एलेक्ट्रोलबोंड: कितना कुछ जाहिर होगा?
आशंका जताई गई है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश में ही ऐसी बात शामिल है, जिससे कई महत्त्वपूर्ण सूचनाएं जाहिर होने से रह जाएंगी। फिलहाल, यह नहीं मालूम होगा कि किस व्यक्ति या उद्योग घराने ने किस पार्टी को कब और कितना चंदा दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने आम चुनाव तक इलेक्ट्रॉल बॉन्ड्स संबंधित विवरण पर परदा डालने की भारतीय स्टेट बैंक की कोशिश नाकाम कर दी। कोर्ट के आदेश के मुताबिक अब 15 मार्च को स्टेट बैंक से मिली जानकारियां निर्वाचन आयोग को अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करनी होंगी। इससे देश को पता चलेगा कि इन बॉन्ड्स के माध्यम से किन लोगों या उद्योग घरानों ने राजनीतिक चंदा दिया। किस राजनीतिक दल को कितना चंदा मिला, यह ब्योरा भी आयोग की वेबसाइट पर आ जाएगा। मगर यह सूचना तो पहले से सार्वजनिक दायरे में उपलब्ध है। आशंका जताई गई है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश में ही ऐसी बात शामिल है, जिससे कई महत्त्वपूर्ण सूचनाएं जाहिर होने से रह जाएंगी। फिलहाल, यह नहीं मालूम होगा कि किस व्यक्ति या उद्योग घराने ने किस पार्टी को कब और कितना चंदा दिया। अगर ये जानकारियां सामने आतीं, तो सिविल सोसायटी के लोग यह आकलन करने की स्थिति में होते कि केंद्र और विभिन्न राज्यों में सत्ताधारी दलों को किन घरानों से कितना पैसा मिला।
फिर वे यह पड़ताल करते कि क्या संबंधित सरकार ने से फैसला लेते वक्त उन खास घरानों के साथ पक्षपात किया। यानी क्या उन घरानों को कोई अनुचित लाभ पहुंचाया गया। इससे वह पारदर्शिता आती, जिससे भविष्य में धनी-मानी तबकों और राजनीतिक दलों के बीच होने वाली प्रत्यक्ष लेन-देन पर रोक लगती। मगर, स्टेट बैंक ने कह दिया कि यह मिलान करने में उसे बहुत वक्त लगेगा। इस बीच उसके पास चंदा दाताओं और चंदा प्राप्तकर्ताओं की सूची है, जिसे वह सौंप सकता है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी कर दी कि उसने कभी वह ब्योरा देने को नहीं कहा था, जिसके लिए स्टेट बैंक समय मांग रहा है। कोर्ट के इस नजरिए से उन बहुत से लोगों को निराशा हुई है, जो चुनावी चंदे में पूरी जवाबदेही के लिए प्रयासरत रहे हैं। इस तरह उनके नजरिए से देखा जाए, तो इलेक्ट्रॉल बॉन्ड्स के मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला पारदर्शिता की आंशिक जीत ही है। अब देश के मतदाताओं को अगले आम चुनाव में अपना निर्णय बिना उपरोक्त महत्त्वपूर्ण जानकारी के ही तय करना होगा।