November 21, 2024

अभी सिर्फ पुनर्विचार है


भारत सरकार ने पहले सुप्रीम कोर्ट में राज द्रोह कानून की संवैधानिकता पर फिर से विचार के लिए दी गई याचिका का विरोध किया। उसने कहा कि भारत सरकार बनाम केदारनाथ सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट इस कानून की वैधता की पुष्टि कर चुका है। सरकार ने फिर यह सवाल उठाया कि जब संविधान पीठ इस मामले में फैसला दे चुकी है कि तीन जजों की खंडपीठ इस मुद्दे पर कैसे सुनवाई कर सकती है? मगर इसके कुछ दिन के अंतर पर ही सरकार का हृदय परिवर्तन हुआ- या कम से कम उसने यह संकेत देने की कोशिश की है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वह खुद ही इस कानून की प्रासंगिकता पर पुनर्विचार करेगी। इस बारे में सुप्रीम कोर्ट में बहस के दौरान सोलिसीटर जनरल ने कहा कि जो काम पंडित नेहरू नहीं कर पाए, वह वर्तमान सरकार करने जा रही है। इस कथन पर लोगों का आवाक रह जाना लाजिमी है।
आखिर सरकार ने यह तो कहा नहीं है कि वह इस कानून को रद्द करने जा रही है। उसने सिर्फ इस पर पुनर्विचार की बात कही है। समाज के कई हलकों में इसे सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार को टालने की एक चाल के रूप में देखा है। आखिर यह कानून जिस थोक भाव से नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल में लोगों पर लगाया गया, वैसा उसके पहले कभी नहीं हुआ था। एक रिपोर्ट के मुताबिक बीते आठ साल में 400 से अधिक से लोगों को इस कानून के तहत गिरफ्तार किया गया है। ऐसा करते हुए सुप्रीम कोर्ट की इस व्यवस्था का तनिक भी ख्याल नहीं रखा गया कि कोई विचार रखना या उससे संबंधित किताबें आदि रखना राज द्रोह नहीं है। कोर्ट ने कहा था कि यह कानून तभी लागू हो सकता है कि जब व्यक्ति हिंसा या विद्रोह भडक़ाने की वास्तविक गतिविधि में शामिल हो। और फिर बात सिर्फ इस कानून की नहीं है। यूएपीए में जिस तरह की धाराएं शामिल की गईं और राष्ट्रीय सुरक्षा कानून का जिस तरह इस्तेमाल हुआ है, उससे सरकार के इरादे पर शक करने का ठोस आधार बनता है। बहरहाल, अब सरकार का हृदय परिवर्तन हुआ है, यह तभी माना जाएगा, अगर वह जल्द से जल्द इस कानून को रद्द करने का फैसला करे।