दुकानदारों के नाम सार्वजनिक समाज में विभेद पैदा
कांवड़ यात्रा के मार्ग पर दुकानदारों के नाम सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शित करने के उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड प्रशासन के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम रोक लगा दी है।
दो जजों की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि खाना बेचने वालों को यह बताना जरूरी है कि वे किस तरह का खाना दे रहे हैं, लेकिन उस पर मालिक या कर्मचारियों का नाम सार्वजनिक करने के लिए जोर नहीं डाला जा सकता। पीठ ने विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड सरकार को नोटिस जारी करते हुए जवाब मांगा है।
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से स्पष्टीकरण दिया गया कि आदेश का अनुपालन स्वैच्छिक है, लेकिन इसे बलपूर्वक लागू किया जा रहा है। प्रमुख विपक्षी दलों द्वारा इसकी निंदा की गई तथा इसे विभाजनकारी कदम बताया। इस आदेश से समानता के अधिकार, अस्पृश्यता, भेदभाव का निषेध तथा कोई भी व्यापार करने के अधिकार का हनन कहा गया। वर्षो से चली आ रही यात्रा पर पहले कभी इस तरह के कोई आदेश नहीं जारी किए जाते रहे हैं।
कांवड़ मार्ग में आने वाले ढाबे/रेहड़ी स्वयं प्रचार करते हैं कि उनके यहां शुद्ध वैष्णव भोजन मिलता है। दूसरे फूड सेफ्टी एंड स्टैंर्डड एक्ट (एफएसएसएआई) व स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट जैसे कानून पहले ही मौजूद हैं। जो खाद्य पदाथरे की गुणवत्ता सुनिश्चत करने का काम करते हैं। बाजार में मिलने वाले भोज्य पदार्थ स्वच्छ हों, उनमें किसी तरह की मिलावट या गंदगी न हो, यह जांचना स्थानीय प्रशासन का काम है।
सवाल सिर्फ कांवड़ श्रद्धालुओं का ही नहीं है बल्कि यह हर उपभोक्ता का अधिकार है कि उसे शुद्ध-स्वच्छ खाना मिले। बीते कुछ सालों से राज्य सरकारें कांवड़ यात्रा में विशेष रुचि ले रही हैं, जबकि इन्हीं राज्यों में और भी तीर्थ स्थल हैं, जो बुरी तरह उपेक्षित हैं या वहां किसी तरह की सुविधाओं का ख्याल नहीं रखा जाता। हम सिर्फ धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र ही नहीं हैं बल्कि हमारी संस्कृति हमें सहिष्णुता व भाई-चारा भी सिखाती है
इस तरह के आदेशों से कारोबार बाधित होता है और नीचे के वर्ग को रोजगार या दिहाड़ी से हाथ धोना पड़ता है। साथ ही समाज में विभेद पैदा होगा। इस आदेश का सबसे ज्यादा नुकसान छोटे व गरीब दुकानदारों को होता, जो रोज कमाने-खाने वाले हैं। राज्य सरकारों को अदालत के हस्तक्षेप से पूर्व ही विचारपूर्वक निर्णय लेने की आदत डालनी होगी।