December 3, 2024

राफेल : पारदर्शी बने खरीद फरोख्त प्रणाली

आम चुनावों के समर में जब भाजपा राफेल मुद्दे पर राहत महसूस कर रही थी, तभी सुप्रीमकोर्ट ने मुद्दे पर पुनर्विचार याचिकाएं स्वीकार कर सरकार की चिंताएं बढ़ा दी हैं। कोर्ट ने सरकार की उस दलील को खारिज किया कि चुराये गये दस्तावेजों के आधार पर पेश दलीलों को स्वीकार न किया जाये। रक्षा मंत्रालय द्वारा सूचनाओं के सार्वजनीकरण से उत्पन्न राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंताओं की बात से आगे बढ़कर अदालत ने माना है कि यदि इससे सार्वजनिक हित जुड़ा हो तो ऐसा होना चाहिए। सवाल इस मुद्दे की प्रासंगिकता का है। सबसे महत्वपूर्ण यह कि कोर्ट ने माना कि न संसद और न ही अंग्रेजी शासन के दौर का कोई कानून सरकारी गोपनीयता के नाम पर सूचना को प्रकाशन से नहीं रोक सकता। साथ ही यह भी कि मीडिया ने भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उल्लेखनीय है कि 14 दिसंबर, 2018 को सुप्रीमकोर्ट ने एक फैसले में कहा था कि राफेल विमान सौदे की खरीद प्रक्रिया में किसी तरह की अनियमितता नजर नहीं आती। नि:संदेह कई मुद्दे राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर सार्वजनिक किये जाने की दृष्टि से संवेदनशील होते हैं। यदि पारदर्शिता के अभाव में अविश्वास उपजे तो जनता को हकीकत जानने का अधिकार है।
इसमें दो राय नहीं कि इस विवाद के राजनीतिक निहितार्थ हैं। इस मुद्दे की पारदर्शिता का सवाल खड़ा करने वालों का भी पारदर्शिता से गहरा सरोकार नहीं रहा है। स्पष्ट है कि यह मामला रक्षा सौदों की पारदर्शिता से जुड़ा है, जिसको लेकर पिछली सरकारों में विवाद उठते रहे हैं। राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोपों का खमियाजा भारतीय सेना को भुगतना पड़ता रहा है। उसे अपनी जरूरत के हथियार समय पर नहीं मिल पाये हैं। जाहिर है राफेल डील से जुड़े नये दस्तावेजों के साथ मुद्दा न्यायिक परिदृश्य में आने के बाद राजग सरकार को ठोस तथ्यों के साथ अदालत के सामने आना होगा। जनता में भी मुद्दे के सभी पक्षों को जानने की रुचि बढ़ेगी। एक निष्कर्ष यह भी है कि यदि खरीद प्रक्रिया में पारदर्शिता का पूरी तरह से पालन किया गया होता तो विवाद इतना तूल न पकड़ता। किसी राजनीतिक दल ने बोफोर्स के मुद्दे को उछाला तो किसी ने राफेल को। ऐसे में उमीद की जानी चाहिए कि राफेल खरीद पर कोई फैसला लेते वक्त न्यायालय रक्षा सौदों से जुड़े कुछ दिशा-निर्देश तय करे ताकि भविष्य में फिर ऐसे अप्रिय विवाद न उठ सकें। साथ ही सेना की जरूरत के सामान की आपूर्ति आवश्यकता के अनुरूप व समय से हो सके।