कुमाऊँनी गीत – मोहन जोशी गरुड़ बागेश्वर
साहित्य की दुनिया मे एक चिरपरिचित नाम मोहन जोशी । जिनकी अनेक किताबे कुमाउनी भाषा मे प्रकाशित हो चुकी हैं। उनके द्वारा रामायण का कुमाउनी अनुवाद काफी चर्चित रहा है ।
पेश है उनके द्वारा रचित कुछ खास गीत आखरीआंख के पाठकों हेतू ।
माया कैलै जाँणी भगवानैकि सारी दुनि में।
पुतई फूल छोड़ी भैटी किलै सौवै बुनि में।।।
1
सुन क् बटन सुवा सुन क् बटन।
यकारै-यकार सुवा मैं तेरी रटन।
मैं तेरी रटन स़ुवा य माइ नि घटन।
नि चिताई तु दगड़ी जिन्दगी कटन।
2
कौणी की बालड़ी सुवा कौंणी की बालड़ी।
रिटि रैछै ऑंखों मेंजि तु हरदम घड़ी – घड़ी।
हरदम घड़ी – घड़ी तु दै जसि दडिबड़ी।
नि हुलरो आँसु कभैं तेरी त गालड़ी।।
3
गडेरी उगेर सुवा गडेरी उगेर।
तेरी माइ अणकसि दुनियॉं हैबेर।
दुनियां हैबेर छै तु हिया का भितेर।
मन भरी भरी औंछ, फाँम में डुबि बेर।
4
सूरज उछाँण सुवा सुरज उछाँण
कुरकाती हिया लगौं मिठ – मिठ बुलाँण।
मिठ-मिठ बुलाँण समेरि ल्हौं य पराँण।
सुरुसुरु औंण तेरो झऊँ कनैं चाँण।।
5
इनरैंणी क् घेर सुवा इनरैंणी क् घेर।
खुशी का बादाव लागा मन का भितेर।
मन का भितेर, माइजाव का फेर।
कई बिन जाँणी जाँछै के करुँ कैबेर।।
मोहन जोशी