October 23, 2024

 हमारे बिगड़ते हुए शहर

आखरीआंख
अफसोस की बात है कि दुनिया के अछे शहरों की गिनती में हमारे शहर कहीं नहीं ठहरते बल्कि उनकी हालत और खराब हुई है। अछे शहरों से आशय रहने लायक शहरों से है। इकनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट (ईआईयू) के ग्लोबल लिवेबिलिटी इंडेक्स 2019 में दिल्ली इस साल छह स्थान फिसलकर 118वें नंबर पर और मुंबई दो मुकाम नीचे आकर 119 वें नंबर पर पहुंच गया है। दिल्ली की रैंक इसलिए गिरी क्योंकि बीते एक साल में यहां अपराध और वायु प्रदूषण बढ़ा है। मुंबई को संस्कृति और पर्यावरण के क्षेत्र में पिछले साल से कमजोर आंका गया।
ईआईयू के इस सूचकांक में शहरों को पांच प्रमुख मानदंडों के आधार पर परखा जाता है- स्थिरता, संस्कृति व पर्यावरण, हेल्थकेयर, शिक्षा और इंफ्रास्ट्रक्चर। 140 देशों की इस सूची में ऑस्ट्रिया का वियना पहले नंबर पर है। शीर्ष 10 शहरों में ऑस्ट्रेलिया और कनाडा के तीन-तीन शहर शामिल हैं। सूची के आखिरी दस शहरों में बांग्लादेश की राजधानी ढाका नीचे से तीसरे यानी 138वें और पाकिस्तान का कराची 136वें नंबर पर है।
यह सूचकांक हमारी विकास प्रक्रिया पर एक बड़े प्रश्नचिह्न जैसा है। आधुनिक युग में डिवेलपमेंट की एक बड़ी कसौटी शहर भी हैं। रहने लायक शहर एक देश की आर्थिक हैसियत के साथ-साथ सक्षम शासन तंत्र और उन्नत नागरिक समाज के प्रतीक भी होते हैं। अछे शहरीकरण के लिए यह जरूरी है कि वह योजनाबद्ध हो। उसमें नागरिकों को कामकाज की सुविधा और जीवन की तमाम सहूलियतें मिलें, जैसे बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य। आज के दौर में अछे स्वास्थ्य के लिए शहर का प्रदूषण मुक्त होना जरूरी है। साथ ही नागरिकों को पूर्ण सुरक्षा और अपनी मर्जी का जीवन जीने की आजादी मिलनी चाहिए।
भारत में शहरीकरण अनायास और अराजक तरीके से हुआ। विकास का विकेंद्रीकरण नहीं हो सका, इसलिए लोग रोजी-रोटी के लिए बड़े शहरों की तरफ भागे। इस तरह जनसंया का बोझ शहरों पर बढ़ता गया। बढ़ती जनसंया के हिसाब से तमाम व्यवस्थाएं बनती गईं लेकिन उनमें सुरुचिपूर्ण दृष्टि का अभाव रहा। जाहिर है, एक अछा शहर विकसित न हो पाने के पीछे विकासशील होने की मजबूरी भी काम कर रही है।
पर अगर हम दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना चाहते हैं और एक विकसित राष्ट्र होने का सपना देखते हैं तो हमें अपने शहरों को व्यवस्थित करना ही होगा। विदेशी पूंजी और प्रतिभा का लाभ हम तभी ले पाएंगे। अन्य देशों के छात्र, शिक्षक और तकनीकी विशेषज्ञ हमारे यहां आने को तभी प्रेरित होंगे। पिछले कुछ समय से स्मार्ट सिटी बनाने की बात चल रही है लेकिन अभी तक यह अवधारणाओं में ही सीमित है। इसे जमीन पर उतारने में वक्त लगेगा लेकिन अपने शहरों की हवा और माहौल सुधारने में हमें ढिलाई नहीं बरतनी चाहिए।