September 20, 2024

 मााँ नन्दा का प्रिय पुष्प ब्रăकमल जिससे भागती है    बुुुरी आत्म्मायेे

( अर्जुन राणा )

ब्रăकमल को अलग-अगल जगहों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे उŮारखंड में ब्रăकमल, हिमाचल में दूधाफूल, कश्मीर में गलगल और उŮार-पश्चिमी भारत में बरगनडटोगेस नाम से इसे जाना जाता है। ब्रăकमल भारत के उŮाराखंड, सिक्किम, अरूणाचल प्रदेश, कश्मीर में पाया जाता है। भारत के अलावा यह नेपाल, भूटान, म्यांमार, पाकिस्तान में भी पाया जाता है।
ब्रăकमल का अर्थ है ‘ब्रăा का कमल’। यह माˇ नन्दा का प्रिय पुष्प है । तालाबों या पानी के पास नहीं बल्कि जमीन पर होता है। ब्रăकमल 3000-5000 मीटर की šचाई में पाया जाता है। और इसकी भारत में लगभग 61 प्रजातियां पायी जाती हैं जिनमें से लगभग 58 तो अकेले हिमालयी इलाकों में ही होती हैं। ब्रăकमल का वानस्पतिक नाम सोसेरिया ओबोवेलाटा है। यह एसटेरेसी वंश का पौंधा है। इसका नाम स्वीडर के वैज्ञानिक डी सोसेरिया के नाम पर रखा गया था। ब्रăकमल उŮाराखंड का राज्य पुष्प है। उŮाराखंड में यह पिण्डारी, चिफला, रूपकुंड, हेमकुण्ड, ब्रजगंगा, फूलों की घाटी, केदारनाथ आदि जगहों में इसे आसानी से पाया जा सकता है। इस फूल के कई औषधीय उपयोग भी किये जाते हैं। इस के राइजोम में एन्टिसेप्टिक होता है इसका उपयोग जले-कटे में उपयोग किया जाता है। यदि जानवरों को मूत्र संबंधी समस्या हो तो इसके फूल को जौ के आटे में मिलाकर उन्हें पिलाया जाता है। गर्मकपड़ों में डालकर रखने से यह कपड़ों में कीड़ों को नही लगने देता है। इस पुष्प का इस्तेमाल सर्दी-जुकाम, हěी के दर्द आदि में भी किया जाता है। इस फूल की संगुध इतनी तीव्र होती है कि इल्का सा छू लेने भर से ही यह लम्बे समय तक महसूस की जा सकती है और कभी-कभी इस की महक से मदहोशी सी भी छाने लगती है। इस फूल की धार्मिक मान्यता भी बहुत हैं। ऐसी मान्यता है कि इससे बुरी आत्माओं को भगाया जाता है । इसे नन्दाष्टमी के समय में तोड़ा जाता है और इसके तोड़ने के भी सख्त नियम होते हैं जिनका पालन किया जाना अनिवार्य होता है। यह फूल अगस्त के समय में खिलता है और सितम्बर-अक्टूबर के समय में इसमें फल बनने लगते हैं। इसका जीवन 5-6 माह का होता है।