जब भी आएगी दमदार होगी कोरोना वैक्सीन
आखरीआंख
वैज्ञानिकों ने आश्वस्त किया है कि कोरोना वायरस में बहुत धीमी गति से यूटेशन हो रहा है। ध्यान रहे कि आनुवंशिक कोड में होने वाले परिवर्तन को यूटेशन कहते हैं। वैज्ञानिकों ने यह भी पता लगाया है कि वायरस के आनुवंशिक कोड में होने वाले परिवर्तनों से वह यादा संक्रामक या घातक नहीं हो रहा है। इस नये अध्ययन से यह भरोसा भी पैदा होता है कि जो व्यक्ति एक बार वायरस से संक्रमित हो चुके हैं, वे दोबारा संक्रमित होने से बचे रहेंगे। इससे यह उमीद भी जगती है कि वैक्सीन जब भी तैयार होगी, वह असरदार होगी।
अध्ययन के लेखकों ने साथ ही इन यूटेशनों पर निरंतर सतर्कता बरतने का आग्रह किया है क्योंकि इनसे वायरस दवाओं के खिलाफ प्रतिरोध उत्पन्न कर सकते हैं या निदान के टेस्टों से बच निकल सकते हैं। ब्रिटेन की रॉयल सोसायटी के विशेषज्ञों द्वारा किए गए इस अध्ययन के अन्य निष्कर्षों से यह साबित होता है कि यह वायरस कुदरती रूप से चमगादड़ों में विकसित हुआ है। यह किसी प्रयोगशाला में नहीं बना है जैसा कि कुछ हलकों में दावा किया जा रहा है। रॉयल सोसायटी की टीम में ब्रिटेन के प्रमुख वायरस वैज्ञानिक शामिल थे। उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस में यूटेशनों के स्थान और उनके स्वरूप से उसकी घातकता पर कोई असर नहीं पड़ा है।
कुछ विशेषज्ञों ने पहले कहा था कि वायरस में यूटेशन हो रहा है, उसकी तीव्रता कम हो रही है लेकिन वह यादा संक्रामक हो रहा है। अब इन नये निष्कर्षों की रोशनी में इस थ्यूरी को पूरी तरह से खारिज किया जा सकता है। महामारी के इस दौर में वायरस में उभरने वाले यूटेशनों ने कुछ ऐसे निशान छोड़ दिए हैं, जिनके आधार पर रिसर्चर वायरस के प्रसार को ट्रैक कर सकते हैं। यह एक महत्वपूर्ण माध्यम है, जिसके जरिए नीति योजनाकार वायरस के प्रसार को रोकने के उपाय कर सकते हैं। इस अध्ययन के प्रमुख लेखक जैफ्री स्मिथ ने कहा कि यह एक अछी खबर है कि कोरोना वायरस अभी तक स्थिर साबित हुआ है क्योंकि ऐसे वायरस को डिटेक्ट करना और उसका इलाज करना बहुत आसान होता है जो स्थिर होता है। उन्होंने कहा कि संपूर्ण जीन सिकवेंसिंग से हमें यह समझने में मदद मिलती है कि वायरस की कौन-सी किस्म (स्ट्रेन) से संक्रमण हुआ है और संक्रमण का स्रोत कौन है। इससे हमें वायरस की उन किस्मों को ट्रैक करने में भी मदद मिलती है जो प्रबल हो गई हैं और यादा कुशलता के साथ रेप्लिकेट या प्रसारित होंगी।
इस अध्ययन के लेखकों को पूरा भरोसा है कि वायरस के वर्तमान रूप में यह बीमारी यादा तीव्र या संक्रामक नहीं हो रही है। इस अध्ययन के तहत विशेषज्ञों ने यह पता लगाने की कोशिश की कि यह वायरस ब्रिटेन में कहां से आया। इसके पश्चात उन्होंने इसकी आनुवंशिक उत्पत्ति की पड़ताल की। उनका कहना है कि सार्स कोव-2 और दूसरे कोरोना वायरसों के बीच बड़े अंतर को देखकर यह बात विश्वासपूर्वक कही जा सकती है कि यह लैब में निर्मित नहीं किया गया है और न ही यह दुर्घटनावश लैब से बाहर निकला है।
अध्ययन में इस बात की पुष्टि की गई कि यह वायरस या तो चमगादड़ों से सीधे या किसी मध्यस्थ जानवर के जरिए मनुष्यों में दाखिल हुआ है। प्रो. स्मिथ ने कहा कि जब भी कोई नया वायरस प्रकट होता है तो लोग उसकी उत्पत्ति के बारे में तरह-तरह की अटकलें लगाने लगते हैं। इस वायरस के बारे में आज भी कुछ लोग इसकी कृत्रिम उत्पत्ति की बात पर अड़े हुए हैं। प्रो. स्मिथ ने कहा कि दुनिया के वैज्ञानिकों ने सार्स कोव-2 की आनुवंशिकी को समझने में जो तत्परता दिखाई है, वह काबिले तारीफ है। इससे हमें वायरस के प्रसार का पता लगाने, निदान के तरीके खोजने तथा वैक्सीनें विकसित करने में मदद मिली है।
