क्या शनि के चाँद पर पनप सकता है जीवन?
( आखरीआंख )
नासा ने शनि के बर्फीले चंद्रमा, टाइटन पर जीवन की आवास-योग्यता की पहचान करने के लिए वहां ड्रैगनलाई नामक रोबोटिक क्वाडकॉप्टर (हेलीकॉप्टर ड्रोन) भेजने की योजना बनाई है। ड्रैगनलाई मिशन के तहत इस बर्फीले चंद्रमा की सतह से नमूने एकत्र किए जाएंगे और उसकी मिट्टी की संरचना की नापजोख की जाएगी। इस विशाल चंद्रमा को सौरमंडल में पृथ्वी जैसा पिंड माना जाता है।
नासा के कैसिनी मिशन द्वारा की गई छानबीन से पता चला है कि वहां कुछ ऐसे कार्बनिक पदार्थ मौजूद हैं, जिन्हें जीवन की उत्पत्ति के लिए आवश्यक माना जाता है। नासा अपने न्यू फ्रंटियर्स कार्यक्रम के तहत 2026 में ड्रैगनलाई मिशन को रवाना कऱेगा। इस ड्रोन के 2034 में टाइटन पर पहुंचने की उमीद है। शुरू में ड्रैगनलाई ड्रोन टाइटन के विभिन्न स्थानों का सर्वेक्षण करेगा, जिनमें टीले और क्रेटर शामिल हैं। कैसिनी मिशन के दौरान किए गए सर्वेक्षण से संकेत मिले थे कि इन स्थानों पर कभी तरल जल मौजूद था। वहां जटिल कार्बनिक पदार्थों की उपस्थिति के भी चिन्ह मिले थे। ड्रैगनलाई हेलीकॉप्टर इन सतही कार्बनिक पदार्थों के नमूनों को एकत्र करेगा।
ड्रैगनलाई टाइटन के भूमध्य क्षेत्र में शांगरि-ला टीले पर उतरेगा। इस टीले की तुलना दक्षिणी अफ्रीका के नामीबियाई टीलों से की जाती है। यह रोबोटिक ड्रोन एक ड्रैगनलाई की तरह छोटी-छोटी उड़ानें भरेगा और विभिन्न स्थलों पर उतर कर वहां के नमूने एकत्र करेगा। इसकी लंबी उड़ान 8 किलोमीटर तक की होगी। यह यान कुल मिलाकर करीब 175 किलोमीटर की उड़ान भरेगा। यह दूरी मंगल पर अब तक भेजी गई समस्त रोवरों द्वारा मिलकर तय की गई दूरी से दोगुना अधिक होगी। कैसिनी का मिशन दो वर्ष पहले समाप्त हो गया था लेकिन इस यान के टाइटन के करीब गुजरने के दौरान जो आंकड़े एकत्र किए गए हैं, वे आज भी वैज्ञानिकों को इस अनोखे चंद्रमा के रहस्यों को उजागर करने में मदद कर रहे हैं। कैसिनी के डेटा से पता चलता है कि टाइटन पर मीथेन की झीलें तो 100 मीटर से यादा गहरी हैं।
नासा के एक अधिकारी थॉमस जुर्बुशेन का कहना है कि टाइटन सौरमंडल में सबसे अनोखा है और उसकी पड़ताल के लिए प्रस्तावित ड्रैगनलाई मिशन भी अपने आप में अनोखा है। जरा कल्पना कीजिए एक हेलीकॉप्टर की जो टाइटन के कार्बनिक रेतीले टीलों पर मीलों तक उड़ता रहेगा। टाइटन का आकार बुध ग्रह से बड़ा है और यह सौरमंडल में दूसरा बड़ा चंद्रमा है। शनि की परिक्रमा करते हुए सूरज से इसकी दूरी करीब 1.4 अरब किलोमीटर रहती है, जो पृथ्वी से दस गुणा अधिक दूर है। सूरज से बहुत यादा दूर होने के कारण इसका तापमान माइनस 179 डिग्री सेल्सियस है। इसकी सतह का दबाव पृथ्वी से 50 गुणा अधिक है। पृथ्वी की भांति टाइटन का वायुमंडल नाइट्रोजन आधारित है। वहां मीथेन के बादल हैं और मीथेन की बारिश होती है। इसके वायुमंडल में दूसरे कार्बनिक रसायन भी बनते हैं जो हल्की बर्फ की तरह नीचे गिरते रहते हैं।
