संदेह की वजहें हैं
अनुमान लगाया जा सकता है कि नए निर्वाचन आयुक्तों को लेकर कई तरह के कयास लगाए जाएंगे। कुल नतीजा निर्वाचन आयोग की साख में और क्षरण के रूप में सामने आएगा। जब देश आम चुनाव के मुहाने पर है, तब ऐसा माहौल सिरे से अवांछित है।
जिन हालात में निर्वाचन आयुक्त अरुण गोयल ने अचानक अपने पद से इस्तीफा दिया, उससे शक पैदा होने की ठोस वजहें हैं। जिस फुर्ती से उनके इस्तीफे को स्वीकार किया गया, उससे अटकलों को और बल मिला है। इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति करने वाली समिति की बैठक पहले से बुला रखी है। अब इसमें संभवत: दो आयुक्तों की नियुक्ति का फैसला होगा। इस समिति का गठन हाल ही में पारित कानून के तहत किया गया है। इस कानून के जरिए सुप्रीम कोर्ट की तरफ से स्थापित की गई नियुक्ति प्रक्रिया को रद्द कर दिया गया।
अगर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक चयन समिति बनती, तो उसमें प्रधानमंत्री के अलावा भारत के प्रधान न्यायाधीश और लोकसभा में सबसे बड़े दल के नेता शामिल होते। लेकिन अब इसमें प्रधान न्यायाधीश की जगह प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त उनकी ही सरकार के एक मंत्री होंगे। इस तरह इसी हफ्ते निर्वाचन आयुक्त के खाली पदों पर सत्ता पक्ष की मर्जी से दो नियुक्तियां हो जाएंगी। खबरों में बताया गया है कि गोयल के मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार से कुछ मुद्दों पर मतभेद उभर गए थे। मगर मतभेदों के कारण नौकरशाही के बड़े स्तरों पर इस्तीफे होते हों, यह सामान्य नहीं है।
खासकर यह देखते हुए गोयल वही शख्स हैं, जिन्हें नवंबर 2022 में केंद्रीय उद्योग विभाग के सचिव पद से स्वैच्छिक अवकाश ग्रहण करने के एक दिन बाद ही निर्वाचन आयुक्त बना दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस नियुक्ति पर सख्त टिप्पणियां की थीँ। तब यही कहा गया था कि सरकार ने अपने एक विश्वस्त व्यक्ति को आयोग में रखने के लिए मर्यादाओं का उल्लंघन किया है। अब अगर वही व्यक्ति निर्वाचन आयोग से औचक इस्तीफा देकर चला गया, तो संदेह कुछ ज्यादा ही गहरा हो जाता है। इस बीच आयोग में नियुक्तियां होंगी। अनुमान लगाया जा सकता है कि उनको लेकर विपक्षी दायरों में कई तरह के कयास लगाए जाएंगे। कुल नतीजा निर्वाचन आयोग की साख में और क्षरण के रूप में सामने आएगा। जब देश 18वें आम चुनाव के मुहाने पर है, तब ऐसा माहौल सिरे से अवांछित है।