November 21, 2024

घास की रोटी खा महंगाई से युद्ध

 

आज साइकिल पर सवार भाई साहब बाजार में प्याज के मोल-भाव कर रहे थे। जब से पेट्रोल की कीमतों ने सैकड़े को छुआ भाई साहब ने स्वप्रेरणा से साइकिल निकाल ली। पिछली दफा गैस सब्सिडी छोडऩे के लिए तो और भी उन्हें प्रेरित करना पड़ा था। अबकी बार हालात ही ऐसे बने कि वे किसी और के कहने का इंतजार करते तो उधार लेने की नौबत आन पड़ती। यहां विकास में जब पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस सब ही अपना योगदान दे रहे हों तो भाई साहब कोई आन्दोलनजीवी तो हैं नहीं कि विरोध करने बैठ जाएं। वे राष्ट्रहित में साइकिल की सवारी पर आ गए हैं।
साइकिल के पैडल मार वे शरीर को स्वस्थ और पर्यावरण को स्वछ बना रहे है। किंतु इन दिनों भाई साहब घर में सिलेंडर और भाभीजी दोनों से ही नजरें नहीं मिला पा रहे हैं। वे ‘राष्ट्रीय हित में मूल्यवृद्धिÓ विषय पर घंटे भर व्यायान देकर बच निकलते हैं किंतु घर में मौन से ही काम चलाना पड़ता है। दुनिया वालों के लिए तो भाईसाहब ने व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी पर इतिहास के बाद भूगोल और अब अर्थशास्त्र पढऩा शुरू कर दिया है। उनके तर्कों के आगे हमारे हर तथ्य समर्पण कर देते हैं। मूल्यवृद्धि के जो तर्क इनके पास हैं वह दुनिया में अर्थशास्त्र की किसी किताब में नहीं हैं। अब वर्तमान में वे गर्मी में मूल्य में कमी आने वाली थ्योरी पर रिसर्च पेपर भी तैयार कर रहे हैं। वैसे भाईसाहब महंगाई पर चुप रहते हैं, मगर भीतर से उनकी अंतरात्मा भी आम आदमी की तरह बिलखती है, वह चीखना चाहती है, चिल्लाना चाहती है मगर देश विरोधी के तमगे से नवाजे जाने की कल्पना भर से वे सहम जाते हैं।
इस समय वायु प्रदूषण पर लंबे भाषण देने वालों ने तो अपने लॉन में चूल्हे बना लिये है। आदमी बड़ा हो या छोटा चूल्हे की ओर लौट रहा है। घोषणापत्र में रामराज लाने की घोषणा सार्थक सिद्ध होती दिख रही है। इस दौर में महंगे सिलेंडर खरीदने वालों के पास पकाने के पैसे ही नहीं बचते। कल तक खाने में क्या बनायें यह समस्या होती थी और आज किस पर बनायें, यह चिंता सता रही है। रसोई के दाम भी किस्तों में हौले-हौले बढ़ रहे हैं। आज सिलेंडर 25 रुपये महंगा हुआ जैसी खबरें इसलिए भी आती हैं ताकि सदमा भी आहिस्ता से पहुंचे। दाम बढ़ाने का जो आनंद किस्तों में है, वह एकमुश्त कहां इतना ही नहीं, दामों को सुनकर हृदयाघात न हो, आखिर यह जिमा भी तो सरकार का है
एक समय महाराणा प्रताप ने घास की रोटी खाकर मुगलों से युद्ध किया था। इस समय महंगाई मुगलों की जगह है और हमें महंगाई से युद्ध करना है, मूल्यवृद्धि से नहीं