अग्नि-वीरों का अग्नि-पथ
अग्निवीरों को ग्रैच्यूटी और पेंशन देने से वह बच जाएगी। कुछ हजार लोगों को अस्थायी नौकरियां भी मिल जाएगी। लेकिन क्या इस योजना का परिणाम यह नहीं होगा कि अग्निवीरों के आगे का रास्ता अग्निपथ बन जाएगा?
यह मालूम करने के लिए संभवत: शोध की जरूरत पड़ेगी कि क्या दुनिया का किसी प्रमुख देश ने अस्थायी सैनिकों के जरिए अपनी सुरक्षा का इंतजाम कर रखा है। संभवत: ऐसा नहीं होगा। और स्थिति में अब भारत जरूर ऐसा देश बनेगा, जहां सिर्फ चार साल के लिए सैनिकों की नियुक्ति होगी- ये दीगर बात है कि उन्हें सैनिक कहने के बजाय अग्निवीर कहा जाएगा। नरेंद्र मोदी सरकार की घोषित योजना के मुताबिक इन अग्निवीरों को सेना में हर क्षेत्र में और हर स्तर पर जिम्मेदारी दी जाएगी। चार साल बाद उन्हें 10-11 लाख रुपये देकर विदा कर दिया जाएगा। इस रकम का भी एक हिस्सा उनकी ही तनख्वाह से काटी गई होगी, जो 30 से 40 हजार रुपये प्रति महीने के बीच होगी। अब अगर सरकार को ये उम्मीद है कि इतनी सैलरी में उसे ऐसे जोशीले और जज्बे वाले नौजवान मिलेंगे, जो हाईटेक डिफेंस वॉरफेयर में भी भूमिका निभा सकें, तो इसे सरकार की अति आशावादिता ही कहा जाएगा।
कुछ पूर्व सैनिक अधिकारियों ने उचित ही कहा है कि सेना रोजगार देने का जरिया नहीं है। ना ही देशभक्ति या राष्ट्रवाद की भावना किसी भी देश में सैनिकों की मुख्य प्रेरणा होती है। बल्कि देश के लिए सर्वोच्च त्याग वे पेशेवर भावना और काबिलियत के कारण करते हैँ। कम तनख्वाह और चार साल की नौकरी वाले सैनिकों में ऐसी भावना और काबिलियत की उम्मीद कैसे की जा सकती है, इसका उत्तर सरकार को अवश्य देना चाहिए। फिलहाल, उसने कहा है कि कार्य मुक्त हुए अग्निवीरों को अर्धसैनिक बलों की नियुक्ति में प्राथमिकता दी जाएगी। लेकिन संभवत: असल समस्या ही यही है कि ना तो इन बलों में और ना ही सेना में पर्याप्त नियुक्तियां हो रही हैँ। जैसाकि कहा गया है, सरकार की प्रमुख चिंता कम खर्च में काम चलाने की है। तो अग्निवीरों को ग्रैच्यूटी और पेंशन देने से वह बच जाएगी। कुछ हजार लोगों को अस्थायी नौकरियां भी मिल जाएगी। बढ़ती बेरोजगारी के बीच इससे सरकार को सुर्खियां संभालने में मदद मिलेगी। लेकिन इस योजना का परिणाम यह होगा कि अग्निवीरों के आगे का रास्ता अग्निपथ बन जाएगा। अंदेशा यह है कि देश की सुरक्षा को भी आगे इसी रास्ते से गुजरना होगा।