May 19, 2024

भारत-चीन सीमा विवाद: खिंच सकता हैं लम्बा

आखरीआंख समाचार

पिछले कुछ दिनों से भारत-चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चल रहे तनाव के बीच शनिवार को दोनों देशों में हुई लेटिनेंट जनरल स्तर की बातचीत को लंबी चलने वाली प्रक्रिया के एक हिस्से के ही रूप में लिया जा रहा है। यह अछी बात है कि बातचीत सौहार्दपूर्ण माहौल में हुई और दोनों पक्षों ने अपनी अपेक्षाएं एक-दूसरे को बता दीं। बातचीत से तत्काल कोई नतीजा निकल आने की उमीद किसी को नहीं थी।
चीनी सेना ने जिस तरह अप्रैल तक की अपनी स्थिति से आगे बढ़कर न केवल आगे की जगहों पर डेरा डाल लिया बल्कि बड़ी संया में सैनिकों की तैनाती के जरिए वहीं टिके रहने का इरादा भी जाहिर कर दिया, उसकी अनदेखी करना भारत के लिए किसी भी सूरत में संभव नहीं है।
सीमा क्षेत्रों में सड़क निर्माण को लेकर चीन की भारत से जो भी शिकायतें हों, पर एक बात तो तय है कि ये गतिविधियां पूरी तरह से भारतीय दायरे में चल रही हैं। चीन का तो यह आरोप भी नहीं है कि भारत उसके सीमा क्षेत्र में या विवादित इलाकों में आकर कुछ कर रहा है। ऐसे में इसका कोई औचित्य नहीं बनता कि आपसी समझदारी से बनी यथास्थिति को भंग करते हुए उसकी सेना अचानक नए इलाकों पर कब्जा कर ले।
बहरहाल, ध्यान रखने वाली बात यह है कि उत्तर में हिमालय को प्राकृतिक सीमा मानने की पारंपरिक सोच अब अप्रासंगिक हो चुकी है। तकनीकी विकास की मौजूदा अवस्था में दुर्गमता अपना अर्थ खो चुकी है। जो क्षेत्र कल तक टट्टू की सवारी करने लायक भी नहीं माने जाते थे, उनमें आज धड़ल्ले से न केवल सड़कें बन रही हैं बल्कि रेल लाइनें बिछाई जा रही हैं। ऐसे में भारत और चीन के बीच सीमा के हर विवादित बिंदु को सही ढंग से परिभाषित करने और उस पर दोनों पक्षों में सहमति बनाने की आवश्यकता दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। हालांकि दो देशों के बीच अंतिम रूप से सीमा निर्धारण दुनिया के कठिनतम कामों में से एक है। इस दिशा में कोई भी प्रगति लंबे और लगातार चलने वाले संवाद के जरिए ही हासिल की जा सकती है।
दिक्कत यह है कि जब तक भारत और चीन की सीमाएं तय नहीं होतीं, तब तक दोनों देशों के रिश्तों में तनाव भरने वाले नए-नए विवाद खड़े होते रहेंगे। विवादों के यही पल दोनों प्राचीन देशों के नेतृत्व की समझदारी और कूटनीतिक कौशल की परीक्षा लेते हैं, लेकिन भारत के लिए अभी यह दोहरी परीक्षा है। उसे अपनी सीमाओं के भीतर कुछ भी करने की आजादी बरकरार रखनी है, साथ ही चीनी नेतृत्व को अप्रैल से पहले वाली जगह पर जाकर यथास्थिति बहाल करने के लिए मनाना भी है। चीन का रुख अभी नियंत्रण रेखा के पास ही युद्धायास करके भारत पर दबाव बनाने का है, जबकि हमारी कूटनीति की सफलता उसे यह अहसास कराने में है कि यह रवैया उसे व्यापारिक और अन्य स्तरों पर कितना नुकसान पहुंचा सकता है।