आजाद भारत के इतिहास में बतौर कलंक निश्चित ही दर्ज रहेगी
यथा राजा तथा प्रजा, हम हिंदुओं का शाश्वत सूत्र वाक्य है। तभी जैसा मोदी राज वैसे ही संसद, संविधान, कोर्ट-कचहरी, विपक्ष, मीडिया आदि उन तमाम संस्थाओं का आज व्यवहार है, जिससे देश, कौम, नस्ल, धर्म, सभ्यता की वह शर्म है जो आजाद भारत के इतिहास में बतौर कलंक निश्चित ही दर्ज रहेगी।
ईमानदारी से सोचें, सन् 2014 में निर्वाचित संसद के काम से लेकर इस सप्ताह की संसदीय घटनाक्रम में ऐसा तनिक भी कुछ है जैसा कांग्रेस, विपक्ष या वाजपेयी राज में था?
तब की संसद कैसी थी, कैसे चलती थी और वही अब मोदी राज की संसद का क्या अनुभव है?
जाहिर है जैसा प्रधानमंत्री, वैसा राज और वैसे ही बाकी सब। जैसा मोदी राज है वैसा विपक्ष है। और दोनों में इतनी भी समझ नहीं कि संसद और उसका परिसर पूरे भारत, पूरे देश के प्रतिनिधित्व का विशेषाधिकारपूर्ण गरिमामय स्थान है।
जैसे लाल किले के बादशाह का दरबार ए खास या दरबार ए आम हुआ करता था।
उस स्थान पर यदि पानीपत के मैदान वाली लड़ाई की शत्रुता में लाठियां (तख्तियां, भीड़) लेकर सांसद लड़े और उसके फैसले में चांदनी चौक का कोतवाल जाचंकर्ता हो तो वह कौम के लिए शर्म, कलंक, डूब मरने वाली क्या स्थिति नहीं है?
ऊपर से हुजूर (आज के नरेंद्र मोदी), उनके वजीर खुद ही संसद की तौहीन व अपमान के लिए कोतवाल को बुलाकर उसके कान में फुसफुसा कर कहें यह मेरा विरोधी है, इस पर चार्जशीट बनाओ और कचहरी से जेल में बंद करवा दो।
सोचें, संसद और उसके सांसद कानून बनाने वालों के लिए उसी की व्यवस्था में, कानूननिर्माताओं की जगह में सांसदों के व्यवहार का जांतकर्ता, निर्णयकर्ता एक कोतवाल! लंदन की संसद, वेस्टमिनिस्टर या दुनिया के किसी भी सभ्य लोकतंत्र में यह नजारा कभी देखने को नहीं मिला (और न मिलेगा) कि सांसदों की भीड़ में धक्कामुक्की हुई, तो प्रधानमंत्री के सांसद तुरंत बगल की कोतवाली जा कर
एफआईआर कराएं!
दुनिया वीडियो पर यह नौटंकी देखे कि सिर पर एक चिपी, फिर पट्टी, फिर पूरा सिर मानो ऑपरेट हुआ हो जैसा बड़ा पट्टा दिखला नेता प्रतिपक्ष के खिलाफ कोतवाल द्वारा ताउम्र कैद की तमाम धाराओं में जांच!
सोचें, लाल किले के किस मुगल बादशाह या नेहरू से ले कर डॉ. मनमोहन सिंह के राज में ऐसा हुआ?
खुद सत्तापक्ष अपनी ही विधायिका के सांसदों के झगड़े, धक्कामुक्की की कोतवाल के यहां रिपोर्ट दर्ज कराते हुए! यदि निर्वाचित सरकार, निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की एक संसद की प्रक्रिया को भी शांतिपूर्ण ढंग से नहीं चलवा पाए, विपक्ष के शोर-गतिरोध और प्रर्दशन का समाधान बातचीत से नहीं निकाल पाए तो यह किस बात का प्रमाण है?
मोदी सरकार द्वारा चरित्र, बुद्धि और अपना कलंकित इतिहास बनाने का! तब संसद, संसदीय प्रक्रिया, नियमावली, स्पीकर, सभापति, उप सभापति, संसद नेता और प्रतिपक्ष नेता, संसदीय परिसर के कारिंदों आदि सबका क्या अर्थ है?
