स्वच्छ भारत कितना साफ?
आखरीआंख
स्वछ भारत अभियान के पांच साल पूरे हो गए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो अक्टूबर 2014 को इसकी शुरुआत की थी। स्थानीय प्रशासन के साथ-साथ आम लोगों को भी इससे जोड़ा गया और उन्हें सफाई को लेकर जागरूक किया गया। इन पांच वर्षों में साफ-सफाई का लक्ष्य शत-प्रतिशत भले न पूरा हुआ हो, मगर इसने जनमानस को झकझोरा जरूर है। स्वछता समाज के अजेंडे पर आ गई है। देश में स्वछता को लेकर बने माहौल का ही असर है कि आज गांवों में कई लड़कियों ने अपनी ससुराल में शौचालय बनाने पर जोर दिया और इसके लिए डटी रहीं। कुछ ने तो लड़के के यहां शौचालय न होने के कारण शादी करने से ही मना कर दिया।
गांवों में लोग अब खुद आगे आकर शौचालय बनवा रहे हैं। शहरों को स्वछता की रैंकिंग देने से प्रशासनिक अमले में एक स्वस्थ प्रतियोगिता की भावना पैदा हुई है। अपने-अपने शहर को बेहतर बनाने के लिए कई जगहों पर अधिकारियों में असाधारण सक्रियता देखी गई, जिसका सकारात्मक नतीजा निकला। कुछ शहर शुरुआत में पीछे आंके गए लेकिन अगले ही वर्ष वहां माहौल बदल गया और वे रैंकिंग में ऊपर आ गए। लेकिन स्वछता का लक्ष्य पूरा होने में अब भी कई गंभीर बाधाएं हैं। दरअसल इसके लिए सोच और जीवन पद्धति में आमूल बदलाव लाना जरूरी है लेकिन सदियों से चली आ रही प्रणाली में परिवर्तन लाने में अभी देर लगेगी।
दूसरी तरफ इसके लिए जितना बड़ा इंफ्रास्ट्रक्चर और अमला चाहिए, उसे बनाने में भी काफी वक्त लगेगा। सचाई यही है कि स्वछ भारत मिशन जितना नारों और विमर्श में है, उतना जमीन पर नहीं है। इसके तहत केंद्र सरकार ने एक करोड़ शौचालय बनाने की घोषणा की थी। उसका दावा है कि लक्ष्य का 96.25 फ़ीसदी काम पूरा हो चुका है। लेकिन इन शौचालयों का वाकई इस्तेमाल हो रहा है या नहीं, यह कहना कठिन है। जिन गांवों को खुले में शौच से मुक्त कर दिया गया है, वहां बड़े पैमाने पर लोग अब भी खुले में शौच करते हैं। शहरों की झुग्गी बस्तियों में जहां भी शौचालय बनवाए गए, उनकी ढंग से देखरेख नहीं हो पा रही है।
सफाई की मॉनिटरिंग, कूड़े की डंपिंग और उसकी प्रॉसेसिंग की कोई नई व्यवस्था अब भी यादातर शहरों में नहीं हो पाई है। कूड़े को अक्सर सिर्फ एक कोने से दूसरे कोने में सरका दिया जा रहा है। डंप के लिए जमीनें नदारद हैं। कई निगमों के पास पर्याप्त फंड ही नहीं हैं कि वे आधुनिक उपकरण खरीद सकें। सफाई की नई चुनौतियों का सामना करने के लिए नगरपालिकाओं को अपनी आय के स्रोत बढ़ाने होंगे और अपने कामकाज को प्रफेशनल रूप देना होगा। असल में, इस मिशन के बारे में जितना सोचा गया है, उससे कहीं यादा बड़ा सोचने की और उसी के अनुरूप निवेश बढ़ाने की जरूरत है। सफर जारी रहा तो यह सब होता जाएगा।