दुनिया कर रही फ्रॉड या हम?
भारत में सब कुछ एक्ट ऑफ फ्रॉड कैसे है इसे समझना हो तो अलग अलग क्षेत्र में भारत की रेटिंग देखे। एक-दो क्षेत्रों को छोड़ दें तो हर जगह भारत की रेटिंग नीचे जा रही है। लेकिन हर बार भारत उस अंतरराष्ट्रीय रेटिंग को खारिज कर देता है। हर बार भारत की ओर से कहा जाता है कि रेटिंग तैयार करने का तरीका गलत है या भारत को बदनाम किया जा रहा है। एक तरफ मोदीजी के नाम पर दुनिया में भारत का डंका बजने का दावा है तो दूसरी ओर यह रोना-धोना है कि दुनिया हमको बदनाम कर रही है! सोचें, सारी दुनिया के नेता मोदीजी के प्रिय दोस्त हैं फिर भी पता नहीं कौन भारत को बदनाम करता रहा है?
पिछले दिनों दुनिया की दो प्रतिष्ठित संस्थाओं ने कुपोषण और भूख का सूचकांक तैयार किया, जिसमें भारत की रैंकिंग 107वीं पहुंच गई। पिछले साल यह रैंकिंग 101 पर थी। सोचें, 120 देशों की सूची में भारत 107वें नंबर पर है। दक्षिण एशिया में एक अफगानिस्तान को छोड़ दें तो भारत सभी देशों- नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि से पीछे है। इसी तरह यूनेस्को ने एक सर्वेक्षण के बाद बताया है कि भारत में 73 फीसदी माता-पिता अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ाना चाहते हैं क्योंकि उनकी शिक्षा का स्तर बहुत खराब होता है। सोचें, शिक्षा के क्षेत्र में भारत ने पिछले 75 साल में क्या हासिल किया है? जो सक्षम हैं वे अपने बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ाते हैं और बहुसंख्यक लोग सरकारी स्कूलों में बहुत खराब शिक्षा हासिल करते हैं। इस पैमाने पर भी भारत दक्षिण एशिया में अफगानिस्तान के करीब है। बाकी देश भारत से काफी आगे हैं।
संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से दुनिया भर के देशों का मानव विकास सूचकांक तैयार किया जाता है। पिछले दिनों 191 देशों की सूची जारी हुई, जिसमें 2021-22 में भारत 132वें स्थान पर रहा। चीन 79वें स्थान पर है। मार्च में लोकतंत्र की स्थिति को लेकर एक रिपोर्ट जारी हुई और दुनिया के देशों की सूची बनी, जिसमें भारत 93वें स्थान पर रहा। लोकतंत्र की स्थिति में दक्षिण एशिया में भारत का स्थान पाकिस्तान से जरूर ऊपर रहा लेकिन नेपाल, श्रीलंका और भूटान से नीचे रहा। प्रेस की आजादी की रैंकिंग में इस साल भारत 150वें स्थान पर पहुंच गया है। पिछले साल भारत की रैंकिंग 142वीं थी, लेकिन 2022 में आठ स्थान और गिर कर यह 150वें स्थान पर पहुंच गया है। मानवाधिकारों की स्थिति में 162 देशों की सूची में भारत 111वें स्थान पर है। दुनिया भर के देशों में धार्मिक आजादी की स्थिति का आकलन करने वाली अमेरिकी संस्था यूएस कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलिजियस फ्रीडम ने भारत को चिंता वाले देशों में रखा है। भारत अफगानिस्तान, पाकिस्तान, चीन, उत्तर कोरिया और सऊदी अरब की श्रेणी में रखा गया है। पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने यानी प्रदर्शन के लिहाज से भारत दुनिया के 180 देशों की सूची में सबसे नीचे है। इसे वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ने तैयार किया है। हेनली पासपोर्ट रैंकिंग में भारत 83वें स्थान पर है।
मजेदार बात है कि भारत की ओर से इस तरह के हर सर्वेक्षण को, हर रैंकिंग को खारिज कर दिया जाता है। लेकिन अमेरिका की एक संस्थान मॉर्निंग कंसल्ट सिर्फ दो हजार लोगों से बातचीत करके एक सूचकांक जारी करता है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर साल सबसे लोकप्रिय नेता चुने जाते हैं। उसे भारत उछलते हुए मानता है। सोचें, संयुक्त राष्ट्र संघ की एजेसियों, वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम, अमेरिकी सरकार आदि की रिपोर्ट को तो फ्रॉड बता कर खारिज करते है लेकिन मॉर्निंग कंसल्ट नाम की एक निजी कंपनी के सर्वे का भारत में प्रचार होता है। तभी सवाल है कि दुनिया जिस रैंकिंग पर यकीन करती है, उसे हम खारिज करते हैं तो क्या पूरी दुनिया फ्रॉड कर रही है और हम सच्चे हैं या दुनिया सच्ची है और हम फ्रॉड कर रहे हैं?
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