उफ! बुद्धि, दिमाग, बेशर्मी और अहंकार। मुझे बहुत झटका लगा जब सुना कि धक्कामुक्की हुई और नेता प्रतिपक्ष को टारगेट बना कर सरकार के सांसदों ने कोतवाल के यहां जा कर शिकायत दर्ज कराई!
क्या पतन है नेहरू राज से मोदी राज का! कल्पना करें ऐसा ही वाकया यदि वाजपेयी-आडवाणी के राज में हुआ होता?
पहली बात वे अपनी संसद में ऐसी नौबत नहीं आने देते कि पचास-पचपन साल के विधायिकी अनुभवी वाले सांसदों के मुंह से यह शिकायत सुनाई दे कि उन्हें बोलने नहीं दिया जाता! उनके माइक बंद हो जाते हैं!
उनके मुद्दे, नोटिस, बहस की मांग नहीं मानी जाती आदि, आदि। दूसरी बात, वाजेपयी और आडवाणी दोनों नेता विपक्ष को बुलाकर मंत्रणा, मान मनौव्वल, मनाने या उनकी मांग मानने के लिए हमेशा तत्पर हुआ करते थे।
मुझे ध्यान है कि वाजपेयी राज में संसद भवन में सावरकर की तस्वीर लगी तो पूरे विपक्ष का जबरदस्त गुस्सा था, मगर बात का बतगंड़ नहीं हुआ जो अंबेडकर के मौजूदा बवाल में हुआ है।
वाजपेयी याकि भाजपा राज की संसद ने सावरकर की तस्वीर लगाई तो लगाई।
यह नहीं हुआ कि विपक्ष की आपत्ति पर भाजपा के सांसदों ने सावरकर के प्रति कांग्रेस सरकारों की उपेक्षा की तख्तियां ले कर तब की नेता विपक्ष सोनिया गांधी का रास्ता रोकने का हंगामा किया।
और यह तो कल्पना ही नहीं संभव जो सत्ता पक्ष के सांसद को चोट लगे तो आडवाणी अपने सांसदों से कोतवाली जा कर शिकायत कराएं कि सोनिया गांधी ने धक्का दिया और हमारा बुजुर्ग सांसद घायल हुआ। एफआईआर दर्ज करो तथा सोनिया गांधी को तलब करो!
सो, यथा राजा तथा भाजपा। यथा राजा तथा सरकार। यथा राजा तथा संसद। यथा राजा तथा मीडिया। यथा राजा तथा सुप्रीम कोर्ट। यथा राजा तथा विदेश नीति।
यथा राजा तथा विकास। यथा राजा तथा समाज! यथा राजा तथा धर्म। हां, हम हिंदुओं के धर्म का भी नया बना इतिहास देखिए कि प्रधानमंत्री भगवान राम की ऊंगली पकड़ उन्हें उनके मंदिर में बैठा रहे हैं वही सहस्त्राब्दियों पुरानी सनातन पंरपरा के कुंभ मौके का एक मुख्यमंत्री ऐसा हल्ला बना रहे हैं, मानों नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ नहीं होते तो ऐसा कुंभ नहीं होता!
तभी 140 करोड़ लोगों की प्रतिनिधि संसद के सदाचार, कदाचार में क्या सच, क्या झूठ का दारोमदार अब कोतवाल के सुपुर्द है। तब यह कल्पना असंभव नहीं है जो कोतवाल रिपोर्ट करे कि संसद गुंडों की है।
संसद में गुंडई होती है और तब प्रधानमंत्री, गृह मंत्री सुरक्षा के नाम पर स्पीकर और सभापति, उप सभापति के पदों को उन सख्त आईपीएस कोतवालों के लिए आरक्षित करें, जिन्हें आसन पर देख कर सारे सांसद फौज के अनुशासित सैनिकों की तरह संसद में व्यवहार करें।
अच्छा ही है, हिंदूशाही के नाम पर मोदी राज को यह भी कर लेना चाहिए!