( अर्जुन राणा बागेश्वर ) बागेश्वर । पूरे उत्तराखंड में वैसे तो बागेश्वर जिले की धान उत्पादन में धूम है। उसपर भी यहाँ का तहसील गरुड़ का समस्त क्षेत्र अपने आप मे धान की फसल के रिकॉर्ड उत्पादन के लिए ही अपनी विशिष्ट स्थान बनाये हुए है। शायद इसीलिए इस क्षेत्र को धान का कटोरा भी कहा जाता है। लेकिन यहाँ के किसान अधिकतर अपनी फसल में अपने पारम्परिक बीजो का ही अधिकतर प्रयोग करते आ रहे है। जिस कारण यहाँ के किसान अधिक उत्पादन कर पाने में असमर्थ हो रहे है कारण कोई भी भिज अधिक समय तक लगातार प्रयोग करने से उसकी उत्पादन क्षमता में एक समय बाद गिरावट आई शुरू हो जाती है। इसी बात को किसानों को समझाने के लिए इस वर्ष कृषि विज्ञान केंद्र कफलिग़ैर के वैज्ञानिकों ने यहाँ के किसानों के साथ मिलकर एक नया प्रयोग किया है। उन्होंने यहाँ के कुछ किसानों को पी0 बी0 1509 प्रजाति की बासमती धान का बीज दिया है। इसका प्रयोग काफलिगैर किसान विज्ञान केन्द्र द्वारा अपने केन्द्र में किया गया है। अपने केंद्र में सफल, परिक्षण के बाद इसको डा0 कमल पांडे , उद्यान एवं कृषि विशेषज्ञ द्वारा 10 नाली हेतु निःशुल्क बीज उपलब्ध कराया गया। जिसे नॉगाव ग्राम निवासी दीप चंद्र काण्डपाल, संजय कांडपाल और ललित मोहन काण्डपाल द्वारा 4,4,2 नाली में इसका उत्पादन किया गया। वर्तमान पैदावार में इसका उत्पादन 4 नाली में 2 कुंतल हुआ है। किसान संजय कांडपाल ने बताया कि इसमें 100किलो चावल निकल जाएगा ।
क्षेत्र के लिए कृषि व बागवानी में किसानों को प्रेरित करने वाले व सामाजिक कार्यकर्ता सुंदर कांडपाल का कहना है कि हल्द्वानी के कुछ लोग इस बासमती को 100 रुपये प्रति किलो खरीदने को तत्काल तैयार भी हो गए है। उनका कहना है कि यह बासमती ऑर्गेनिक होने के कारण लोग खरीदना चाह रहे हैं। इस दृष्टि से यह अत्यन्त सफल प्रयोग है । साथ ही कहा कि जो लोग कंट्रोलया यानी चाइना 4 के अंध भक्त बन उससे बाहर नही निकल पा रहे हैं। उनके लिए यह अच्छा उदाहरण है। बागवानी से तो चमत्कार जैसा परिवर्तन आ सकता है। कृषि और बागवानी मे आगे बढ़ने और अपनी आय बृद्धि करने की प्रबल संभावना है।
मैंने जब केवीके के वैज्ञानिक डॉ कमल पांडे से इसकी खूबी जाननी चाही तो उनका कहना था कि यह किसानों के लिए काफी फादेमंद साबित होगी उन्होंने बताया कि पूरे जिले में हमने इसका प्रयोग कुल 100 नाली में किया है । साथ ही बताया कि उनके केंद्र द्वारा यह प्रजाति विकसित की गई है। अन्य बासमती की तरह यह पकने में ज्यादा समय न लेकर यह स्थानीय प्रजाति के धानो के साथ ही पक जाती है । उनका कहना था कि किसानों की चाह पर अगले वर्ष इसे बड़े पैमाने पर उपजाया जाएगा।
खुशबू के बारे में उन्होंने कहा कि यह अलग 2 स्थान पर कम या ज्यादा हो सकती है ।
कुल मिलाकर अब यहाँ के किसानों ने भी आधुनिकता की ओर एक कदम बढ़ा ही लिया है जो भविष्य में यहाँ के किसानों के लिए एक वरदान साबित हो सकता है।