ईवीएम का जिन फिर बाहर
अर्जुन राणा
अंतिम चरण के मतदान के तुरंत बाद अचानक ईवीएम पर अिवश्वास दर्शाने की विपक्षी दलों की जो होड़ शुरू हुई, उसके निहितार्थ समझना कठिन नहीं है। विरोधाभास यह है कि एक तरफ एक्जिट पोल के नतीजों को सिरे से खारिज किया जा रहा है, वहीं ईवीएम मशीनों की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाये जा रहे हैं। यानी 23 मई को मतों का पिटारा खुलने के बाद आये परिणामों को संदिग्ध बनाया जा सके। यूं तो जब भी प्रत्याशी हारता है तो ईवीएम के सिर ठीकरा फोडऩा फैशन-सा हो गया है। मगर अविश्वास की यह व्याया अपनी सुविधानुसार है। जब पंजाब, दिल्ली विधानसभा, राजस्थान, मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ के चुनाव व उपचुनावों के परिणाम विपक्षी दलों के पक्ष में आये तो इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों की विश्वसनीयता को लेकर कोई सवाल नहीं उठा। यानी चित भी मेरी, पट भी मेरी। बावजूद इसके कि चुनाव आयोग की हैकिंग व अन्य छेड़छाड़ की खुली चुनौती को कोई राजनीतिक दल स्वीकार नहीं कर सका। अभी तक कोई?ऐसा प्रमाण सामने नहीं आया जो इस बात की पुष्टि कर सके कि ईवीएम मशीनों से कोई छेड़छाड़ की गई है।?हालिया तूफान भी सोशल मीडिया पर उछाली गई सूचनाओं के आधार पर उठा, जिसमें कहा गया कि बिना सुरक्षा के ईवीएम मशीनों को ले जाया जा रहा था। हालांकि बिहार में चुनाव अधिकारियों ने इसका खंडन किया है। यही वजह है कि मंगलवार को चुनाव आयोग से 22 विपक्षी दलों के मिलने के बाद रखी गई मांगों को अव्यावहारिक बताकर आयोग ने खारिज कर दिया। दरअसल विपक्षी दलों की मांग थी कि वीवीपैट पर्चियों का मिलान मतों की गिनती से पहले किया जाये जो मतगणना के अंत में किया जाता है। साथ ही मांग की कि गड़बड़ी की आशंका में किसी भी चुनाव क्षेत्र में सभी मतों का मिलान पर्ची से किया जाये।
तीन सदस्यों वाले चुनाव आयोग ने बुधवार को हुई बैठक में इन मांगों को अस्वीकार किया। इससे पहले मंगलवार को सुप्रीमकोर्ट की दो सदस्यीय अवकाश पीठ के सामने ईवीएम में सौ फीसदी मतों की गिनती वीवीपैट से कराने की मांग को पीठ?ने खारिज कर दिया। जब मुय न्यायाधीश पचास फीसदी की मांग को अव्यावहारिक बताकर खारिज कर चुके थे तो अवकाश?पीठ के सामने सौ फीसदी की मांग रखना महज सुर्खियां बटोरने व चुनाव को संदिग्ध बनाने की कोशिश ही कही जा सकती है। यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थों के लिये जिस तरह ईवीएम की विश्वसनीयता संदिग्ध बनाने की कोशिश हो रही है, उससे हमारे लोकतंत्र की साख भी दांव पर लग रही है। ऐसी सूचनाएं दुनिया के हर कोने तक पहुंचती हैं। ऐसे में यदि हमारी चुनाव प्रणाली संदिग्ध बनायी जाती है तो राजनीतिक दलों की विश्वसनीयता भी संदिग्ध हो जायेगी। यहां यह कहना सामयिक होगा कि पिछले दिनों आचार संहिता के उल्लंघन के मामलों में चुनाव आयोग ने जो हीला-हवाली की, उससे भी चुनाव आयोग की साख को आंच पहुंची। सुप्रीमकोर्ट की बार-बार टिप्पणियों के बाद जागने और चुनाव आयुक्तों के बीच मतभेदों की खबर ने संवैधानिक संस्था व लोकतंत्र के रखवाले के रूप में चुनाव आयोग से भरोसा कम किया। संस्था के दिग्गज मुय चुनाव आयुक्तों टी. एन. शेषन व जे. एम. लिंगदोह की गौरवशाली विरासत को अक्षुण्ण रखने में मौजूदा चुनाव आयोग सफल नहीं रहा। यही वजह है कि विपक्षी दल सुनियोजित तरीके से चुनाव प्रणाली को कठघरे में खड़ा करने के प्रयास में जुटे हैं। यह भारतीय लोकतंत्र के लिये शुभ संकेत नहीं कहा जा सकता। इससे देश?की प्रतिष्ठा को भी आंच आती है। ऐसे में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा व्यक्त चिंताओं पर भी गौर किया जाना चाहिए।