जापान की राजनीति में एक भारतीय योगी
अरुण नैथानी
कोई व्यक्ति भारत से स्कॉलरशिप लेकर जापान पढऩे जाये। फिर भारत से लौटने के बाद जापान में समानजनक नौकरी हासिल कर ले। इसके बाद जापानी समाज में इतनी पैठ बना ले कि चुनाव जीतने में कामयाब हो जाये तो निश्चित ही उसकी मेहनत और सामाजिक सरोकारों को श्रेय देना होगा।
भारतीय मूल के योगेंद्र पुराणिक, जिन्हें योगी के नाम से जाना जाता है, पिछले दिनों जापानी मीडिया में छाये हुए थे। उन्होंने पहले ऐसे भारतीय होने का गौरव हासिल किया, जिसने जापान में कोई चुनाव जीता हो। असेंबली चुनाव में उन्होंने भारतीय बहुल उस इलाके में कामयाबी हासिल की जहां बड़ी संया में चीनी व कोरियाई नागरिक रहते हैं। जिनके बूते वे वार्ड असेंबली का चुनाव जीतने में कामयाब रहे।
दरअसल, योगी एक पढऩे-लिखने वाले व्यक्ति रहे हैं। उन्हें राजनीतिक जीवन में सक्रियता का सबक तब मिला जब जापान में 2011 में भूकंप सुनामी आई। जापानी समाज के उदात्त मूल्यों व सेवा के सरोकारों ने उन्हें गहरे तक प्रभावित किया। उन्होंने समाज सेवा में बढ़-चढ़कर भागीदारी की और मन ही मन निर्णय किया कि वे अब जापान के ही होकर रहेंगे।
भारत में हो रहे आम चुनावों की खबरों से योगी बेखबर नहीं हैं। वे बताते हैं कि जापानी राजनीतिक जीवन में भारतीय राजनीतिक जीवन से कोई साय नहीं है। वहां हर उमीदवार दूसरे उमीदवार पर अनावश्यक आक्षेप नहीं करता बल्कि उसका पूरा समान करता है। चुनाव बेहद व्यवस्थित ढंग से होते हैं। नियमों के अनुपालन के लिये सुरक्षा व्यवस्था की पैनी निगाह होती है। साथ ही जापानी चुनाव प्रचार के दौरान घर-घर दस्तक देने और व्यक्तिगत मुलाकातों से खासा परहेज करते हैं। साथ ही चुनाव लडऩे के तौर-तरीकों के लिये उमीदवार को प्रशिक्षित किया जाता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि राष्ट्रीयता के उच मूल्यों का अनुपालन करने वाले जापानी समाज में चुनावी खर्च के विवरण में पूरी तरह पारदर्शिता बरती जाती है। योगी भारत में आकर राजनीति करने के मुद्दे पर हाथ खड़े कर देते हैं। योगेंद्र बताते हैं कि भारतीय राजनीति में पारदर्शिता की कमी महसूस होती है। यदि बदलाव के प्रयास होते भी हैं तो वे फलीभूत होते नजर नहीं आते। वे देश में चुनाव सुधारों की बड़ी पहल की आवश्यकता महसूस करते हैं। वे कहते हैं कि सामाजिक सरोकारों से जुडऩे के लिये मैं राजनीति में आया हूं। मकसद राजनीतिक महत्वकांक्षा नहीं, सामाजिक दायित्वों का निर्वहन है।
हां, योगेंद्र एक बात जरूर स्वीकारते हैं कि जापान में भी भारत की तरह वंशवाद नजर आता है। खासकर एलडीपी में, जिसकी इस देश में काफी पकड़ है। वे मानते हैं कि पार्श्व में धार्मिक मान्यताएं जापानी राजनीति में खासी भूमिका निभाती हैं।
योगी को जापान की कांस्टीट्यूशनल डेमोक्रेटिक पार्टी का समर्थन मिला। खासकर उनके मार्गदर्शक और सांसद अकिहीरो हत्सुशीका का उन्हें काफी सहयोग मिला। जिस इलाके में योगेंद्र पुराणिक रहते हैं वहां भारतीयों की बड़ी आबादी रहती है, जो करीब साढ़े चार हजार के आसपास होगी। हालांकि पूरे जापान में भारतीयों की संया 34 हजार के आसपास होगी। बड़ी संया में विदेशी लोग भी यहां रहते हैं।
योगी मानते हैं कि जापानी लोग बहुत विनम्र होते हैं और स्वछता के प्रति बेहद सजग। राष्ट्रीयता के उच मानकों का वे पालन करते हैं। भूकंप व सुनामी की त्रासदी के दौरान योगी को स्थानीय लोगों से जुडऩे का मौका मिला। उन्होंने इस मौके को जापानियों के दिलों में जगह बनाने के अवसर के रूप में देखा। उन्होंने तब जापान की नागरिकता ली और राजनीति में उतरने का मन बनाया। इस तरह जापान के चुनाव में जीत हासिल करने वाले वे पहले भारतीय बने। जापानी मीडिया ने भी इस खबर को हाथों-हाथ लिया।
योगी बताते हैं कि वह इस जीत के जरिये जापानियों और विदेशी मूल के लोगों के मध्य एक सेतु का काम करेंगे। साथ ही क्षेत्र के विकास को नई ऊंचाइयां देकर कालांतर संसद का चुनाव लडऩे का इरादा रखते हैं।
जापान में नई पहचान बनाने वाले इस भारतवंशी को वाम रुझान वाली पार्टी का समर्थन हासिल हुआ है, लेकिन वे सभी विचारधाराओं वाले लोगों को साथ लेकर चलने में विश्वास रखते हैं। उनका विकास का अपना एजेंडा है और वे बदलाव के वाहक बनना चाहते हैं। वे मानते हैं कि सामाजिक बदलाव के कई लक्ष्य बिना राजनीति में आये पूरे करने संभव नहीं थे, इसीलिये राजनीति में आने का मन बनाया। यह कोई पेशेवर राजनीति नहीं है, बल्कि सेवा के कार्य में राजनीति को महज माध्यम बनाया गया है। उन्हें विपक्षी डेमोक्रेटिक पार्टी का सहयोग भी इस जीत में मिला है।
योगी जापान में भारतीय समुदाय द्वारा चलाए जा रहे लिटिल इंडिया कार्यक्रम से जुड़े रहे हैं। उनका मानना है कि वे व्यावहारिक नीतियों से इसके लक्ष्यों का पुनर्निधारण करेंगे, जिससे प्रवासी भारतीयों की जापानी समाज में भागीदारी बढ़े और हम जापानी समाज के करीब आ सकें।