राजनैतिक पार्टियों के लिए सबक हैं महाराष्ट्र चुनाव
आखरीआंख
महाराष्ट्र में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी बीजेपी ने जब रविवार को रायपाल से साफ-साफ कह दिया कि वह सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है, तब दूसरी सबसे बड़ी पार्टी शिवसेना सक्रिय हुई। कांग्रेस और एनसीपी के सहयोग से सरकार बनाने की उसकी कोशिशों का क्या नतीजा निकलता है यह अगले कुछ दिनों में स्पष्ट होगा, लेकिन अपने आप में यह बात कम महत्वपूर्ण नहीं कि केंद्र, राय और मुंबई महानगरपालिका — तीनों स्तरों पर सत्ता में शामिल दो राजनीतिक दल सीट बंटवारे का समझौता करने के बाद साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ते हैं, स्पष्ट बहुमत हासिल करते हैं और इसके बावजूद सरकार नहीं बना पाते।
गौर करने की बात है कि ये दोनों पार्टियां तब से गठबंधन में हैं जब देश में गठबंधन का दौर शुरू भी नहीं हुआ था। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस के पक्ष में चली सहानुभूति लहर के चलते 1984 के आम चुनाव में बीजेपी दो लोकसभा सीटों तक सिमट कर रह गई थी। तब बीजेपी को राजनीति में अछूत माना जाता था। कोई भी दल उससे हाथ मिलाने को आसानी से तैयार नहीं होता था। ऐसे में बाला साहेब ठाकरे की अगुआई वाली शिवसेना और बीजेपी ने एक-दूसरे का हाथ थामा। 1989 में पहली बार लोकसभा चुनाव दोनों साथ मिलकर लड़े। इस बीच कांग्रेस का आधार सिमटता गया और देश में गठबंधन की सरकारों का युग शुरू हुआ।
वाजपेयी की अगुआई में एनडीए के दलों ने पहली बार केंद्र में स्थिर सरकार देकर साबित किया कि गठबंधन का मतलब अनिवार्यत: मध्यावधि चुनाव नहीं होता। हालांकि वाजपेयी को भी गठबंधन के घटक दलों की ओर से धमकियों-चेतावनियों का सामना करते रहना पड़ता था, लेकिन ‘गठबंधन धर्मÓ का पालन करते हुए वह देश को टिकाऊ सरकार देने में कामयाब रहे। उसके बाद कांग्रेस ने भी यूपीए गठबंधन की सरकार दस साल तक सफलतापूर्वक चलाई। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी की कामयाबी यह रही कि गठबंधन बनाकर चुनाव लडऩे के बावजूद इसने पूर्ण बहुमत हासिल किया और पांच साल बाद अगले चुनाव में उस बहुमत को और बढ़ा लिया।
इस दौरान एनडीए के घटक दलों की ओर से ये शिकायतें आती रहीं कि बीजेपी नेतृत्व उन्हें पर्याप्त महत्व नहीं देता, लेकिन अमित शाह की अध्यक्षता में पार्टी ने चुनाव-दर-चुनाव साबित किया कि घटक दलों के असंतोष का उसके वोटों पर या सीटों पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है। महाराष्ट्र के हालिया चुनाव में भी पार्टी न केवल सबसे यादा सीटें जीत कर लाई बल्कि एनडीए गठबंधन के लिए आवश्यक बहुमत भी आसानी से सुनिश्चित कर लिया। मगर राजनीति में वोट और सीटें ही नहीं, सहयोगी दल भी अहमियत रखते हैं। महाराष्ट्र में एक जीती हुई बाजी हारकर बीजेपी को यह सबक मिला है। देखना होगा कि वह इस सबक को कितनी गंभीरता से लेती है और आगे अपने रवैये में किस तरह का बदलाव लाती है।