September 20, 2024

भारत माता मंदिर के संस्थापक पद्मभूषण स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि ब्रह्मलीन, एक दिन का राजकीय शोक घोषित 

हरिद्वार, ( आखरीआंख )  भारत माता मंदिर के संस्थापक पद्मभूषण स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि मंगलवार सुबह हरिद्वार में उनके निवास स्थान राघव कुटीर में ब्रह्मलीन हो गए। वह पिछले 15 दिनों से गंभीर रूप से बीमार थे और उनका देहरादून के मैक्स हॉस्पिटल में इलाज चल रहा था। लंबे समय तक वेंटिलेटर पर रहने के बाद उन्हें 5 दिन पहले हरिद्वार स्टेट उनके आश्रम ले आया गया था। यहीं पर उनकी कुटी को आईसीयू में तब्दील कर उनका इलाज चल रहा था। साथ ही उनके दीर्घायु होने की कामना को लेकर धार्मिक अनुष्ठान भी किए जा रहे थे। सरकार ने पद्मभूषण सत्यमित्रानन्द गिरि जी महाराज के ब्रहमलीन होने पर बुधवार 26 जून (एक दिन) का राजकीय शोक घोषित किया है। बुधवार को प्रदेश में राष्ट्रीय ध्वज आधे झुके रहेंगे और कोई भी शासकीय मनोरंजन के कार्यक्रम आयोजित नहीं किए जायेंगे।
स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि (87 वर्ष) के फिर से और जूना अखाड़ा के आचार महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि के मंगलवार को ब्रह्मलीन होने की जानकारी देते हुए बताया कि स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी को उनके निवास स्थान राघव कुटीर में बुधवार को समाधि दी जाएगी। सत्यमित्रानंद गिरि के ब्रह्मलीन होने से संत समाज में शोक की लहर दौड़ गई है और देशभर के सभी प्रमुख संतो का राघव को ट्वीट पहुंचना शुरू हो गया है। स्वामी अवधेशानंद गिरि जगतगुरु राज राजेश्वर आश्रम महामंडलेश्वर अभी चेतनानंद महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद स्वामी विवेकानंद भूमा पीठाधीश्वर स्वामी अच्युतानंद तीर्थ ने उनके ब्रह्मलीन होने पर शोक व्यक्त किया है।
पथ-प्रदर्शक, अध्यात्म-चेतना के प्रतीक, तपो व ब्रह्मानिष्ठ, विश्व प्रसिद्ध भारत माता मंदिर के संस्थापक महामंडलेश्वर स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि का जन्म 19 सितंबर, 1932 को आगरा में हुआ था। उनका परिवार मूलतरू सीतापुर (उत्तर प्रदेश) का निवासी था। बाद में परिवार कानपुर के घाटमपुर में बस गया था। संन्यास से पहले वे अंबिका प्रसाद पांडेय के नाम से जाने जाते थे। राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित प्रख्यात शिक्षक उनके पिता शिवशंकर पांडेय ने उन्हें बचपन से ही अध्ययनशीलता, चिंतन और सेवा का का पाठ पढ़ाया था और उन्हें सदैव अपने लक्ष्य के प्रति सजग और सक्रिय रहने की प्रेरणा दी। यही वजह थी कि वह अपने बाल्यावस्था से ही अध्ययनशील, चिंतक और निस्पृही व्यक्तित्व के धनी हो गए थे। सेवाभाव की अधिकता के कारण उनका मन मानव और धर्मसेवा में अधिक लगता था और सांसारिक जीवन से उनका कोई प्रेमभाव कभी नहीं रहा। अपनी इसी खूबी के कारण देश के भीतर उनका जितना सम्मान था, विदेशों में भी उनकी उतनी ही ख्याति थी। उन्होंने सद्भाव, सांप्रदायिक सौहार्द और समन्वय भाव के प्रसार के लिए विश्व के 65 से अधिक देशों की यात्रा की थी। धर्म, संस्कृति, समाज और विश्व कल्याण की उनकी इन्हीं सेवाओं को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में शामिल पद्मभूषण से अलंकृत किया था।
महामंडलेश्वर स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि का बचपन का अधिकांश समय संत-महात्माओं या फिर विभिन्न विषयों के विद्वानों के सान्निध्य में ही बीतता था। उन्होंने बेहद कम आयु में ही महामंडलेश्वर स्वामी वेदव्यासानंद महाराज से संन्यास दीक्षा ग्रहण कर गृहत्याग कर श्सत्यमित्र ब्रह्मचारीश् के रूप में धर्म साधना को अपना कर्म क्षेत्र बना लिया। धर्म के क्षेत्र में उनकी निस्वार्थ सेवा ने उन्हें साधना के विविध सोपान प्रदान किए। उन्होंने प्रख्यात चिकित्सक स्व. डॉ. आरएम सोजतिया के सहयोग से भानपुरा और उसके आसपास क्षेत्र के अतिनिर्धन लोगों के उत्थान की दिशा में अनेक वर्ष तक कार्य किया। इसके अलावा उन्होंने देश-विदेश में अनेक जगह मानव सेवा और वंचितों के सेवार्थ कई कार्यक्रम चलाए, उनमें कई अब भी चल रहे हैं। तमाम जगह पर उन्होंने इसके निमित्त अपने आश्रम और मठ की स्थापना भी की। उन्होंने अपना सारा जीवन दीन-दुखी, गिरिवासी, वनवासी, हरिजनों की सेवा और सांप्रदायिक मतभेदों को दूर करने, समन्वय-भावना का विश्व में प्रसार करने में होम कर दिया, जिसके लिए उन्होंने सनातन हिंदू धर्म की महानतम पद-पदवी शंकराचार्य का त्याग कर दिया। उनकी विद्वता के कारण वर्तमान समय में उन्हें स्वामी विवेकानंद की अनुकृति भी कहा जाता था। हाल ही में उन्होंने हरिद्वार में देश के शीर्ष संतों को भारत माता आराधना यज्ञ के लिए भारत माता मंदिर में आमंत्रित किया था। इसके लिए यज्ञस्थल पर 101 कुंडीय यज्ञवेदी का निर्माण कराया गया था। इसकी शुरुआत प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद सिंह रावत ने की थी और इसमें श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि, गायत्री तीर्थ शांतीकुंज प्रमुख डॉ. प्रणव पंड्या सहित देश के तमाम प्रमुख संतों और विद्वानों ने सहभागिता की थी।