इस बीच, दो नए अध्ययनों में वैज्ञानिकों ने यह पता लगाने की कोशिश की है कि कोरोना वायरस के कुछ मरीजों में बीमारी बहुत गंभीर क्यों हो जाती है। कुछ मरीजों में बहुत हल्के लक्षण दिखते हैं जबकि कुछ की हालत बिगडऩे लगती है। दो नये विश्लेषणों से पता चलता है कि मरीजों की प्रतिरक्षा प्रणाली में कुछ कमजोर बिंदुओं की वजह से कोरोना यादा उग्र रूप धारण कर लेता है। गंभीर कोविड के जिन मरीजों का अध्ययन किया गया, उनमें से कम से 3.5 प्रतिशत मरीज ऐसे थे, जिनके शरीर की वायरसरोधी प्रतिरक्षा प्रणाली के जीनों में यूटेशन अथवा परिवर्तन हो गया था। गंभीर मामलों के लगभग 10 प्रतिशत मरीजों ने आटो एंटीबॉडीज उत्पन्न की जो हमलावर वायरस से लडऩे के बजाय शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली पर ही हमले करने लगी। अमेरिका में रॉकफेलर यूनिवर्सिटी के रिसर्चर या-लारेंं केसेनोवा का कहना है कि बहुत सारे मरीजों में नुकसानदायक एंटीबॉडीज देख कर हमें बहुत हैरानी हुई है।
उन्होंने कहा कि इन दो अध्ययनों के जरिए पहली बार हमने यह समझाने की कोशिश की है कि कोविड कुछ मामलों में यादा घातक क्यों हो जाता है जबकि इसी वायरस के शिकार होने वाले अधिकांश मरीजों में बहुत मामूली लक्षण दिखते हैं और वे ठीकठाक रहते हैं। केसेनोवा ने कहा कि कोविड के निदान और उपचार के लिए नये निष्कर्ष बहुत महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कहा कि यदि कोई मरीज पॉजिटिव निकलता है तो उसकी आटो एंटीबॉडीज का टेस्ट भी होना चाहिए। यदि दूसरा टेस्ट भी पॉजिटिव निकलता है तो डॉक्टरों को इसका भी उपचार करना चाहिए। यदि ब्लड से इन एंटीबॉडीज को हटा दिया जाए तो बीमारी के लक्षणों को कम करना संभव है। केसेनोवा की टीम ने फरवरी से दुनिया के डॉक्टरों के सहयोग से कोविड के मरीजों को सूचीबद्ध करना आरंभ किया। उस समय उन्होंने गंभीर लक्षणों वाले मरीजों पर ध्यान केंद्रित किया। वे यह देखना चाहते थे कि क्या उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली में ऐसी कोई कमजोरी तो नहीं है, जिसकी वजह से वायरस उन्हें यादा परेशान कर रहा है।
उन्होंने मरीजों की जीनों की पड़ताल की। उन्होंने मुय रूप से उन 13 जीनों को चुना जो इन्लुएन्जा के खिलाफ ‘इंटरफेरोन इयूनिटीÓ में मुय भूमिका निभाते हैं। स्वस्थ लोगों में इंटरफेरोन मॉलिक्यूल्स शरीर की सुरक्षा प्रणाली के रूप में काम करते हैं। वे हमलावर वायरसों और बैक्टीरिया को डिटेक्ट करके अलार्म बजाने का काम करते हैं। इसके बाद शरीर के दूसरे रक्षक भी मैदान में आ जाते हैं।
केसेनोवा की टीम ने पिछले अध्ययन में उन आनुवंशिक यूटेशनों का पता लगाया था जो इंटरफेरोन के उत्पादन और फंक्शन में रुकावट पैदा करते हैं। ऐसे यूटेशनों वाले लोग कुछ रोगाणुओं के शिकार हो सकते हैं। कोविड के मरीजों में इसी तरह के यूटेशन मिलने के बाद टीम ने यह राय बनाई कि इस तरह के यूटेशन डॉक्टरों को बीमारी के गंभीर लक्षणों वाले मरीजों की पहचान करने में मदद कर सकते हैं। इससे कोविड के बेहतर इलाज के लिए दिशानिर्देश भी तय किए जा सकते हैं।