गडकरी अकेली संभावना
संघ परिवार, भाजपा और हिंदू भारत के बरबाद भविष्य पर एक नेता से फुलस्टॉप संभव है। इस शख्स का नाम है नितिन गडकरी। मुझे गडकरी से मिले, उनके साथ गपशप किए सालों हो गए हैं। मैंने गडकरी को दूर से अधिक ऑब्जर्व किया है। बावजूद इसके मेरी धारणा तब-तब हमेशा सही साबित हुई जब सुना कि उन्होंने नोटबंदी को घातक बताया। वे नरेंद्र मोदी और अफसरों की परवाह नहीं करते। उन्हें काम चाहिए। वे संघ की जरूरतों का पेट भरते हैं न कि अपना। वे कैबिनेट में बोलते हैं और सत्तावान हिंदुओं, दरबारियों की भीड़ में अकेले मर्द हैं। वे नसीहत देते हैं कि कांग्रेस और विरोधी भी भारत के हिंदू हैं। बिना विपक्ष के भारत और लोकतंत्र जिंदा नहीं रहेगा, भारत का भविष्य नहीं बनेगा। किसी नेता की सफलता चुनावी जीत से, अपनी पूजा करवाने से नहीं, बल्कि देश को बनाने से बनती है। और हिम्मत हो तो निकाल बाहर करें। पिछले दिनों जब कांग्रेस के नेताओं को उन्होंने यह नसीहत दी की जीत-हार होती रहती है मगर अपनी पार्टी में रहो। पार्टी को बनाओ क्योंकि लोकतंत्र और देश की जरूरत में एक राष्ट्रीय विकल्प होना चाहिए तो सचमुच मन में इच्छा हुई कि गडकरी से मिल कर उनको उनकी समझ के लिए गुलदस्ता दिया जाए!
लेकिन कोरोना काल से मिजाज क्षेत्र संन्यास सा बना हुआ है। दूसरे, मुझे दिखता हुआ है कि हिंदुओं की नियति वहीं है जो इतिहास है। इसलिए इतिहास की दृष्टि में रमो न कि रोजमर्रा के प्रायोजित नैरेटिव में। तभी इस चर्चा पर खोजी कौतुक नहीं बना कि किसी कैबिनेट मंत्री ने नागपुर के एक अखबार के खबरनवीसों के साथ बैठकर बताया कि उसके साथ 250 सांसद हैं। मगर वह क्योंकि स्वंयसेवक है, अनुशासित है इसलिए मर्यादित है। मगर वह कैबिनेट में बोलते हैं। प्रधानमंत्री को ईडी और सीबीआई आदि एजेंसियों के दुरूपयोग पर चेताया है। इस पर नरेंद्र मोदी ने ज्ञान दिया कि वे इसी तरह के उपयोग से गुजरात में सफल हुए और उस राज कर नाम हुआ और वे तो प्रधानमंत्री बन गए।
हिंदुओं पर राज का यह गुरूमंत्र दरअसर हिंदुओं का सत्व-तत्व है। तभी वे 12 सौ साल गुलाम रहे और दासता का वैसा ही जीवन जीया जैसा आधुनिक काल में भी ईडी, सीबीआई जैसे डंडों, पूजा, भय, भयाकुलता से नरेंद्र मोदी पूजनीय अवतार हैं।
उस नाते नरेंद्र मोदी का ज्ञान, आत्मज्ञान और आत्ममुग्धता भगवानजी को पछाडऩे वाला है। भगवान विष्णु की तरह वे सत्ता के शेषनाग पर परम संतोष से शयन करते, चरण दबाते उनके धनसेठ, और लोगों की मुग्धता, तालियों के परम सुख से परमानंद अवस्था में। उनकी मुखमुद्रा, उनके श्वेत ऋषि केश, पोर-पोर से झलकता-खनकता पॉवर इक्कीसवीं सदी के हिंदुओं का वह भाग्य है तो पृथ्वी के शेष मानव समाज के लिए पहेली। पूरा भारत मानो एक मंदिर और उसके गर्भगृह में सत्ता के शेषनाग पर विराजे नरेंद्र मोदी और आशीर्वाद में पांच-पांच किलो अनाज-नमक की थैली प्राप्त करते हुए भक्त! पूरी लीला को सजाए स्वंयसेवकों का स्वयंस्फूर्त प्रबंधन।
अब ऐसा है तो किसी एक स्वयंसेवक की भड़ास का क्या अर्थ? नितिन गडकरी कुछ नहीं कर सकते। भले 250 सांसदों या स्वंयसेवकों का संगठन उन पर फिदा हो। वे मन में कुछ भी बड़बड़ाएं, वे संभावना नहीं बन सकते हैं। उन्हें सत्ता का धंधा नहीं आता है। देश की फाल्टलाइन को बुलडोजरों से चौड़ा करना नहीं आता है। वे हिंदू बनाम मुस्लिम नहीं कर सकते। वोट नहीं खरीद सकते और सबसे बड़ी बात हिंदुओं को भयाकुल, सीबीआई, ईडी से डराने, मर्यादाओं का चीरहरण नहीं कर सकते। इसलिए महाराज गडकरीजी अपने मनमौजी स्वभाव के स्वांत सुखाय में जीते रहिए! अपने ईर्द-गिर्द के नामर्द-यथास्थितिवादियों से समझते रहिए!