November 22, 2024

संसद ठप्प है, बिल पास हो रहे हैं!



संसद के पिछले कई सत्रों से एक खास ट्रेंड देखने को मिल रहा है। सत्र से ठीक पहले कोई न कोई ऐसी घटना सामने आ जाती है, जिस पर समूचा विपक्ष आंदोलित हो जाता है और पूरा सत्र उसमें जाया हो जाता है। इस बार मानसून सत्र से एक दिन पहले मणिपुर की दो महिलाओं को निर्वस्त्र करके घुमाने और उनके साथ यौन हिंसा का एक वीडियो वायरल हुआ। इसे लेकर संसद सत्र के पहले दिन से हंगामा शुरू हो गया, जो अभी तक जारी है। ऐसे ही बजट सत्र से पहले अडानी समूह को लेकर हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट आई थी और उस मसले पर पूरे सत्र में हंगामा हुआ था। उससे पहले पिछले साल के शीतकालीन सत्र के दौरान अरुणाचल प्रदेश के तवांग में भारत और चीन के सैनिकों के बीच झड़प होने का वीडियो सामने आया था और छोटा सा शीतकालीन सत्र इसे लेकर हुए हंगामे की भेंट चढ़ गया था। उससे पीछे जाएंगे तो ऐसी घटनाओं की एक लंबी सूची बन जाएगी, जो संसद सत्र से ठीक पहले हुईं या ठीक पहले उनके बारे में खबर आई।
इसे लेकर दो तरह की साजिश थ्योरी की चर्चा है। मणिपुर का वीडियो सामने आने के बाद भाजपा ने आधिकारिक रूप से इसकी टाइमिंग पर सवाल उठाया और कहा कि जब घटना तीन मई की है तो संसद का मानसून सत्र शुरू होने से ठीक एक दिन पहले 19 जुलाई को इसका वीडियो क्यों वायरल कराया गया? भाजपा का कहना है कि विपक्ष के नेताओं को इस वीडियो के बारे में पहले से पता था और जान बूझकर संसद सत्र से एक दिन पहले वायरल किया गया। दूसरी ओर एक अन्य साजिश थ्योरी है, जिसके मुताबिक हर बार सरकार ही संसद सत्र से ठीक पहले कुछ ऐसा करा रही है, जिससे सत्र के दौरान हंगामा हो और कामकाज बाधित हो। बहरहाल, यह भी हो सकता है कि इसके पीछे कोई साजिश न हो यह सिर्फ एक संयोग हो। अगर यह संयोग है तो बहुत दिलचस्प संयोग है क्योंकि हर बार ऐसे हंगामे के बीच सरकार बिना किसी बहस से बेहद जरूरी और करोड़ों लोगों के जीवन पर असर डालने वाले विधेयक पास करा रही है।
सोचें, सरकार ने पहले ही विधेयकों को संसदीय समितियों को भेजना बंद कर दिया है। विधेयक सीधे संसद में पेश किए जा रहे हैं और वहां अगर विपक्ष का हंगामा चल रहा होता है तो बिना बहस के उसे पास करा लिया जाता है। क्या विपक्षी पार्टियों को यह बात समझ में नहीं आ रही है कि बिना चर्चा के बिल पास होना देश के लिए अच्छा नहीं है? वे जिस एक मसले पर हंगामा कर रहे हैं उस मसले का बहुत महत्व है लेकिन क्या सरकार जो बिल पास करा रही है उसका महत्व नहीं है? विपक्ष एक मुद्दे को लेकर उलझा रहता है और ऐसे कई मुद्दे उसकी नाक के नीचे से निकल जाते हैं। तभी यह सवाल भी उठता है कि क्या विपक्षी पार्टियां अपनी संसदीय जिम्मेदारी का सही तरीके से निर्वहन कर रही हैं? अच्छी बात है कि वे मणिपुर के मसले पर सरकार को घेर रही हैं या प्रधानमंत्री के बयान की मांग कर रही हैं लेकिन क्या सचमुच विपक्षी पार्टियों को लग रहा है कि प्रधानमंत्री बयान दे देंगे तो मणिपुर की समस्या का समाधान हो जाएगा? विपक्ष को पता है कि ऐसा नहीं होगा लेकिन सिर्फ अपनी राजनीति चमकाने के लिए और चुनावी साल में सरकार को बदनाम करने के लिए सारे जरूरी मुद्दे छोड़ कर विपक्षी पार्टियां मणिपुर के मसले के पीछे पड़ी हैं।

