November 21, 2024

दूसरी पारी में मोदी की कूटनीतिक चुनौतियां

( आखरीआंख )
प्रधानमंत्री मोदी के पहले कार्यकाल के दौरान देश की विदेश नीति पर उनकी विशिष्ट छाप रही है। चुनाव प्रचार शुरू होने से कुछ हते पहले उन्हें रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की ओर से शुभकामनाओं समेत संदेश मिला था, जिसमें रूस की ओर से देश का सर्वोच समान प्रदान करना बताया गया था। इसके साथ ही यूएई के सुल्तान शेख खलीफा बिन जायद ने भी मोदी को अपने देश के सर्वोच समान से नवाजा है। अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति ट्रंप और पूर्ववर्ती ओबामा के साथ बेतक्कलुफी वाला दोस्ताना रखने के अलावा विश्व के अन्य नेतागण जैसे कि फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रोन और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बेगम खालिदा जिया के साथ मोदी के गहरी मैत्री वाले संबंधों के बारे में सबको पता है।
लोकसभा चुनाव के आधिकारिक नतीजे घोषित होने से पहले चीन की अखबार ‘ग्लोबल टाइसÓ ने मोदी की नीतियों की प्रशंसा करते हुए एक लेख छापा है, जिसका शीर्षक है : ‘मोदी का अक्स चीन-भारत के आपसी भरोसे को और प्रगाढ़ करेगा।Ó इसमें वुहान में मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई उस मुलाकात की श्लाघा की गई है जहां डोकलाम के मुद्दे पर तनाव को खत्म करने पर संवाद हुआ था। अखबार ने अमेरिका और जापान की सलाह के बावजूद भारत द्वारा एशिया आधारभूत बैंक की सदस्यता लेने पर मोदी की तारीफ की है। उमीद है कि चीन का यह नया रवैया सीमा पर शांति स्थापना बनाये रखने हेतु भारत और चीन की कोशिशों को जारी रखने का एक संकेत है। हालांकि क्षेत्रीय सुरक्षा के मुद्दे, जिसमें चीन द्वारा अपने ‘सदाबहार दोस्तÓ पाकिस्तान को सैन्य और परमाणु सहायता जारी रखना शामिल है, को लेकर भारत और चीन के विचारों में विरोधाभासों में कमी हो पाएगी, इस बारे में अधिक आशा करना जल्दबाजी होगी।
दिनोंदिन अनिश्चित होती जा रही वैश्विक व्यवस्था में भारत के हितों को आगे बढ़ाना प्रधानमंत्री मोदी के लिए चुनौतीपूर्ण कार्य होगा और इसका अनुभव उन्हें अपने पहले कार्यकाल में मिल ही चुका है। मौजूदा अनिश्चितता और तनावों के पीछे एक मुय वजह वह विस्फोटक स्थिति है जो वैश्विक संबंधों में उस वक्त से पैदा होनी शुरू हुई है जब से डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के राष्ट्रपति का पद संभाला है। ट्रंप के कार्यकाल में अमेरिका के संबंधों में अपने निकट यूरोपियन सहयोगी फ्रांस और जर्मनी और यहां तक कि यूके के साथ भी खटास पैदा हो गई है। ट्रंप ने स्टील और एल्यूमीनियम आयात पर शुल्क बढ़ाकर अपने पड़ोसी देशों कनाडा और मेक्सिको के साथ भी रिश्ते बिगाड़ लिए हैं, हालांकि जवाबी कार्रवाई के चलते इस कदम को वापस लेना पड़ गया है। ठीक इसी तर्ज पर यूरोपीय नेताओं ने भी ट्रंप की व्यापार नीतियों पर प्रत्युत्तर वाला रवैया अपनाया है। भारत को भी द्विपक्षीय व्यापार पर इसी किस्म की चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। इससे पार पाने के लिए अमेरिका और विश्व व्यापार संगठन के साथ सावधानीपूर्वक कदम उठाने होंगे।
चीन से अमेरिका में आयात होने वाली वस्तुओं पर दंडात्मक शुल्क लगाने के चलते इनके बीच फिलहाल काफी खिंचाव पैदा हो गया है। ट्रंप प्रशासन ने संचार क्षेत्र की भीमकाय चीनी कंपनी हुआवे पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए हैं। इससे राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा चीन को दुनिया की प्रभावी शक्ति बनाने वाली महत्वाकांक्षा को झटका लगेगा। हालांकि ट्रंप अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी में अपने इन कदमों को न्यायोचित बता रहे हैं। कई जगहों पर चीन के गैरवाजिब समुद्री सीमा संबंधी दावों की परवाह न करते हुए अमेरिका ने अपने प्रशांत महासागर में तैनात नौसेना बेड़े को अब चीन के दक्षिणी सागर में तैनात कर दिया है। इस स्थिति से निपटने के लिए भारत को अत्यंत सावधानी बरतनी होगी, जिसमें हमें अपने मित्र देशों वियतनाम और इंडोनेशिया के समुद्री इलाकों पर चीन द्वारा जताए जा रहे बेजा दावों पर उनके साथ खड़े होने के अलावा इस बात का ध्यान भी रखना है किहम पर कहीं यह ठप्पा न लग पाए कि हमने अपने निर्णय अमेरिका के प्रभाव में आकर लिए हैं।
