प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण रहा मददगार
पून्ने राम ने बताया कि उन्होंने 2018 में प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना के तहत प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण इस खेती विधि के जनक पदमश्री सुभाष पालेकर से प्राप्त किया था। इसके बाद उन्होंने इसे अपनी 10 बीघा जमीन में करना शुरू किया। पून्ने राम बताते हैं कि इस खेती विधि में देसी गाय का बहुत महत्व है, इसलिए उन्होंने योजना के तहत मिले अनुदान से साहीवाल नस्ल की एक गाय खरीदी और इस खेती विधि को बताए अनुसार करना शुरू कर दिया।
सालाना 6 लाख आमदनी
पून्ने राम का कहना है कि इस खेती विधि को अपनाने के बाद उनकी खेती की लागत कम होकर 3 हजार रुपये रह गई है जबकि पहले वे 50 हजार रुपये तक की दवाईयों और 1 लाख रूपये के उर्वरकों की खरीद करते थे । इसके अलावा रासायनिक खेती से जहां उन्हें कुल सालाना आय साढे 4 लाख रूपये थी वह अब बढ़कर 6 लाख रूपये तक पहुंच गई है।
पून्ने राम बताते हैं कि प्राकृतिक खेती विधि से उन्होंने अनार, सेब और सब्जियों का उत्पादन लेना शुरू किया है। वे बताते हैं कि इस विधि में हम एक साथ बहुत सारी फसलें लगाकर मिश्रित खेती करते हैं जिससे यदि कोई एक फसल अच्छी न हो या बाजार में उसका अच्छा भाव न मिले तब दूसरी फसल उसकी प्रतिपूर्ती कर देती है। इसके अलावा बहुत सारी फसलें लगाने से किसान को थोड़े-थोड़े समय में कुछ न कुछ आय होती रहती है।
किसानों को सिखा रहे प्राकृतिक खेती के गुर
पून्ने राम के उत्कृष्ट प्राकृतिक खेती मॉडल को देखकर अब क्षेत्र के अन्य किसान भी उनसे प्राकृतिक खेती विधि के गुर सीख रहे हैं। वे अन्य किसानों को इस खेती विधि में प्रयोग होने वाले घटक जीवामृत, घन जीवामृत, अग्नि अस्त्र आदि के निर्माण और उनके प्रयोग के बारे में प्रशिक्षण तो देते ही हैं, साथ में यदि खेती में कोई दुविधा आती है तो उसका भी निवारण करते हैं।
खेती का बेहतरीन मॉडल
प्राकृतिक खेती विधि का प्रचार-प्रसार करने वाली कृषि विभाग की बालीचौकी खंड तकनीकी अधिकारी दिव्या ठाकुर ने बताया कि पून्ने राम बहुत मेहनती किसान हैं और उन्होंने अपने खेतों में इस खेती का बेहतरीन मॉडल तैयार किया है। कृषि विभाग की ओर से शुरू की गई प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना के तहत किसानों को पून्ने राम के खेतों में प्रशिक्षण और भ्रमण के लिए लाया जाता है, ताकि किसान उनके खेती मॉडल को देखकर प्रेरणा पाकर प्राकृतिक खेती को अपना सकें।
सरकार दे रही सब्सिडी
कृषि विभाग मंडी के आतमा परियोजना निदेशक ब्रह्मदास जसवाल बताते हैं कि हिमाचल सरकार प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए काम कर रही है। अभी जिला में 25 हजार से अधिक किसान प्राकृतिक खेती अपना चुके हैं। किसानों को देसी नस्ल की एक गाय खरीदने के लिए 25 हजार रुपए तक की सहायता, किसानों को निशुल्क प्रशिक्षण, जीवामृृत बनाने के लिए 200 लीटर के ड्रम लेने पर लागत पर 75 प्रतिशत सब्सिडी दी जा रही है।
आतमा के उप परियोजना निदेशक हितेंद्र ठाकुर बताते हैं कि जिन लोगों के पास देसी गाय है उनकी पशुशाला में फर्श डालने और गूंत्र व गोबर को एकत्र करने को चैंबर बनाने के लिए 8 हजार रुपए दिए जा रहे हैं। जिन्हें जीवामृत अथवा घन जीवामृत बनाने व बेचने के लिए संसाधन भंडार बनाना हो उन्हें 10 हजार रुपए के अनुदान का प्रावधान है।
क्या कहते हैं जिलाधीश
जिलाधीश अरिंदम चौधरी का कहना है कि मंडी जिले में प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए लोगों को प्रेरित किया जा रहा है। जहर मुक्त खेती से भयंकर बीमारियों से बचा जा सकता है साथ ही किसानों के खर्चों की बचत व मिश्रित खेती तथा अच्छी पैदावार से उनकी आमदनी दोगुनी करने में भी यह सहायक है।