आईएएस भारत के इस्पात फ्रेम में बदलाव
लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल ने 21 अप्रैल, 1947 को राजधानी के मेटकॉफ हाउस में आजाद होने जा रहे भारत के पहले बैच के आईसीएस जो 1948 से आईपीएस कहलाए; ऐसे सभी अफसरों को संबोधित करते हुए कहा था कि ‘उन्हें स्वतंत्र भारत में जनता के सवालों को लेकर गंभीरता और सहानुभूति का भाव रखना होगा।
उन्हें अपने दायित्वों का निर्वाह ईमानदारी से करना होगा।’ सरदार पटेल ने उन्हें स्वराज और सुराज का अंतर भी समझाया था। जाहरि है, उनका ईमानदारी से आशय यही रहा होगा कि वे अपने जीवन के हर क्षेत्र में शुचिता और तटस्थता का पालन करेंगे। पर हाल में आईएएस प्रोबेशनर, पूजा खेडकर मामले को गहराई से देखने से समझ आ रहा है कि कुछ शातिर तत्व आईएएस या अन्य सरकारी नौकरियों को पाने के लिए फर्जी प्रमाणपत्र भी सौंपते हैं। उनके लिए ईमानदारी का कोई मतलब नहीं है। उन्हें सरदार पटले की सीख से भी कोई लेना-देना नहीं।
पूजा खेडकर मसूरी के लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी में प्रशिक्षण ले रही थीं। उन्हें महाराष्ट्र-उनके अपने राज्य कैडर-में जिला प्रशिक्षण के लिए भेजा गया था। उन्हें एहसास नहीं था कि आईएएस अफसर बनने का मतलब जन सेवा होता है। इसके बजाय, उसने इस पद को हासिल करने के बाद अपनी झूठी शान दिखानी शुरू कर दी। उसने कार, सुसज्जित कार्यालय और कर्मचारियों जैसी कई सुविधाओं की मांग की। चूंकि प्रोबेशनर्स इन लाभ के हकदार नहीं होते हैं, इसलिए उन्हें कोई भी लाभ नहीं दिया गया। इसलिए, उसने अपनी दैनिक जरूरतों के लिए एक लग्जरी कार ‘किराए पर’ ली।
इससे भी बुरा यह है कि उन्होंने कार की छत पर नीली बीकन लाइट भी लगाई। पूजा का चयन दो विशेष श्रेणियों के तहत किया गया था। एक, वह ओबीसी के गैर-क्रीमी वर्ग से संबंधित हैं। यह स्वयं ही संदिग्ध है, यह देखते हुए कि उनके पिता एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी थे। फिर वह गैर-क्रीमी लेयर में कैसे चुनी गई? उनके परिवार के पास पर्याप्त जमीन है जो निश्चित रूप से उन्हें एक अलग आर्थिक श्रेणी में रखेगी। पूजा ने यह भी दावा किया था कि उसकी एक अलग तरह की शारीरिक स्थिति है, जो उसे विकलांग कोटे के तहत आरक्षित सीट के लिए हकदार बनाती है
यूपीएससी और कार्मिंक विभाग द्वारा विकलांगता के संबंध में कुछ तय दिशा-निर्देशों का पालन करते है।
एक व्यक्ति जिसे एक आंख में दृष्टि नहीं होती है, उसे ‘विकलांग’ नहीं माना जाता है, यदि दूसरी आंख हर तरह से ठीक है। मैंने इसके बारे में तब जाना जब मेरे एक मित्र के पुत्र ने सिविल सेवा परीक्षा दी।। बचपन में, उसके एक भाई ने उसकी दाहिनी आंख में कंपास (नुकीली चीज) डाल दी थी, जिससे वह आंशिक रूप से अंधा हो गया था। वह विकलांग कोटे के तहत आरक्षण के लिए योग्य नहीं होता, अगर उसकी दूसरी आंख सही होती। उसकी ‘सामान्य’ आंख में आंशिक अंधापन था। कुल. मिलाकर अगर पूजा ने नखरे नहीं दिखाए होते, तो वह सेवा में बनी रहती। इससे कांड के बाद यूपीएससी की कार्यप्रणाली भी अच्छी रोशनी में नहीं दिखता है।
इस बीच, तेलंगाना में एक आईएएस अधिकारी के बारे में भी रिपोर्ट आई हैं, जो कुछ विकलांगताओं के आधार पर सेवा में शामिल हुए। उदाहरण के लिए, उन्हें कथित तौर पर पोलियो का हमला हुआ है, लेकिन घोड़े की सवारी और साइकिल चलाते हुए उनके वीडियो यह तो नहीं बताते कि वे कभी पोलियो के शिकार थे। इससे यह सवाल उठता है कि क्या सिविल सेवाओं में विकलांग श्रेणियों के तहत रिक्तियों को भरने में मानदंडों का सख्ती से पालन किया जाता है। लगता तो यही है कि इस मामले में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ है और पिछले दस-पंद्रह साल में विकलांगता के आधार पर चुने गए ऐसे सभी मामलों को जांच के दायरे में लाने की आवश्यकता है।
आईएएस, जिसे अक्सर ‘भारत के इस्पात फ्रेम’ के रूप में जाना जाता है, यह उपाधि सरदार वल्लभभाई पटेल, ‘भारत के लौह पुरु ष’ से प्राप्त करता है। उन्होंने नव स्वतंत्र भारत की एकता और स्थिरता बनाए रखने में सिविल सेवाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका पर जोर देने के लिए इस शब्द का इस्तेमाल किया था। आईएएस राष्ट्र के प्रभावी शासन के लिए आवश्यक, सबसे प्रतिष्ठित सेवाओं में से एक है। यदि देश की जनता के दिल में आईएएस पदाधिकारियों के प्रति स्वाभाविक रूप से सम्मान और आदर का भाव नहीं रह जाएगा, तो कोई भी आईएएस प्रशासन कर ही नहीं पाएगा।
आईएएस अधिकारियों से अपनी भूमिकाओं में निष्पक्षता और अखंडता का प्रदर्शन करने की अपेक्षा की जाती है। उनके फैसले लाखों लोगों के जीवन और देश की समग्र स्थिरता को प्रभावित करते हैं। निष्पक्षता बनाए रखकर और कानून के शासन का पालन करके, आईएएस अधिकारी यह सुनिश्चित करने में मदद करते हैं कि सरकार की नीतियां और कार्यक्रम निष्पक्ष रूप से और प्रभावी ढंग से लागू किए जा रहे हैं। भर्ती प्रक्रिया से समझौता पक्षपात ला सकता है और कानून के शासन को कमजोर कर सकता है, जिससे अस्थिरता और जनता का विश्वास कम हो सकता है। पूजा खेडक़र का मामला इस बात की गवाही है कि हमारे देश में फर्जी प्रमाणपत्र दिखाकर मलाई खाने का खेल खूब चल रहा है, जिसे बंद किए जाने की आवश्यकता है।