बोलने में जोखिम-ही-जोखिम
आज की सरकार और सत्ताधारी विचारधारा से अलग राजनीतिक विचार रखना आज जोखिम भरा हो गया है। और यह बात सिर्फ राजनीति में सक्रिय लोगों पर लागू नहीं होती। अब तो अगर किसी आम शख्स ने कोई साधारण बात भी कभी कह दी, तो उसकी कीमत उसे चुकानी पड़ सकती है।
भारतीय संविधान में जो मूल अधिकार नागरिकों को दिए गए हैं, उनमें अभिव्यक्ति की आजादी एक प्रमुख अधिकार है। लेकिन हालात ऐसे बन रहे हैं कि भविष्य में यह अधिकार सिर्फ संविधान के पन्नों में सिमट कर रह जाएगा। वैसे ही आज की सरकार और सत्ताधारी विचारधारा से अलग राजनीतिक विचार रखना आज जोखिम भरा हो गया है। और यह बात सिर्फ राजनीति में सक्रिय लोगों पर लागू नहीं होती। अब तो अगर किसी ने कोई साधारण बात भी कभी कह दी, तो उसकी कीमत उसे चुकानी पड़ सकती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में कंपनियां अब नौकरी मांगने वाले उम्मीदवारों की सोशल मीडिया प्रोफाइल की गहनता से पड़ताल कर रही हैं। राजनीतिक मुद्दों पर सक्रिय रहने वाले व्यक्तियों की नौकरी पाने की संभावनाओं पर भी इसका असर पडऩे लगा है। भारत में अब नौकरी करने वाला एक तबका तो पहले से ही राजनीतिक और धार्मिक मुद्दों पर खुलेआम सोशल मीडिया पर टिप्पणी करने से बचता रहा हैं।
खासकर सत्ताधारी दल भाजपा के खिलाफ बोलने से वह परहेज करता है। लेकिन ताजा रिपोर्ट यह है कि कंपनियां अब अपने कर्मचारियों के सोशल मीडिया खाते को लिंक्डिन खाते से जोड़ रही हैं। उनका मकसद यह जानना है कि कहीं कर्मचारी अपनी नौकरी को लेकर सोशल मीडिया पर खुलेआम ऐसे विचार तो नहीं जता रहा है, जिससे कंपनियां भी घेरे में आ सकती हैँ। वैसे भी कंपनियों में ऊंचे पद पर ऐसे लोगों की भरमार है, जिनका स्वाभाविक समर्थन सत्ताधारी विचारधारा के साथ है। तो अब सोशल मीडिया तेजी से एक ऐसा स्थान बनता जा रहा है, जहां भर्ती के फैसले पर पहुंचने के दौरान व्यक्ति द्वारा पोस्ट की गई सामग्री पर ध्यान दिया जाता है। कुछ कंपनियों के पास अब उनके एचआर मैनुअल के हिस्से के रूप में सोशल मीडिया पॉलिसी है। ऐसी सोशल मीडिया पॉलिसी स्पष्ट रूप से बताती है कि अगर किसी कर्मचारी ने- विशेष रूप से कंपनी का नाम लेते हुए पोस्ट साझा किए- तो उसे गंभीरता से लिया जाएगा। 2019 में मैकफी की तरफ से 1,000 लोगों पर किए गए सर्वे में यह तथ्य सामने आया था 21 प्रतिशत भारतीय किसी ऐसे व्यक्ति को जानते थे, जिनके करियर की संभावनाओं पर उनके सोशल मीडिया पोस्ट के कारण खराब प्रभाव पड़ा था। तो साफ है कि अभिव्यक्ति की आजादी अब किताबी बात होती जा रही है।