विपक्षी पार्टियां मणिपुर के मसले पर हंगामा करती रहीं और इस दौरान मानसून सत्र के पहले सात दिन में सरकार ने लोकसभा से पांच और राज्यसभा से तीन विधेयक पास करा लिए। ये विधेयक करोड़ों लोगों के जीवन पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से असर डालने वाले हैं। इनमें से एक विधेयक पर जरूर ढाई घंटे की चर्चा हुई वरना नौ मिनट से लेकर 42 मिनट तक में विधेयक पास कर दिए गए। सरकार ने मल्टी स्टेट कोऑपरेटिव अमेंडमेंट बिल पास करा लिया और विपक्ष ने इस पर ध्यान ही नहीं दिया। सरकार ने वन संरक्षण (संशोधन) बिल पास करा लिया लेकिन विपक्षी पार्टियां संसद के बाहर प्रदर्शन करती रहीं। वन संरक्षण व आदिवासी अधिकारों के जानकारों का आरोप है कि यह बिल आदिवासी अधिकारों को कम करेगा क्योंकि इसमें सार्वजनिक परियोजनाओं के लिए बिना स्थानीय ग्राम सभा की मंजूरी के ही भूमि अधिग्रहण का प्रावधान है। इसी तरह सरकार ने रिपीलिंग एंड अमेंडिंग बिल 2022 को लोकसभा से सिर्फ नौ मिनट में पास करा लिया पर विपक्ष ने इसकी कोई परवाह नहीं की।
जन विश्वास अमेंडमेंट ऑफ प्रोविजन बिल, 2022 को सिर्फ 42 मिनट में लोकसभा से पास कराया गया। इस कानून में यह प्रावधान है कि घटिया या नकली दवा से मौत होने पर दवा कंपनियां जुर्माना चुका कर राहत हासिल कर सकेंगी। कांस्टीट्यूनशन शिड्यूल ट्राइब्स ऑर्डर फिफ्थ अमेंडमेंट बिल 2022 को राज्यसभा ने पास कर दिया। बायोलॉजिकल डायवर्सिटी अमेंडमेंट बिल 2021 को लोकसभा ने पास कर दिया। कांस्टीट्यूशन शिड्यूल्ड ट्राइब्स ऑर्डर थर्ड अमेंडमेंट बिल 2022 को राज्यसभा ने पास कर दिया और सिनेमैटोग्राफी अमेंडमेंट बिल 2023 को भी राज्यसभा ने पास कर दिया। इस दौरान विपक्षी पार्टियां मणिपुर पर विरोध प्रदर्शन करती रहीं या फिर दिल्ली के अध्यादेश वाले विधेयक को लेकर रणनीति बनाती रहीं। सिनेमैटोग्राफी बिल पर ढाई घंटे की चर्चा हुई लेकिन सिर्फ सत्तापक्ष के या सरकार को मुद्दा आधारित समर्थन देने वाली पार्टियों के सांसदों ने इसमें हिस्सा लिया।
सरकार माइंस एंड मिनरल्स बिल लाने वाली है, जिसमें यह प्रावधान है कि वह जरूरी और कीमती माइंस एंड मिनरल्स की खदानें निजी क्षेत्र को दे सकती हैं। सरकार आईआईएम की स्वायत्तता घटाने का बिल ला रही है, जिसमें राष्ट्रपति को सभी आईआईएम का विजिटर बनाने का प्रस्ताव है और इसमें यह भी प्रावधान है कि सारे आईआईएम में नियुक्ति बोर्ड की बजाय  राष्ट्रपति की मंजूरी से होगी। सरकार डाटा प्रोटेक्शन बिल लाने वाली है, जिससे सूचना के अधिकार पर प्रहार होना है। लेकिन ऐसा लग नहीं रहा है कि विपक्षी पार्टियों को इन विधेयकों की कोई परवाह है। वे अपने एकसूत्री एजेंडे के पीछे लगे हुए हैं। एक तरफ सरकार मनमाने तरीके से बिना बहस के विधेयक पास करा रही है तो दूसरी ओर विपक्षी पार्टियां सब छोड़ कर मणिपुर पर प्रदर्शन कर रही हैं या अरविंद केजरीवाल के एजेंडे को पूरा करने में लगी हैं।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि संसद का सुचारू संचालन सरकार की जिम्मेदारी होती है। लेकिन सरकार के साथ साथ विपक्ष की भी कुछ जिम्मेदारी होती है। पता नहीं विपक्षी पार्टियां इस तथ्य को क्यों ध्यान में नहीं रखती हैं कि चुनावों में देश की जनता सिर्फ सरकार नहीं चुनती है वह विपक्ष भी चुनती है। अगर उसकी चुनी सरकार की कुछ जिम्मेदारी है तो उसके द्वारा चुने गए विपक्ष की भी कुछ जिम्मेदारी है। कोई एक मुद्दा चाहे वह कितना ही महत्वपूर्ण क्यों नहीं हो उस पर संसद को पूरे सत्र में ठप्प किए रखना कहीं से भी अच्छी संसदीय राजनीति नहीं कही जाएगी। विपक्षी पार्टियों को सत्र से ठीक पहले ‘संयोगÓ से उपलब्ध कराए गए मुद्दों के पीछे पड़ने की बजाय समग्रता में अपनी रणनीति बनानी चाहिए। जरूरी मुद्दे उठाने का एक संतुलित अनुपात होना चाहिए। मणिपुर के मुद्दे पर विरोध जारी रखते हुए भी विपक्षी पार्टियां सरकार की ओर से पेश किए जा रहे विधेयकों पर चर्चा में हिस्सा ले सकती हैं। विपक्ष के ऐसा नहीं करने से इस तरह के कानून बन रहे हैं, जो आम लोगों के हितों को नुकसान पहुंचा सकते हैं।