द्योनाई घाटी में बढ़ रहा जंगली जानवरों का आतंक
बागेश्वर, गरुड़ । विगत कई वर्षों से उत्तराखंड के जंगली जानवरों ने यहां के ग्रामीणों पर अपना ख़ौफ़ का साया छोड़ने में कोई भी कोर कसर बाकी नही रखी है ।
जिसका असर बाघों द्वारा मारे गये छोटे बच्चे हो या अन्य ग्रामीण, बन्दरो द्वारा नष्ट की जा रही किसानों की फसल हो या रात को जंगली सुअरों का तांडव हर जगह अब स्पष्ट नजर आने लगा है।
इन सब की वजह से यहाँ के गावो में बसने वाले व उत्तराखंड को आबाद करने वाले निर्धन किसानों का अब दिन प्रतिदिन जीना दूभर होता जा रहा हैं। यहाँ का किसान कभी 2 इतनी दुविधा में पड़ जाता हैं कि आखिर वह करे भी तो क्या करें ।
जब वह नकदी फसलों सब्जियों की तरफ अपना ध्यान केंद्रित करता हैं तो आंकड़ो में उसे काफी मुनाफा नजर आने लगता हैं। उससे भी ज्यादा सरकारी विभागों के कारिंदे उन्हें दिवास्वप्न दिखाने में अपनी समस्त प्रतिभा लगा देते हैं।
लेकिन यह क्या गाँव का किसान जब आज दिन में अपने खेतों में कुछ भी बाजार से खरीद कर लगाता हैं तो पहले तो शाम आते 2 वह बन्दरो का नाश्ता बन ही जाता है।यदि वह कतिपय कारणों से दिन में बच भी गया तो शाम को जंगली सुअरों का झुंड़ उसे दूसरे दिन के दर्शन करने लायक नही छोड़ जाता हैं।
अनेक बर्षो से द्योनाई घाटी के समस्त गाँव भी इसी पीड़ा से ग्रस्त हैं।
आजकल यहाँ के किसान अपने खेतों में आलू व गडेरी के बीज का रोपण कर रहे है। इतने महंगे बीज व खाद का इस्तेमाल करने के बाद जब वह दूसरे दिन अपने खेत मद देखता हैं तो उस खेत का भूगोल ही उसे बदला हुआ नजर आ रहा हैं।
ताजा घटनाक्रम में कल रात सुअरों के एक झुंड ने रिठाड़ ग्राम के कुंदन सिंह भुवन सिंह देवेन्द सिंह हरीश सिंह सहित अनेक किसानों के खेत से आलू व गडेरी की फसल तबाह कर दी हैं। जिसे की वे दिन में अपने खेतों में लगाकर आये थे।
यहाँ आपको यह बताते चले कि इससे पूर्व पिछले वर्ष यहॉ के मोहन सिंह की फसल भी सुअरों द्वारा बरबाद कर दी गई थी जिसकी रिपोर्ट वन विभाग व प्रशासन को भी दे दी गई थी वन विभाग द्वारा उनके खेतों के मौका करने के बाद भी आजतक उनको मुआवजा नही मिल सका हैं।
जंगली जानवरों के द्वारा फसलो का नुकसान केवल यही गाँव तक सीमित नही है बल्कि क्षेत्र के भतड़िया, सरोली बनटोली रनकूनी कफलड़ूंगा हरबगड गवाल्डे सहित लगभग सभी ग्राम इनसे ग्रसित हैं।
क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों ने तुरंत सम्बन्धित विभाग से नुकसान के मुआवजे की मांग की हैं।
एकबात यहां पर समझ नही आती हैं कि हमारी सरकार किस मुँह से यहाँ के किसानों से वादा कर रही हैं कि हम 2022 तक किसानों की आय दुगुनी करने जा रहे है जबकि सच बात यह हैं कि सरकार से 2020 में ही किसानों का नुकसान रोके नही रुक रहा हैं। और उत्तराखंड का ग्रामीण युवा यहाँ से पलायन करने पर विवश होता जा रहा हैं।
यदि सरकार ने समय रहते यहाँ के किसानों के प्रति कोई ठोस पहल नही की तो वह दिन दूर नही जब देशी विदेशी पर्यटकों को उत्तराखंड में केवल जंगली जानवरों के ही दर्शन हो सकेंगे और पूरा राज्य मात्र एक चिड़ियाघर बनकर रह जायेगा।