पहाडों की रोपाई में अब नही सुनाई देते हुड़के के बोल
अर्जुन राणा
बागेश्वर गरुड़ । पहाड़ो में आजकल धान की रोपाई जोरों पर हैं । इस बर्ष तो रोपाई एक हफ्ते पहले ही शुरू हो चुकी हैं । जिसकी वजह इस वर्ष पहाडों में गर्मी की बारिश ने न केवल मौसम को सुहाना बना दिया हैं बल्कि किसानों को भी बहुत लंबे अरसे के बाद धान की रोपाई में धान की नर्सरी रखने से लेकर आज रोपाई तक बहुत राहत दी हैं ।
विगत वर्षों में करीब 2 प्रतिवर्ष यहाँ किसानों को धान की नर्सरी की सिंचाई में अनेकों रात रातभर रतजगा करना पड़ता था। और कभी 2 तो बात आपस मे कहासुनी से भी बढ़कर मारपीट तक पहुंच जाया करती थी। विशेषकर महिलाओं को इस कार्य मे काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता था।
क्योंकि यहाँ पर सिचाई विभाग ने कहने को तो नहरे बना रखी हैं।लेकिन उनमें पानी चला पाना शायद उसके बस से बाहर की बतन्जर आती हैं खैर इस बारे में फिर कभी बिस्तृत रिपोर्ट लिखूंगा ।
अब बात पहाड़ो में रोपाई की करे तो आज से 30 या 40 वर्ष पहले हर गाँव मे केवल 1 या 2 परिवार ही रोपाई लगाया करते थे । और पूरे गाँव वाले उसदिन उन्ही के यहाँ सभी लोग काम भी करते थे और दोनों समय का खाना सुबह के नाश्ते सहित वही होता था। जिसमे सबसे बड़ी बात प्रत्येक रोपाई में एक हुड़किया बोल जरूर होता था। जो दिनभर महिलाओं के साथ खेत मे रहकर अपने हुड़के की थाप पर स्थानीय देवी देवताओं और पुराने वीर महापुरुषों की गाथाओं को एक विशेष तर्ज में गाकर न केवल एक मनोरंजन करता था अपितु हमारी नई पीढ़ी को भी उनके अतीत व संस्कृति से वाकिफ कराता था।
फिर धीरे 2 जब समस्त ग्रामीणों ने रोपाई लगानी शुरू की तो हुड़किया बहुत कम नजर आने लगे अब आज तो आलम यह हैं कि आज की तारीख में हुड़किया लगाने वाला किसी भी कीमत पर उपलब्ध नही हैं। कारण यह हैं कि उसकी नई पीढ़ी ने यह काम सीखा नही और पुराने लोग अब करीब 2 मर खप गए। जिस वजह से हमारे बीच की एक जबरदस्त विधा करीब 2 विलुप्त सी हो गई हैं।
और अब वर्तमान समय में रोपाई का भी मॉडल बदल गया हैं। जहाँ पहले सभी गाँववाले बारी 2 से रोपाई किया करते थे अब आज दो या चार महिलाओं का समूह ही
यत्र तत्र अधिकांशतया नजर आता हैं । साथ ही इस वर्ष से अब सभी अपने 2 घर से नाश्ता व खाना खाकर दूसरे के यहाँ काम करने जाया करेंगे यह पल्ट प्रथा सदियों से हमारे गाँव मे बदस्तूर चली आ रही हैं।
अब तो गाँव मे पुराने धान की किसमे जिसमे प्रमुख कंट्रोल और थापा चीनी व लाल धान होते थे अब इन्हें बहुत कम मात्रा में लगाया जारहा हैं। अब सभी किसान धान की नई 2 किस्मो में अपना भरोसा जता रहे
हैं। जिसका उन्हें भरपूर पैदावार व फायदा भी मिल रहा हैं। इस वर्ष खुद मैंने भी देहरादुनि बासमती आजमाने के लिए लगाई हैं।जो कि काफी पतली लम्बी व खुशबूदार हैं।