खुद मिठाई बनाई, तब दीवाली मनाई : राहुल गांधी
नई दिल्ली । इस वर्ष की दिवाली पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ऐसा उत्सव मनाया जिसने सिर्फ पारंपरिक दीपावली का संदेश नहीं दिया, बल्कि सामाजिक संवाद, लोक-संपर्क और जन-भावना को भी झकझोर दिया। उन्होंने दिल्ली की पुरानी और प्रतिष्ठित मिठाई की दुकान Ghantewala (ओल्ड दिल्ली) में जाकर ‘इमरती’ और ‘बेसन लड्डू’ बनाने का प्रयास किया।
उन्होंने खुद एप्रन पहनकर मिठाई बनाने का काम-कार देखा और कोशिश की — इस प्रकार वे सिर्फ ‘मंच’ पर तस्वीरें बनाने नहीं गए, बल्कि खुद हाथ आज़माया।
उन्होंने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा — “दीपावली की असली मिठास सिर्फ थाली में नहीं, बल्कि रिश्तों और समाज में है”।
दुकान के मालिक ने हल्के अंदाज़ में कहा कि उन्हें इंतज़ार है राहुल जी के विवाह का, ताकि शादी के लिए मिठाई का ऑर्डर उन्हें मिल जाए।
राहुल गांधी का मिठाई की दुकान पर जाना और खुद मिठाई बनाना यह संदेश देता है कि नेता ‘कमरे में बैठकर’ नहीं बल्कि आम-लोगों की दुनिया में उतरकर चल सकते हैं। इससे जनता में ‘यह नेता हमारे जैसा है’ की भावना बढ़ सकती है।
पुरानी दुकान और पारंपरिक मिठाई को चुनने से लोक-संस्कृति का सम्मान दिखा।
‘हिफ़ाज़ती छवि’ से हटकर सहजता का अभ्यास हुआ जिन लोगों को नेता दूर लगते थे, उन्हें थोड़ा-बहुत नजदीक महसूस हुआ होगा।
दिवाली जैसे त्योहारों में सिर्फ दीप-दान और पटाखों की भागदौड़ नहीं, बल्कि रिश्तों-परिवार-सामुदायिक जुड़ाव भी महत्वपूर्ण हैं।
राहुल गांधी ने इसे सीधे तौर पर कहा जब उन्होंने “रिश्तों और समाज” की बात की।
एक मायने में यह राजनीतिक रूप से भी एक संकेत था कि उनका फोकस सिर्फ विकास-वाक्यांश तक सीमित नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता-संवेदना पर भी है।
इस तरह की छवियाँ और घटनाएँ राजनीतिक रूप से भी बहुत मायने रखती हैं: चुनाव-पूर्व समय में नेता की ‘मानव चेहरा’ बनाने की कोशिश के तौर पर देखा जा सकता है। मीडिया-और-सोशल-मीडिया के लिए एक अच्छा कंटेंट बनती है मीठाई बनाते-हुए नेता, पारंपरिक दुकान में, लोगों के बीच।
विपक्षी राजनीति और सामाजिक-हिजाबों के बीच ‘लोक-संपर्क’ के एक नए आयाम की तरह यह कदम उभराहैं।
कुछ लोगों ने इसे प्रसन्नता के साथ लिया ‘नेता हमारे बीच आया’, ‘त्योहार में शामिल हुआ’ जैसा भावनजर आता हैं।
आज के समय“नेता-आराम-में” छवि के बजाय “नेता-सामान्य-में” छवि का क्रेज बढ़ रहा है — लोग चाहते हैं कि उनके नेता बहुत ऊँची निकलने की बजाय करीब महसूस हों।
त्योहार और मिठाई जैसे प्रतीक-माध्यम जनता को सहज रूप से जोड़ते हैं।
मीडिया-परिवर्तन, सोशल-मीडिया प्लेटफॉर्म्स के कारण ऐसा संवाद त्वरित रूप से फैला; वीडियो पोस्ट करना, सोशल पोस्ट करना आदि पब्लिक इमेज के लिए काम आता है।
चुनाव-समय में होने के चलते, यह कदम राजनीतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है । सामाजिक-संवेदनशीलता, लोक-संवाद, छवि-निर्माण-सफलता आदि का मिश्रण है।
राहुल गांधी द्वारा इस दिवाली पर पारंपरिक मिठाई दुकान में जाकर और खुद मिठाई बनाकर मनाया गया उत्सव साधारण-ता, लोक-संवाद और सांस्कृतिक जुड़ाव की दिशा में एक सशक्त संकेत है। यह दिखाता है कि नेता सिर्फ कार्यक्रम-मंच तक सीमित नहीं रहना चाहते; वे उस सामान्य-लोक-जीवन-परिस्थिति में उतरना चाहते हैं जहाँ जनता-समाज होता है।
हालांकि, इसका वास्तविक प्रभाव तभी टिकाऊ होगा, जब यह छवि-निर्देशन किसी ठोस नीति-प्रेरणा, जन-संवाद-प्रवर्तनों या सामाजिक-कार्य से जुड़े। फिलहाल यह कदम सकारात्मक प्रतीक-संचार के रूप में देखा जा सकता है जनता-संपर्क का एक सधा हुआ रूप और इसने त्योहार-मोहोल को राजनीति-संदर्भ में भी हल्के-पल वाले संवाद में बदल दिया है।
