चौबे जी गए छब्बे बनने, रह गये दुबे जी
आखरीआंख
जैसे ही उन्होंने कहा कि वे देश की अर्थव्यवस्था को पांच ट्रिलियन डॉलर की बनाना चाहते है, मैंने तुरंत ही ट्रिलियन में लगाए जाने वाले शून्य की संयाओं को लिखने व गिनती करने का अयास शुरू कर दिया था। बरसात से पहले घर के कवेलू फेरने वाली पीढ़ी का नागरिक जो हूं। अपना पॉकेट केलकुलेटर जो लाख-दस लाख के अंकों से आगे ही नहीं जा पाता है, उसे फेंककर बड़ा डेस्क केलकुलेटर ले आया हूं। अपने बचों को भी ट्रिलियन तक के जोड़-बाकी और गुणा-भाग सिखाने लगा हूं ताकि कल से वह इस अर्थव्यवस्था का अभिन्न अंग न बन पाए तो मुझे तो न कोसें।
पांच बार ट्रिलियन की स्पेलिंग और लगने वाले शून्य की संयाओं का आज का अयास करके निपटा ही था कि अखबार पर नजऱ पड़ी तो मेरे होश उड़ गए। खबर थी कि देश में मंदी छाई हुई है। सोशल मीडिया पर यह संदेश वायरल होने लगा कि हमारा रुपया बांग्लादेश, वही बांग्लादेश जिसे हमने पाकिस्तान से आज़ाद करवाकर बनवाया, वही बांग्लादेश जिसके शरणार्थियों के लिए हमने पचीस पैसे के लिफाफे पांच पैसे ‘शरणार्थी सहायता शुल्कÓ देकर तीस पैसे में खरीदे, उसी बांग्लादेश का टके-सा टका आज हमारे रुपये से यादा रसूख़दार हो गया है।
इधर, टीवी चैनलों पर देखो तो जिनके घर की अर्थव्यवस्था उनकी गृहलक्ष्मियां संभाल रही हैं, ऐसे कुछ विशेषज्ञ मंदी को लेकर मंद-मंद मुस्कुराते हुए देश की अर्थव्यवस्था की खामियां निकाल रहे हैं। कुछ टीवी चैनल वाले गड्ढों में रुपया तलाशते फिर रहे हैं ताकि मिलते ही उससे पूछ सकें कि ‘गिरने के बाद आप कैसा महसूस कर रहे हैं Ó
आखिर मैंने उन्हें खोज ही लिया। देश की अर्थव्यवस्था को ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचा देने के लिए वे दिन-रात एक किए हुए थे। ‘साये में धूपÓ स्टाइल में गुनगुनाते हुए मैंने उन्हें सुना—’कहां तो तय था नोबेल हर इकोनोमिस्ट के लिए, कहां एक हार भी मय्यसर नहीं किसी एक्टिविस्ट के लिए!Ó
‘सर आप तो इकॉनोमी को पांच ट्रिलियन डॉलर की बनाने की बात करते थे, मगर यह तो नीचे चली गई है!Ó मैंने उनका गुनगुनाना बंद होते ही सवाल दाग दिया।
‘यह इकॉनोमी को पांच ट्रिलियन डॉलर की बनाने की ही तैयारी है।Ó वे मानो ऐसे सवालों का जवाब देने के इरादे से ही बाहर निकले थे। अपनी बात को मेरे गले उतारने के लिए उन्होंने एक बड़ा ‘वजऩदारÓ तर्क दिया, ‘देखो जैसे तीरंदाज़ी में तीर को दूर तक पहुंचाने के लिए प्रत्यंचा को पीछे खींचना पड़ता है, फुटबाल को किक मारने के लिए पैर को पीछे ले जाना पड़ता है, उसी प्रकार इकॉनोमी के साथ भी होगा। मंदी जितनी बढ़ेगी, इकॉनोमी भी उतनी ही ऊपर जाएगी।
मैं अब नोबेल प्राइज़ की समिति का मेल आईडी खोज रहा हूं ताकि उनके नाम की संस्तुति कर सकूं।