देश मे बेरोजगारी बन रही राष्ट्रीय विमर्श का हिस्सा
ऐसे वक्त में जब देश भर के किसान अपनी फसलों के लिये सम्मानजनक न्यूनतम समर्थन मूल्य की मांग पर दिल्ली कूच कर रहे हैं और वकील व सिविल सोसायटियां ईवीएम से वोट न कराने के लिये प्रदर्शन कर रही हैं, भारतीय जनता पार्टी की मुश्किलें इस मायने में और भी बढ़ती आ रही हैं कि अब देश में चरम पर पहुंच चुकी बेरोजगारी की आंच युवाओं और छात्रों को झुलसाने लगी है। कथित ‘मोदी मैजिक’ उतरता दिख रहा है क्योंकि युवा जीवन की तल्ख़ सच्चाइयों से परिचित हो रहे हैं। अगर युवाओं और छात्रों को इस बात का एहसास हो गया कि उन्हें भावनात्मक मुद्दों के आधार पर बरगलाया गया है तो भाजपा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मुश्किलें आगामी लोकसभा चुनाव में बढ़ सकती हैं जिसकी किसी भी क्षण घोषणा होने का इंतज़ार देश कर रहा है।
नरेन्द्र मोदी का आविर्भाव और उनके तेजी से भारतीय राजनीति में छा जाने के लिये सबसे अधिक जिम्मेदार युवा व छात्र ही थे। आज वही वर्ग उम्र के इस मुकाम पर खड़ा है जहां वह महसूस कर रहा है कि अगर अगले एक-दो वर्षों में उसे नौकरी न मिली तो उसके सामने आजीवन बेरोजगार रहने का खतरा है। 2013 में श्री मोदी को जब भारतीय जनता पार्टी और उनकी मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया था तो उनका सबसे बड़ा समर्थक वर्ग यही युवाओं व किशोरों का था। उनके मन में भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के नेताओं के बारे में घृणा भरी हुई थी। गांधी और नेहरू को गालियां देने वाले ऐसे युवाओं का राजनैतिक ज्ञान इतना ही था कि ‘अय्याश’ नेहरू ने कश्मीर पाकिस्तान को दे दिया और अगर उनकी जगह सरदार पटेल प्रधानमंत्री बनते तो अब तक अखंड भारत बन चुका होता। वे यह भी मानते थे, अब भी कई ऐसे हैं जो ऐसा ही सोचते हैं, कि कांग्रेस गद्दारों की पार्टी है और मुस्लिम परस्त है।
उस वाट्सएप विश्वविद्यालय से आयातित
ज्ञान का पाठ्यक्रम विशालकाय है, जिसकी स्थापना इन्हीं लोगों के लिये की गयी है और जिसके सारे अध्यायों को किसी भी अखबार के सीमित पन्नों में नहीं समेटा जा सकता। बहरहाल, देश के 1947 में आजाद होने नहीं वरन उसे 99 वर्षों के लिये लीज़ पर देने वाला यह वर्ग मौजूदा सरकार के राज में मस्जिदों के सामने नाच-गाकर मजे से समय काट रहा था। कुछ अब भी यही ‘क्वाालिटी टाइम’ व्यतीत कर रहे हैं। यही वह वर्ग था जो मानता था कि इस महामानव के पास सारी समस्याओं का हल है और वह (मोदी) डॉ. मनमोहन सिंह जैसा हार्वर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ने की बजाय हार्ड वर्क करके चीन और पाकिस्तान को कंपकंपा देगा।
राहुल गांधी ने रोजगार का मसला उठाकर उस तालाब में कंकड़ नहीं बल्कि बड़ा सा पत्थर फेंक दिया है जिससे युवाओं-छात्राओं की उनींदी आंखों पर पानी का ऐसा जबर छिड़काव हुआ है कि उनकी आंखें खुलती सी दिख रही हैं। वैसे तो राहुल गांधी ने जब 7 सितम्बर, 2022 से 30 जनवरी, 2023 तक (कन्याकुमारी से कश्मीर) की भारत जोड़ो यात्रा की थी, तब भी बड़ी संख्या में उनसे मिलने युवा आ रहे थे। उन्होंने यह पाया कि जिस व्यक्ति की छवि को जैसा पेश किया गया था, वह वैसा बिलकुल नहीं है।
वह न युवराज है न शहजादा। अग्निवीर योजना जब भारत सरकार लेकर आई तभी श्री गांधी ने इसे युवाओं के साथ अन्याय बतलाया था। आज साबित हो चुका है कि देश की सेना तक उससे रज़ामंद नहीं थी। एक सनकपूर्ण व अदूरदर्शितापूर्वक लिये गये फैसले से छात्रों व युवाओं के करियर को तो नुकसान हुआ ही, सेना को भी अधिकारियों की कमी का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। 14 जनवरी से निकली उनकी भारत जोड़ो न्याय यात्रा में भी असंख्य युवा राहुल गांधी से मिल रहे हैं। अब यह वर्ग जान गया है कि उनके भीतर नफरत और हिंसा इसलिये भरी गयी थी ताकि भाजपा सरकार उनके रोजगार भी छीन ले तो वे उसका विरोध न कर सकें। अब वह यह भी जान गया है कि हर साल 2 करोड़ लोगों को रोजगार देने की बात सिवाय जुमले के कुछ नहीं था। अब वे इस स्थिति में और जीवन के इस पड़ाव में पहुंच गये हैं जिसमें न वे नौकरी के लायक रह गये हैं और न ही पकौड़े बेच सकते हैं।
पछतावे व खुल चुकी और आंखों के साथ अब युवा राहुल गांधी के साथ यात्रा के दौरान मंच साझा कर रहे हैं। जिस उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की पुलिस छात्रों और युवाओं पर डंडे बरसाने में कोई मुरव्वत नहीं करती, वहीं वाराणसी, प्रयागराज आदि में युवा व छात्र राहुल के साथ वाहनों के बोनट और छतों पर खड़े होकर बता रहे हैं कि कैसे यहां प्रश्नपत्र योजनाबद्ध तरीके से लीक कराकर परीक्षाएं ही निरस्त करा दी जाती हैं। कभी ‘मोदी मोदी’ का समवेत करने वाले युवा अब बता रहे हैं कि कैसे वे अग्निवीर योजना के माध्यम से ठगे गये हैं। युवाओं के जाग्रत होने का ही यह खौफ है कि 17-18 फरवरी को हुई पुलिस भर्ती परीक्षा इसलिये रद्द कर दी गयी क्योंकि उसके पेपर लीक हो गये थे। इसे लेकर राज्य में युवाओं-छात्रों के प्रदर्शन हुए थे। राहुल के अलावा प्रियंका गांधी भी उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में हुई सभा में लोगों का अपने हक के लिये लड़ने का आह्वान कर रही थीं। राहुल कह रहे हैं कि ‘वे बब्बर शेर हैं और उन्हें किसी से डरने की ज़रूरत नहीं है।’ बेरोजगारी का राष्ट्रीय विमर्श का हिस्सा बनना बेहद शुभ संकेत है।’