डेटा के हक से मजबूत बनेगी अर्थव्यवस्था
( आखरीआंख )
हाल ही में अमेरिका द्वारा अमेरिकी उपभोक्ताओं के निजी डेटा लीक करने के मामले में फेसबुक पर करीब 34 हजार करोड़ रुपए का जुर्माना लगाए जाने के बाद पूरी दुनिया में डेटा सुरक्षा एवं डेटा लोकलाइजेशन के मुद्दे पर बहस छिड़ गई है। दुनिया के कई विकासशील देशों में इन मुद्दों पर नये कानून बनाए जाने का परिदृश्य उभरकर सामने आया है।
पिछले महीने 28 एवं 29 जून को जापान के ओसाका में जी-20 समेलन के दौरान डेटा लोकलाइजेशन और डेटा सुरक्षा पर भारत का रुख रखते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि डेटा क्रूड आयल की तरह एक ऐसी सपत्ति है, जिस पर विकासशील देशों के हितों का ध्यान रखा जाना जरूरी है। साथ ही डेटा पर विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के नियमों के हिसाब से बातचीत की जानी चाहिए। जी-20 समलेन के इतर नरेन्द्र मोदी ने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ वार्ता में भी डेटा लोकलाइजेशन के मुद्दे पर ट्रप के विरोध के बावजूद भारत के पीछे न हटने की स्पष्ट बात कही। वस्तुत: डेटा लोकलाइजेशन किसी देश के नागरिकों और उपभोक्ताओं से संबंधित डेटा को उसी देश की सीमाओं के भीतर संगृहीत करने की प्रक्रिया है। इससे उस देश की सरकार का डेटा पर बेहतर नियंत्रण रहता है तथा डेटा का दुरुपयोग भी रुकता है।
उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों 26 जून को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने दिशा निर्देश जारी करते हुए स्पष्ट किया है कि भारतीय उपभोक्ताओं के लेन-देन के डेटा का भारत में ही भंडारण किया जाएगा। यदि भारत से संबंधित उपभोक्ताओं के भुगतान की प्रक्रिया यदि विदेश में होती है तो वहां उससे संबंधित डेटा को एक कारोबारी दिन या 24 घंटे के भीतर भारत भेजा जाना जरूरी होगा। गौरतलब है कि भारत के 30 करोड़ उपभोक्ताओं द्वारा फेसबुक और करीब 20 करोड़ उपभोक्ताओं द्वारा व्हाट्सएप का उपयोग किया जा रहा है। अमेरिका सहित विकसित देश चाहते हैं कि डेटा लोकलाइजेशन न हो, उसका स्वतंत्र उपयोग हो, जबकि भारत सहित बड़ी जनसंया वाले विकासशील देश चाहते हैं कि डेटा लोकलाइजेशन जरूरी है। वस्तुत: नयी वैश्विक आर्थिक व्यवस्था के तहत भविष्य में डिजिटल कारोबार तेजी से बढ़ेगा और जिस देश के पास जितना यादा डेटा संरक्षण होगा, वह देश आर्थिक रूप से उतना मजबूत होगा।
ज्ञातव्य है कि पिछले दिनों 8 एवं 9 जून को जापान के शहर फुकुओका में आयोजित जी-20 देशों के वित्तमंत्रियों औऱ दुनिया के शीर्ष वित्तीय नीति निर्माताओं की शिखर बैठक में डिजिटल वैश्विक उद्योग-कारोबार पर डिजिटल टैक्स लगाने को लेकर आम सहमति बनी। दुनिया के अधिकांश देश डिजिटल कारोबार करने वाले उद्यमों पर डिजिटल टैक्स लगाने का समर्थन कर रहे हैं लेकिन अमेरिका सहित दुनिया के कुछ विकसित देशों की प्रमुख डिजिटल कंपनियां इस नए प्रस्ताव के खिलाफ हैं। इन कंपनियों का कहना है कि उन्हें भारत सहित विभिन्न विकासशील देशों में डेटा स्टोर करने के लिए बुनियादी ढांचे पर बड़ी धनराशि खर्च करनी होगी। साथ ही उन्हें डेटा को लेकर स्थानीय नियमों का पालन करना होगा। बहुराष्ट्रीय कंपनियां जैसे गूगल, फेसबुक, एमेजॉन, एप्पल आदि के उपभोक्ता दुनिया के किसी भी देश में हों, वे टैक्स बचाने के तरीकों का सूझबूझपूर्ण उपयोग करते हुए कम टैक्स आऱोपित करने वाले देशों में अपना मुनाफा दिखाकर अपना देय टैक्स घटाने की प्रवृत्ति रखती हैं।
