कांग्रेस में नई बयार की तरह हैं सुक्खू
एक आम घर से आए और राजनीति में अपने संघर्ष या कार्य-कौशल से उभरे नेता के लिए अगर कांग्रेस में ऊंचे पदों पर जगह बनने लगी है, तो इससे पार्टी के बेहतर भविष्य का अनुमान लगाया जा सकता है।
सुखविंदर सिंह सुक्खू का हिमाचल प्रदेश में विधायक दल का नेता चुना कांग्रेस पार्टी में बही नई बयार की तरह है। एक आम घर से आए और राजनीति में अपने संघर्ष या कार्य-कौशल से उभरे नेता के लिए अगर कांग्रेस में ऊंचे पदों पर जगह बनने लगी है, तो इससे पार्टी के बेहतर भविष्य का अनुमान लगाया जा सकता है। वरना, धीरे-धीरे यह धारणा बनती गई थी कि कांग्रेस में पहली पीढ़ी के नेताओं के लिए आगे बढऩे के दरवाजे बंद हैं। पार्टी के ऊपरी सतह पर सिर्फ उन नेताओं के लिए जगह है, जो राजनेता परिवार या फिर धनी-मानी घरानों से आए हों। कांग्रेस को जिन बातों से सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा, उनमें ये गहराती गई धारणा भी है। इसके अलावा कांग्रेस नेतृत्व ने अपने को ‘शासन की स्वाभाविक पार्टी’ मान कर और वंचित-गरीब जनता की नुमांदगी छोड़ कर भी अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारी। यह अच्छी बात है कि कम से कम राहुल गांधी को यह महसूस हुआ कि देश का शासक वर्ग अब उसे अपनी पार्टी नहीं समझता- इसलिए कांग्रेस को अब जनता के बीच जाने की जरूरत है।
भारत जोड़ो यात्रा के साथ उन्होंने इसकी शुरुआत की है। लेकिन यह ध्यान में रखना चाहिए कि यह शुरुआत भर है। भारत जैसे देश में जहां आज भी मोटे तौर पर गरीब वर्ग बहुसंख्या में है, वहां उनकी नुमाइंदगी का दावा छोड़ कर साढ़े तीन दशक पहले कांग्रेस ने खुद को धन-निर्माण (वेल्थ क्रिएशन) की प्रबंधक पार्टी बना लिया। उसके साथ वेल्फेयर (जन कल्याण) का आवरण उसने जरूर अपनाया, लेकिन राजनीति सिर्फ प्रबंधन और चारा फेंकने की कला नहीं है। प्रतिनिधित्व इसका सबसे प्रमुख पहलू है। यह यूं ही नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार-बार अपनी गरीब पृष्ठभूमि की याद दिलाते रहते हैँ। या इंदिरा गांधी की जुबान पर गरीबी हटाओ और समाजवाद के नारे हमेशा मौजूद नहीं रहते थे। नुमाइंदगी के इस पहलू पर कांग्रेस आज भी कोई पहल करती नजर नहीं आ रही है। बहरहाल, दो बिंदुओं पर अगर उसने अपनी चाल-ढाल बदलने की पहल की है, तो आशा की जानी चाहिए आने वाले दिनों में राजनीति के प्रति उसकी यह समझ भी बदलेगी।