कत्यूर घाटी गरुड़ में पनप रहा एक बृहद जनांदोलन, कल किसान देगे मुख्यमंत्री को ज्ञापन
बागेश्वर गरुड़ । हमारी सरकार का एक जबरदस्त नारा 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का आज यहाँ के किसानों का मुंह चिढ़ाता से नजर आ रहा है।
सरकार की कथनी के विपरीत आज उत्तराखंड के गावो के हालात यहाँ तक पहुंच चुके है कि अब किसान खेती करने के बजाय अपने उपजाऊ खेतों को बंजर रहने देना ही अपना मुनाफे का सौदा समझने लगे हैं।
कत्यूर के विकास खंड गरुड़ के अन्तर्गत चारो तरफ़ बंदरों की अधिसख्य तादाद हो जाने के कारण बहुत बढ़ा आतंक का माहौल बना हुआ है.
इस असंख्य बन्दरों की संख्या ने कत्यूर घाटी के आम जनमानस का जीना दुश्वार कर दिया है. खेती बजीचे कृषि आदि सब चौपट हो रही है . बाज़ार क्षेत्र भी इन बंदरों के आतंक से अछूता नहीं है . इस बंदरों द्वारा न केवल कृषि उत्पादन को नष्ट किया जा रहा है बल्कि ये खुख़ार होते बंदर बच्चों महिलाओं व सभी लोगो को काट दे रहे है.
इस समस्या के निराकरण करने हेतु विकास खंड गरुड़ के विभिन्न ग्राम पंचायत के ग्राम प्रधान , क्षेत्र पंचायत के सदस्यों, ज़िला पंचायत के सदस्यों जिनमे ग्राम पाये की प्रधान श्रीमती उमा भट्ट , मेटना क्षेत्र पंचायत सदस्य भोला दत्त तिवारी, भकुनखोला ज़िला पंचायत सदस्य जनार्दन लोहूमी द्वारा बार बार अनुरोध व लिखित ज्ञापन महोदय के समक्ष प्रस्तुत २०२१ – २०२२ में किया .
किसान संगठन के जिला अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद द्वारा भी समय समय पर शासन से इस संबंध में गुहार लगायी जा चुकी है.
29 दिसंबर 2019 को गरुड़ सिविल सोसाइटी द्वारा आयोजित ‘गरुड़ सम्मेलन ‘ में भी प्रमुखता से बंदरों व अन्य जंगली जानवरों के आतंक से परेशान कत्यूर की जानता द्वारा विशाल रैली में भी हिस्सा लिया था और इस आशय का ज्ञापन भी प्रेषित कर दिया गया था.।
लेकिन अफसोस कि बात है कि आजतक सरकार की कानों में जू तक नही रेंग पाई हैं।
इस समस्या पर अभी तक कोई कार्यवाही अमल में नहीं लायी गई है जिस कारण कत्यूर क्षेत्र की समस्त जनता का धैर्य जबाब देने लगा है अगर समय रहते इस समस्या का निराकरण नहीं किया गया तो कत्यूर क्षेत्र की जनता आंदोलन करने के लिए बाध्य हो जाएगी।
उपरोक्त सम्बंध में सभी किसानों द्वारा यह फैसला किया गया हैं कि कल मुख्यमंत्री को एक ज्ञापन देकर सरकार को चेताया जाए व त्वरित कार्यवाही न होने पर एक बृहद जनांदोलन की रूपरेखा तय की जाए। ताकि हमारी खेतीबाड़ी व हमारा पहाड़ी जीवन सुरक्षित रह सके ।