May 21, 2024

वैदिक मंत्रोच्चार व विधि विधान के साथ द्वितीय केदार मदमहेश्वर मंदिर के कपाट बंद  

रुद्रप्रयाग। द्वितीय केदार मदमहेश्वर मंदिर के कपाट सोमवार को प्रातः साढ़े आठ बजे वैदिक मंत्रोच्चार व विधि विधान के साथ बंद कर दिए गए। भक्तों के जयघोषों के साथ डोली ऊखीमठ मंदिर को रवाना हो गई। अब शीतकाल में छह माह भगवान मदमहेश्वर की ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में पूजा-अर्चना की जाएगी। पौराणिक रीति-रिवाज, परम्परा व वैदिक मंत्रोच्चार के साथ सोमवार सुबह साढ़े तीन बजे पूजा-अर्चना के बाद भगवान का रुद्राभिषेक किया गया। जिसके बाद धाम में पहुंचे भक्तों ने भी भगवान का जलाभिषेक किया। इसके बाद विशेष पूजा अर्चना कर भोग लगाया गया। जिसके बाद समाधि पूजा शुरू हुई। पुजारी शिवलिंग द्वारा फूल, फल, अक्षत, मेवे, ब्रह्मकल, भस्म से गर्भगृह में स्थित स्वम्भू शिवलिंग को समाधि दी गयी। इसके साथ ही प्रातः छह बजे हवन यज्ञ की परंपरा को सम्पन्न किया गया। इसके बाद भगवान की भोग मूर्तियों को चलविग्रह उत्सव डोली में विराजमान किया गया। वेदपाठी मृत्युंजय हीरेमठ के वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ डोली ने अपने निशानों के साथ मन्दिर की तीन परिक्रमा की। तत्पश्चात पात्रों का निरीक्षण करते हुए पहले पड़ाव गौंडार के लिए रवाना हुई। मैखंबा, कूनचट्टी, नानौ,खटारा व बणतोली होते हुए डोली गौंडार पहुंची जहां पर ग्रामीणों ने डोली का भव्य स्वागत किया और भगवान को अर्ध्य लगाया गया। राजकीय प्राथमिक विद्यालय गौंडार के प्रधानाध्यापक दीपक रावत के निर्देशन में बच्चों द्वारा डोली का भव्य स्वागत किया गया। रात्रि को स्कूली छात्र-छात्राओं एवं महिला मंगल दल द्वारा सांस्कृतिक और भजन संध्या कार्यक्रम का आयोजन किया गया। भगवान की डोली 23 को रांसी, 24 को गिरिया गांव में रात्रि प्रवास के बाद 25 को ओंकारेश्वर मन्दिर में पहुंचेगी, जहां पर डोली के स्वागत में भव्य मेले का आयोजन किया जाएगा। वहीं ऊखीमठ में डोली के स्वागत के लिए देवस्थानम बोर्ड ने सभी तैयारियां पूरी कर ली है। मन्दिर के प्रशासनिक अधिकारी आरके नौटियाल ने बताया कि मन्दिर को आठ कुंतल फूलों से सजाया जा रहा है इसके साथ ही पैदल मार्गों को भी सजाया जाएगा। इस मौके पर प्रधान वीर सिंह, डोली प्रभारी युद्धवीर पुष्पवान, व्यापार संघ अध्यक्ष राजीव भट्ट, शिवसिंह रावत, संदीप रावत, प्रधानाध्यापक दीपक रावत, रामदत्त गोस्वामी, पवन गोस्वामी, शिव प्रसाद उनियाल, अरविंद पंवार आदि मौजूद थे।