December 5, 2025

घुसपैठियों के मुद्दे पर भारत में सिर्फ बातें


दुनिया ने देखा, जब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका से अवैध प्रवासियों को निकाला। किसी दुश्मन देश के प्रवासी को नहीं, भारत जैसे दोस्त देश के अवैध प्रवासियों को भी ट्रंप की सरकार ने हथकड़ी और बेड़ी पहना कर सेना के विमान में भर कर भेजा था। जंजीरों में बंधे भारतीयों को लेकर अमेरिकी विमान अहमदाबाद में उतरा तो अमृतसर में भी उतरा। जंजीरों में जकड़े भारतीयों की फोटो अमेरिका की सीमा की सुरक्षा करने के लिए जिम्मेदार सर्वोच्च अधिकारी ने खुद जारी की। भारत के अलावा कई और लैटिन अमेरिकी और अफ्रीकी देशों के अवैध प्रवासियों को देश से बाहर निकाला। इसका असर भी तुरंत दिखने लगा। अब अमेरिका में अवैध रूप से घुसने के प्रयास में बड़ी कमी देखी गई है। ट्रंप ने तस्वीरों और वीडियो से पूरी दुनिया के एक संदेश दिया और पूरी दुनिया ने इसे देखा, सुना और समझा।
क्या ऐसी कोई तस्वीर भारत की ओर से कभी जारी हुई है? क्या भारत ने दुनिया को कभी दिखाया है कि देखो, ये बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं या ये म्यांमार से आए रोहिंग्या हैं, जिनको भारत बाहर निकाल रहा है? भारत में सिर्फ बातें होती हैं। घुसपैठियों के मुद्दे पर चुनाव लड़े जाते हैं।
नरेंद्र मोदी ने इसी साल लाल किले से अपने भाषण में कहा कि एक डेमोग्राफिक मिशन बनाया जाएगा, जो घुसपैठ को रोकने और घुसपैठियों को निकालने के लिए काम करेगा और बताया गया कि ऐसा इसलिए जरूरी है क्योंकि घुसपैठियों को कारण भारत की डेमोग्राफी बदल रही है। भारत की जनसंख्या संरचना घुसपैठिए बदल रहे हैं। लेकिन तीन महीने बाद डेमोग्राफिक मिशन के गठन की तो घोषणा नहीं हुई है लेकिन उसके बाद पूरा बिहार चुनाव इसी मुद्दे पर लड़ा गया कि एक एक घुसपैठिए को चुन कर बाहर निकालेंगे। लेकिन क्या कोई निकाला?
अब पश्चिम बंगाल का चुनाव इस मुद्दे पर लड़ा जाएगा कि एक एक घुसपैठिए को बाहर निकालेंगे। असम में तो खैर पिछले 10 साल से इसी मुद्दे पर भाजपा की सरकार चल रही है। लेकिन विडम्बना देखिए कि जिस राज्य में लाखों बांग्लादेशी घुसपैठियों के होने की बात भाजपा के नेता करते हैं वहां से कुछ हजार घुसपैठिए भी नहीं निकाले जा सके हैं। असम कांग्रेस के नेता और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष देबब्रत सैकिया ने सरकारी आंकड़ों के आधार पर कहा कि 2016 के बाद से अभी तक कानूनी रूप से सिर्फ 26 बांग्लादेशी घुसपैठियों को डिपोर्ट किया गया है। हालांकि उनको भी देश से निकालते हुए वैसी तस्वीर नहीं आई, जैसी अमेरिका से भारतीयों के निकाले जाने की थी।
जब कानूनी रूप से कथित घुसपैठियों को डिपोर्ट करने में सरकार नाकाम रही तो पुशबैक की पॉलिसी अपनाई गई, जिसके तहत कथित घुसपैठियों को ने मेंस लैंड में धकेल दिया जाता है और बाद में वे वापस आ जाते हैं। सरकार की पुशबैक नीति को लेकर पिछले विवाद तब हुआ जब दिल्ली और असम से कुछ भारतीय नागरिकों को भी नो मेंस लैंड में भेज दिया गया, जिसमें एक गर्भवती महिला और एक बच्चे भी थे। सरकार की ओर से इसका भी कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं जारी किया जाता है कि कितने घुसपैठियों को नो मेंस लैंड में भेजा गया। दो महीने पहले मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने विधानसभा में कहा कि एक महीने में 147 लोगों को नो मेंस लैंड में भेजा गया है। इससे पहले कितने भेजे गए या उसके बाद कितने भेजे गए नहीं बताया जा रहा है। सो नैरेटिव, भाषणों से भाजपा के लिए वोट का जुगाड़ लगातार है लेकिन निकालने की हिम्मत ही नहीं!