हालांकि अमेरिका और विश्व व्यापार संगठन के साथ विवादों को सुलझाने में भारत आत्मविश्वास भरा रवैया अपनाए हुए है, तथापि रूस से हथियार खरीदने पर लगाए गए प्रतिबंधों के चलते अमेरिका के साथ द्विपक्षीय संबंधों में तनाव पैदा होने की गुंजाइश है। रूस निर्मित मिसाइल रोधी प्रणाली एस-400 के सौदे में अमेरिका छूट दे सकता है और पहले से खरीदे जा चुके रक्षा उपकरणों के लिए स्पेयर पाट्र्स की आपूर्ति पर भी प्रतिबंध लगाने की उसकी मंशा दिखाई नहीं देती, लेकिन भारत रूस से अनेकानेक हथियार प्रणालियां खरीदने की प्रक्रिया में है, जिसमें पनडुब्बियां, टैंक, लड़ाकू हवाई जहाज, फ्रिगेट और एके-203 राइफलों का निर्माण शामिल है।
अमेरिका द्वारा बैंकिंग लेनदेन पर लागू किए प्रतिबंधों की वजह से ईरान से तेल की आपूर्ति जारी रखना अब हमारे लिए लगभग असंभव बन जाएगा। जहां इराक, सऊदी अरब और यूएई हमारी तेल जरूरतों को बखूबी पूरा कर सकते हैं लेकिन ईरान से मिलने वाला तेल सस्ता होने के साथ ढुलाई के खर्च अन्य देशों के मुकाबले कम बैठते हैं। यूरोपियन संघ, रूस और चीन ईरान पर लगाए गए अमेरिकी प्रतिबंधों की वैधता से इत्तेफाक नहीं रखते। अमेरिका के प्रतिबंध एकतरफा हैं और ईरान के परमाणु कार्यक्रम को बंद करवाने वाली उस संधि की उल्लंघना करते हैं, जिस पर इन सभी ताकतों ने भी दस्तखत किए थे। जहां दुनियाभर में यादातर देश अमेरिका के नवीनतम प्रतिबंधों को बेजा मानते हैं वहीं भारत, रूस और चीन के लिए ये मौके इस वजह से उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं कि इससे पार पाने अथवा पिछला रास्ता निकालने में सहयोग बनाएं। यूरोपियन संघ ने भी अमेरिकी प्रतिबंधों को अवांछित ठहराया है। भारत के लिए व्यावहारिक यही होगा कि इस मुद्दे पर एकतरफा कदम उठाने से बचा जाए।
पिछले कुछ वर्षों में भारत ने द्विपक्षीय और क्षेत्रीय पहल में बढ़ोतरी करते हुए मलक्का से लेकर अदन की खाड़ी समेत समूचे हिंद महासागर क्षेत्र में अपने प्रभाव को विस्तार दिया है। जहां एक ओर ‘आसियानÓ संगठन चीन की हरकतों से कुछ कमजोर पड़ा है वहीं बढ़ते चीनी प्रभाव और दबंगता को संतुलित करने के लिए भारत ने अमेरिका से साथ पहले से यादा आपसी संवाद बनाते हुए जापान, इंडोनेशिया और वियतनाम जैसे देशों के साथ राजनयिक सक्रियता को बढ़ाया है। अरब सागर के खाड़ी मुल्कों के साथ हमारे संबधों में बहुत सुधार हुआ है, जहां 60 लाख से यादा भारतीय काम कर रहे हैं और सालाना लगभग 60 बिलियन डॉलर भेजकर देश के विदेशी मुद्रा भंडार में खासा योगदान कर रहे हैं।
भारतीय उपमहाद्वीप की बात करें तो पाकिस्तान द्वारा ‘दक्षेसÓ देशों के बीच आर्थिक एकीकरण के काम में अड़ंगा लगाने की भरपूर कोशिशों की हमने ‘बिसटेकÓ देशों के साथ क्षेत्रीय सहयोग बनाकर भरपाई कर ली है। अफगानिस्तान तक भारतीय वस्तुओं की पहुंच हेतु रास्ता देने से इनकार करने के चलते पाकिस्तान को दक्षिण एशियाई देशों के बीच आर्थिक एकीकरण के लिए बने मंच में शामिल नहीं किया गया है। हालांकि सार्वजनिक रूप से हमें पाकिस्तान के साथ उचस्तरीय ‘समग्र संवादÓ बनाने के लिए जल्दबाजी दिखाने की जरूरत नहीं है तथापि पर्दे के पीछे वहां की सरकार और सेना के साथ संवाद बनाए रखना होगा। बालाकोट हवाई कार्रवाई के बाद पाकिस्तान पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव बढ़ गया है। प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान की परमाणु धमकी की हवा निकाल दी है। करतारपुर गलियारा खोलने वाले कदम के साथ दोनों मुल्कों के बीच शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक संबंधों को विस्तार दिया जा सकता है। सीमा पार स्थित धार्मिक स्थलों और ऐतिहासिक जगहों के लिए पर्यटन समूहों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। इन कदमों का दुनिया के अलावा पाकिस्तानी लोग भी स्वागत करेंगे।