्यपालों को दी गई है, तथा न्यायमूर्ति वर्मा के मामले में कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई है.
सीजेआई ने जांच के लिए एक इन-हाउस कमेटी गठित की और दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी के उपाध्याय से कहा कि जस्टिस वर्मा को कोई न्यायिक कार्य न सौंपा जाए. सोमवार को जस्टिस वर्मा को अगले आदेश तक रोस्टर से हटा दिया गया. सीजेआई संजीव खन्ना की अगुवाई वाले सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने सोमवार को एक प्रस्ताव जारी कर केंद्र को जस्टिस यशवंत वर्मा को उनके पैतृक हाईकोर्ट इलाहाबाद हाईकोर्ट में वापस भेजने की सिफारिश की, जहां से उन्हें 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट में स्थानांतरित किया गया था.