विकासशील देशों में बड़े पैमाने पर डिजिटल कारोबार करने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने वास्तविक कारोबार का एक बड़ा भाग टैक्स बचाने के उद्देश्य से कम टैक्स आऱोपित करने वाले देशों में टैक्स बचाने की दुर्भावना के साथ हस्तांतरित करती हैं तो उन देशों को राजस्व की भारी हानि होती है, जहां वास्तविक कारोबार किया जाता है। ऐसे में 9 जून को जी-20 देशों के वित्तमंत्रियों द्वारा पारित किया गया नवीनतम प्रस्ताव या तो ऐसे अर्जित लाभ पर एक साझा न्यूनतम टैक्स लागू कर सकता है या फिर यह ऐसी अंतरराष्ट्रीय सहमति बना सकता है कि ऐसे अर्जित लाभ पर उन देशों पर कर लगेगा जहां वास्तविक राजस्व की प्राप्ति हुई है। जी-20 के तहत 2020 तक डिजिटल टैक्स सुनिश्चित किए जाने के प्रस्ताव के कार्यान्वित होने पर दुनिया में डिजिटल कारोबार के भविष्य की दिशाएं बदल जाएंगी। वैश्विक डिजिटल कारोबार पर एक उपयुक्त टैक्स लगाने से भारत औऱ दक्षिण अफ्रीका जैसे कई विकासशील देशों को फायदा होगा।
इसमें कोई दो मत नहीं है कि भारत में डेटा सुरक्षा तथा डेटा लोकलाइजेशन से जहां अर्थव्यवस्था लाभान्वित होगी, वहीं सभी उपभोक्ताओं को भी लाभ होगा। रोजगार के मौके भी बढ़ेंगे। भारतीय मध्यम वर्ग की ताकत पर भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई है। ऐसे में बढ़ते हुए वैश्विक डिजिटल कारोबार का लाभ भारतीय अर्थव्यवस्था को और आगे बढ़ा सकेगा। हाल ही में मैकिंजी ग्लोबल इंस्टीट्यूट द्वारा प्रकाशित की गई रिपोर्ट ‘डिजिटल इंडिया : टेक्नोलॉजी टू ट्रांसफॉर्म ए कनेक्टेड नेशनÓ में यह तथ्य उभरकर सामने आया है कि भारत डिजिटलीकरण और मल्टी नेशनल कंपनियों के माध्यम से डिजिटल कारोबार की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। भारत में इंटरनेट उपभोक्ताओं की संया देश की करीब आधी आबादी के करीब हो गई है और इस परिप्रेक्ष्य में भारत दुनिया में अब चीन के बाद दूसरे स्थान पर आ चुका है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में इंटरनेट डेटा की लागत वर्ष 2013 के बाद से 95 फीसदी कम हो चुकी है जबकि फिक्स्ड लाइन पर डाउनलोड की रतार चौगुनी हो चुकी है।
निश्चित रूप से विकासशील देशों के लिए यह सुकूनभरा परिदृश्य है कि 28-29 जून को जी-20 शिखर समेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी डेटा लोकलाइजेशन के मुद्दे पर अमेरिका सहित विकसित देशों के दबाव में नहीं आए। हम आशा करें कि अमेरिका द्वारा उपभोक्ताओं के निजी डेटा लीक होने पर फेसबुक पर भारी जुर्माना लगाए जाने के बाद अब भारत द्वारा करोड़ों भारतीय उपभोक्ताओं के हित में सरकार शीघ्रपूर्वक डेटा सुरक्षा और डेटा लोकलाइजेशन पर नया कानून धरातल पर लाएगी। साथ ही जिस तरह से फ्रांस ने अमेरिकी सरकार के भारी विरोध के बावजूद फेसबुक, एप्पल तथा अमेजन जैसी कंपनियों पर डिजिटल टैक्स लगा दिया है, उसी प्रकार भारत सरकार को भी ऐसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर जो भारतीय उपभोक्ताओं का डेटा इस्तेमाल करती हैं, डिजिटल टैक्स लगाने की डगर पर आगे बढऩा चाहिए।
निश्चित रूप से डेटा लोकलाइजेशन भविष्य में भारत के लिए कचे तेल के भंडार की तरह उपयोगी होगा और यह भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में प्रभावी योगदान देगा।
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