टाइटन सौरमंडल का दूसरा ऐसा पिंड है, जिसकी सतह पर द्रव्य तरल रूप में मौजूद है। पृथ्वी पर पानी एक स्थिर द्रव्य है जबकि टाइटन पर मीथेन और इथेन तरलावस्था में मौजूद हैं। इस चंद्रमा के मौसम और उसकी सतह पर होने वाली प्रक्रियाओं से ऐसी परिस्थितियां निर्मित होती हैं जो जीवन निर्माण में सहायक हो सकती हैं। न्यू फ्रंटियर्स कार्यक्रम के तहत प्लूटो और काइपर बेल्ट के लिए न्यू होराइजन मिशन, बृहस्पति पर जूनो मिशन तथा बेनू क्षुद्र ग्रह पर ओसिरिस-रेक्स मिशन भेजे जा चुके हैं। नासा के प्लेनेटरी साइंस डिवीजन के डायरेक्टर लोरी ग्लेज का कहना है कि न्यू फ्रंटियर्स कार्यक्रम से हमें सौरमंडल को अधिक बेहतर ढंग से समझने का मौका मिला है। हमें बृहस्पति के उग्र वायुमंडल, प्लूटो की बर्फीली सतह और काइपर बेल्ट के पिंडों के बारे में बहुत-सी नई जानकारियां मिली हैं।
नासा ने अपने मिशन के लिए भले ही टाइटन का चुनाव किया है लेकिन कुछ खगोल-वैज्ञानिकों को शनि के दूसरे चंद्रमा, एन्सेलेडस में जीवन की संभावनाएं अधिक दिखाई देती हैं। इस चंद्रमा की बर्फ से ढकी सतह के नीचे बहुत बड़ा समुद्र है। नासा के गोडर्ड स्पेस लाइट सेंटर के एक रिसर्च वैज्ञानिक मार्क नेव्यू ने पिछले महीने अमेरिका के बेलव्यू शहर में एस्ट्रोबायोलॉजी साइंस कॉनफ्रेंस को बताया कि यह समुद्र संभवत: एक अरब वर्ष पुराना है। इतना पुराना होने का अर्थ यह है कि यह जीवन को पोषित करने के लिए परिपक्व हो चुका है। नेव्यू और उनके सहयोगियों ने एन्सेलेडस की आयु निर्धारित करने के लिए कैसिनी यान से मिले आंकड़ों का उपयोग किया, जिसने 13 वर्ष तक शनि की परिक्रमा की थी। नेव्यू ने कहा कि एन्सेलेडस एक नन्हा चंद्रमा है। आमतौर पर छोटे पिंडों को बहुत सक्रिय नहीं माना जाता लेकिन वाशिंगटन राय के आकार जितने इस चंद्रमा पर न सिर्फ समुद्र मौजूद है बल्कि वे सारी चीजें मौजूद हैं जो जीवन के लिए जरूरी हैं, जिनमें रासायनिक ऊर्जा के स्रोत और कार्बन, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन जैसे आवश्यक तत्वों के स्रोत शामिल हैं। यह संभव है कि शनि के इस छठे चंद्रमा की बर्फीली सतह के नीचे जीव पनप रहे हों। वैज्ञानिक काफी समय से एन्सेलेडस पर जीवन होने का कयास लगा रहे हैं।
कैसिनी अंतरिक्ष यान ने इस चंद्रमा की सतह से फूट रहे पानी के विशाल फुहारे के बीच से उड़ान भरी थी। उड़ान भरते हुए यान ने पानी की रीडिंग ली थी। अध्ययन के दौरान जल वाष्प के फुहारे में हाइडोजन की मौजूदगी के प्रमाण मिले थे। रिसर्चरों का कहना है कि इस तरह की मॉलिक्युलर हाइड्रोजन चंद्रमा की बर्फीली सतह के नीचे पानी और चट्टानों के बीच जलतापीय प्रतिक्रिया से ही उत्पन्न हो सकती है। पृथ्वी पर यही प्रक्रिया जलतापीय स्रोतों के इर्दगिर्द पाए जाने वाली पर्यावरणीय प्रणालियों को ऊर्जा प्रदान करती है। यह हाइड्रोजन एक अछी खाद्य सामग्री के रूप में काम करती है और पृथ्वी पर मौजूद आदिम जीव रूप इसका प्रयोग ईंधन के रूप में करते रहे हैं। मुमकिन है कि एन्सेलेडस पर मौजूद जीव रूप हाइड्रोजन खा रहे हों और मीथेन गैस छोड़ रहे हों।
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